हरगोविंद खुराना का जीवन परिचय | हरगोविंद खुराना की जीवनी | डॉ हरगोविंद खुराना हिंदी निबंध | hargobind khorana in hindi | hargobind khorana biography

हरगोविंद खुराना का जीवन परिचय | हरगोविंद खुराना की जीवनी | डॉ हरगोविंद खुराना हिंदी निबंध | hargobind khorana in hindi | hargobind khorana biography

जीवविज्ञान के अनुसार जीन (Gene) को पैतृकता की इकाई माना जाता है । जीन के द्वारा ही जीव के वे गुण निर्धारित होते हैं, जो वह अपने माता-पिता से प्राप्त करता है ।

प्रत्येक जीन किसी विशेष गुण को निर्धारित करता है । जीन हमारी कोशिकाओं (Cells) के नाभिक (Nucleus) पर स्थिर होते हैं । एक कोशिका में जीनों की संख्या हजारों में होती है । प्रत्येक जीन डी.एन.ए. (Deoxyribonucleic Acid) से मिलकर बना होता है ।

हरगोविंद खुराना ने सन् १९७६ में सर्वप्रथम एक कृत्रिम जीन का निर्माण प्रयोगशाला में करके विश्व में तहलका मचा दिया । इस आविष्कार से भारत में जन्मे इस वैज्ञानिक का नाम चारों ओर फैल गया । कृत्रिम जीवन पैदा करने की दिशा में यह पहला कदम था ।

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हरगोविंद खुराना का जन्म २ जनवरी, १९२२ को राजपुर, पंजाब (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ । इनके पिता राजपुर में ग्रामीण टैक्स कलैक्टर थे । सैकड़ों लोगों के इस गांव में केवल इनका ही पढ़ा-लिखा परिवार था । पांच भाई-बहनों में हरगोबिन्द सबसे छोटे थे ।

इनकी शिक्षा गांव के स्कूल से ही प्रारंभ हुई, जहां एक पेड़ के नीचे इनके अध्यापक इन्हें पढ़ाया करते थे । आरम्भ से ही ये पढ़ने-लिखने में बहुत प्रखर थे । हरगोविंद खुराना पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से एम.एस.सी. पास करके सन् १९४५ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु मैनचेस्टर विश्वविद्यालय लिवरपूल, इंग्लैण्ड चले गए । वहां इन्होंने प्रो. रॉबर्टसन की देखरेख में सन् १९४८ में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की ।

सन् १९४८ में ये भारत वापस आ गये । यहां काफी प्रयास करने पर भी वे कोई उचित नौकरी न पा सके । उन्होंने अध्यापन कार्य के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में अपना प्रार्थना पत्र भेजा लेकिन यहां से भी इन्हें निराशा ही हाथ लगी । कुछ महीनों तक बिना नौकरी के रहकर इन्होने विदेश जाने का निश्चय किया | निराश होकर वे वापस इंग्लैण्ड चले गए । वहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता सर अलैक्जैण्डर टॉड के साथ काम करना आरम्भ किया ।

सन् १९५२ में ये कनाडा चले गये और वहीं पर इन्होंने स्विटजरलैंड के एक संसद सदस्य की पुत्री से विवाह कर लिया ।

सन् १९५३ में डा. खुराना ऑरगैनिक कैमिस्ट्री ग्रुप ऑफ कॉमनवेल्थ रिसर्च आरगेनाइजेशन के अध्यक्ष चुने गए । सन् १९६० तक वे इसी पद पर रहे। सन् १९५९ में इन्होंने एक एन्जाइम (Enzyme) का निर्माण किया जिससे इनका नाम देश-विदेश में फैलने लगा । यह ऐन्जाइम शारीरिक क्रियाओं के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ । इसके बाद सन् १९६० में ही वे अमेरिका चले गये । वहां इन्होंने कृत्रिम जीवन की संभावना इस विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के ऐन्ज़ाइम रिसर्च इंस्टीट्यूट के निरेन बर्ग के साथ काम करना आरम्भ किया । इस संस्थान में इन्होंने डी.एन.ए. और आर.एन.ए. को बनाने की विधि का आविष्कार किया | इसी खोज के आधार पर आज बहुत सी पैतृक बीमारियों का इलाज संभव हो पाया है । इसी आविष्कार के लिये इन्हें सन् १९६८ में ४६ साल की उम्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में उस वर्ष का यह पुरस्कार मार्शल निरेबर्ग, रॉबर्ट हालै और डा. हरगोबिन्द खुराना को प्रदान किया गया।

इसके बाद खुराना की ख्याति विश्वभर में फैल गई । सन् १९७० में हरगोविंद खुराना मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में जीवविज्ञान और रसायन शास्त्र के अल्फ्रैंड स्लोन प्रोफेसर (Alfred Sloan Professor) नियुक्त किये गये । जेनेटिक कोड (Genetic Code) पर इनके द्वारा किये गये कार्य विश्वभर में प्रसिद्ध हैं ।

ऐश्करशिया कोली (Escherichia Coli) एक ऐसा जीवाणु (Bacteria) है, जो मनुष्य और जानवरों की आंतों पर जीवित रहता है । इस जीवाण की संरचना के विषय में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक काफी काम कर चुके थे । खुराना और उसके सहयोगियों ने इस जीव का प्रयोगशाला में कृत्रिम तरीके से जीन बनाने का निश्चय किया ।

जब इनके द्वारा निर्मित जीन ऐश्कशिया कोली के अंदर एक-एक करके उन्होंने इस जीवाणु के २०७ जीन बनाए । इस अनुसंधान की उच्चतम उपलब्धि अगस्त, १९७६ में हुई, जब इनके द्वारा निर्मित जीन ऐशकरिशिया कोली के अंदर प्रविष्ट कराया गया | इस जीन मे प्राकृतिक जीन की तरह ही काम प्रारम्भ करना किया | इस उपलब्धि से सारे संसार में तहलका मच गया । कहने में जीन का निर्माण एक सरल सी बात लग सकती है लेकिन जीन के निर्माण मे डा. खुराना और उनके २४ साथियो को ९ वर्ष का समय लगा । मानव जीन का निर्माण करना यदि स्वप्न नहीं तो आज भी एक दूर की संभावना लगती है क्योंकि मानव जीन की रचना बड़ी जटिल होती है ।

नोबेल पुरस्कार के अतिरिक्त खुराना को और भी अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। सन् १९५८ में इन्हें कनाडा का मक (Merch) मैडल, सन् १९६० में कनाडियन पब्लिक सर्विस का स्वर्ण पदक, सन् १९६७ का डैनी हैनमन पुरस्कार, सन् १९६८ का लास्कर फैडरेशन पुरस्कार और सन् १९६८ को ही लसिया ग्रास होरूटिज पुरस्कार डा. खुराना को मिल चुके हैं ।

अब तक इनके 300 से भी अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं । सन् १९६९ में डा. खुराना भारत आये । भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया । पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ ने इन्हें डा. ऑफ साइंस की ऑनरेरी डिग्री प्रदान की ।

इस महान वैज्ञानिक का निधन ९ नवंबर २०११ को अमेरिका मे हुआ |

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