योगेश चन्द्र चटर्जी । Yogesh Chandra Chatterjee

योगेश चन्द्र चटर्जी । Yogesh Chandra Chatterjee

श्री योगेश चन्द्र चटर्जी पूर्व-बंगाल के ढाका ज़िले के रहने वाले थे । इनके जीवन का प्रायः सभी हिस्सा बंगाल में बीता था । जिस समय इनकी उम्र सिर्फ १५ वर्ष की थी, तभी से ये क्रान्तिकारी दल के सदस्य थे । इन्होंने अपने देश की सेवा और सिद्धान्तों की रक्षा के लिये जो कष्ट सहे, जो त्याग किये, वे अनोखे हैं । इन्होंने अपने व्यक्तिगत सुख-सौभाग्य आदि का कुछ भी खयाल न करके अपना तन-मन-धन, सर्वेस्व देश के लिये न्यौछावर कर दिया । अपनी छोटी सी अवस्था में ही इन्होंने प्रशंसनीय मर्दानगी और साहस के साथ जो-जो यन्त्रणाएँ सहीं, उन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और इनके प्रति अनायास ही श्रद्धा उमड़ आती है ।

१९१६ में पहले-पहल ये पुलिस के पंजे में पड़े । उन दिनों बंगाल की अवस्था बडी खतरनाक थी । सरकार के छक्के छूट गये थे । रोजाना पुलिस की पिस्तौल से सामना किया जाने की स्थिति थी । पुलिस को यह विश्वास हो गया था, कि योगेश बाबू भी इस प्रकार के कामो में लिप्त हैं । इसलिये उसने इनसे इस सम्बध में कुछ बाते जानने की चेट्टा की । शुरू में मीठी-मीठी बातों से, फिर लालच देकर और फिर धमकी से काम लिया गया । पर इन्होंने साफ-साफ इनकार कर दिया, कि “मैं कुछ नहीं जानता ।” पुलिसवालों ने इन्हें मारना तथा हर प्रकार से तंग करना शुरू किया । चाँटे मारे; घूँसे और लाते मारी, लिटाकर लकड़ी के एक मोटे रूल से पीठ पर मार-मार कर लहू-लुहान कर दिया; खाने को एक-दो पूरी तथा नाम-मात्र की तरकारी देकर कई दिनों तक उपवास करने को मजबूर किया और स्नान करने तक की मनाही कर दी गयी । पुलिस नैतिक शक्ति को पशु-शक्ति के सामने विजित करना चाहती थी । परन्तु योगेश बाबु टस-से-मस न हुए। अन्त में उसने, इस वीर नौजवान को गिराने के लिये एक अत्यन्त वीभत्स और अमानुषिक तरीक़ा उपयोग मे लाया । दो आदमियों से श्री योगेशचन्द्र जी के दोनों हाथ पकड़वाकर तीसरे आदमी के हाथ से कई बार अप्राकृतिक ढँग से उनका वीर्य स्खलन करवाया गया और इसके बाद, उसी अवस्था में, उनके सिर पर मल से भरा हुआ एक बड़ा गमला एक मेहतर के द्वारा उलटवा दिया गया । सिर से लेकर पैर तक उनके बदन का सब हिस्सा मल से भर गया । शायद उनके ओठों के बीच में भी कुछ पहुँच गया । बदबू से हवा तक खराब हो गयी पर इसी अवस्था में, उन्हें देर तक रखा गया ! बदन घोने के लिये पानी का एक बूँद तक नहीं दिया गया । पुलिस इस प्रकार उनको कमज़ोर और पतित बनाना चाहती थी; परन्तु योगेश चन्द्र चटर्जी उस वक्त पत्थर की तरह अटल रहे ।

इसके बाद सरकार ने इन्हें १८१८ के सीखरे रेगूलेशन के मुताबिक राज्य कैदी बनाके रखा । महायुद्ध की समाप्ति के बाद ये छोड़ दिये गये । इसके बाद भी पुलिस को बराबर यह संदेह बना रहा, कि ये बराबर क्रान्तिकारी कार्यो मे भाग लेते हैं । पर वे गिरफ्तार नहीं किये जा सके । इन्हीं दिनों असहयोग आन्दोलन चला और इन्होंने अपने को उसमें डाल दिया और गाँव-गाँव में रचनात्मक कार्य के लिये काफी दौड़-धूप की । बाद को असहयोग आन्दोलन की शिथिलता के कारण उस आन्दोलन पर से इनका विश्वास उठ गया । दिल्ली की स्पेशल कॉफ्रेस के समय ये वहीं थे । पुलिस का खयाल है, कि दिल्ली में उस मौके पर विभिन्न प्रान्तों के क्रान्तिकारी नेता पधारे थे और उन्होंने एक सभा करके यह तय किया, कि क्रान्तिकारी आन्दोलन फिर ज़ोर के साथ चलाया जाये ।

योगेश चन्द्र चटर्जी संयुक्त प्रान्त में क्रान्तिकारी केन्द्रों की स्थापना के लिये बंगाल की तरफ से नियुक्त किये गये थे और उन्होंने इस प्रान्त में यह आन्दोलन आरम्भ करवाया । १९२४ में सन्युक्त प्रान्त के प्राय: सभी शहरों में राय महाशय के नाम से इन्होंने भ्रमण किया । इधर के लोगों से अपरिचित होने के कारण इस कार्य में इन्हें अनेक कठिनाइयाँ भी पड़ीं, पर सबका सामना करते हुए ये अपने कार्य में लगे रहे । शुरू में इन्होंने बनारस और शाहजहाँपुर में काम किया । बनारस में उनको कुछ तो पुराने क्रान्तिकारियों से मदद मिला और कुछ शाहजहाँपुर में श्रीराम प्रसाद ” बिस्मिल” से ।

श्री रामप्रसाद जी सदा इनकी बड़ी तारीक करते थे । कुछ दिनों के बाद ये सब भार रामप्रसादजी पर छोड़ बंगाल चले गये । वहाँ बंगाल की पुलिस बहुत दिनों से इनकी तलाश में हैरान थी । एकाएक एक दिन हथड़ा-पुल पर पुलिस के कई उच्च अधिकारियों द्वारा घेर कर ये गिरफ्तार कर लिये गये । कहते हैं, कि उनकी जेब में पाये गये एक पत्र के द्वारा पुलिस का यह पता लगा, कि बंगाल से बाहर-उत्तर भारत के पचास बड़े-बड़े शहरों में क्रंतिकारी दल काम कर रहे हैं । सरकार उस कागज़ के मिलते ही सम्भवत: घबरा गयी; और इस घटना के कुछ ही दिनों वाद बंगाल में काला कानून जारी हो गया, जिसके अनुसार बंगाल के पचासों निर्दोष व्यक्ति जेलों में ठूँस दिये गये । श्री योगेश चन्द्र चटर्जी भी आर्डिनेन्स के ही अनुसार नजर बन्द कर लिये गये। बिहार के गवर्नर और बंगाल के तत्कालीन होम मेम्बर ने उक्त पत्र का हवाला बंगाल कौंसिल में दिया था । शुरू में योगेश चन्द्र चटर्जी बंगाल के ब्रह्मपुर जेल में रखे गये थे । यहाँ के काले कानून के कैदियों पर, इनका बड़ा प्रभाव देख, सरकार ने इन्हें इनके एक साथी श्री सन्तोष कुमार के साथ हज़ारीबारा भेज दिया ।

परिवर्तन के वक्त इन पर जो जुल्म हुए, उसकी निन्दा के लिये बंगाल-कौन्सिल में बड़ी आँधी उठी और यहाँ तक, कि कौन्सिल की कार्रवाई स्थगित करने तक का प्रस्ताव पास हुआ । हज़ारीबाग से ये नज़रबन्दो की हालत में काकोरी-पड़यन्त्र के मुकदमे में लाये गये । सरकारी वकील ने इन्हें इस षडयन्त्र का जनक बतलाया था । पुलिस इनसे बहुत अधिक इसलिये जलती थी, कि इतनी दूर से आकर वह यहाँ के सीधे-सादे आदमियों को क्यों राजद्रोही बनाता है, सेशन्स जज ने इन्हें दस साल की सज़ा दी थी; परंतु पुलिस ने अपील की और चीफ कोर्ट से इन्हें आजन्म काले पानी की सज़ा दिलवा के ही छोड़ा ।

ये बड़े ही गम्भीर प्रकृति के आदमी थे । बोलते बहुत कम हैं और प्रायः ‘हा’ या ‘नहीं’ कहकर ही अपनी राय बतला देते थे । जोर से हसने के बजाय मन्द मन्द मुस्कराहट से ही अपना काम चला लेते थे । बराबर मुसीबतों का सामना करते रहने के कारण इनके चेहरे पर त्याग की एक छाप सी पड़ गयी थी । ब्रह्मपुर जेल में आर्डिनेन्स के सभी क़ैदी इनकी बड़ी इज्जत करते थे । इनका उज्जवल व्यक्तित्व और त्याग ही इसका मुख्य कारण था । इनमें संगठन-शक्ति बहुत ज़बरदस्त थी और अपने सहकारियों को प्रेम से वश में करना खूब जानते थे । विपत्ति में कमी नहीं घबराते । सब काम नियम-पूर्वक करते ।

सन्युक्त प्रान्त के विभिन्न नगरों का इन्होंने कई बार दौरा किया था । कार्य करने की इनकी क्षमता और दक्षता का एक बड़ा सुन्दर उदाहरण “कुमिल्ला लेबर यूनियन” नामक संस्था है । इस कम्पनी में लोहे आदि का काम होता था । मशीनों के पुर्जे भी बडी तादाद में बनाये जाते थे ।

योगेश चन्द्र चटर्जी आजन्म ब्रह्मचारी थे और आजीवन विवाह नहीं करना चाहते थे । योगेश चन्द्र चटर्जी ने हवालात में १५ रोज़ और सज़ा के बाद फतेहगढ़ जेल में ४५ दिनों तक अनशन किया था । शरीर से कमज़ोर होने के कारण ४५ दिनों तक लगातार अनशन करके वे मृतप्राय हो गये थे । जेल के कैदी इनकी बड़ी इज्ज़त करते और इनके लिये हर एक तकलीफ सहने को तैयार रहते थे । अधिकारियों को यह बहुत खटका और उन्होंने फतेहगढ़ से इन्हें आगरा सेट्रल जेल में भेज दिया । बड़े अच्छे तैराक होने के साथ ही नाव चलाना भी ये खूब जानते थे । जेल में हमेशा कबड्डी आदि खेलों में बराबर भाग लेते थे । गाना गाने में ये बड़ निपुण हैं और जिस समय मस्त होकर गाना गाने लगते, उस समय सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *