ऑस्ट्रेलिया का इतिहास | ऑस्ट्रेलिया प्राकृतिक | आस्ट्रेलिया के खोज-यात्री | Explorers of Australia | Famous Australian explorers

ऑस्ट्रेलिया का इतिहास

ऑस्ट्रेलिया का इतिहास | ऑस्ट्रेलिया प्राकृतिक | आस्ट्रेलिया के खोज-यात्री | Explorers of Australia | Famous Australian explorers

आस्ट्रेलिया (Australia) विश्व का सबसे छोटा महाद्वीप है लेकिन इस विषय में अनेक कहानियां प्रचलित थीं । लोग अक्सर इस महाद्वीप के विषय में कुछ न कुछ सोचा करते तथा इसे दक्षिणी भूमि के नाम से पुकारते थे । इस महाद्वीप की खोज किसी एक व्यक्ति ने नहीं की बल्कि इसकी खोज में अनेक यात्रियों का योगदान शामिल है ।

१७वीं शताब्दी में प्रशांत महासागर के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए डच यात्रियों ने कई खोज-यात्राएं कीं । इन यात्रियों का मुख्य उद्देश्य था किसी महाद्वीप को खोजना और उसके साथ व्यापार बढ़ाकर अपने को धनी बनाना ।

सर्वप्रथम डच लोगों का डुफकेन (Duyfken) नामक जहाज सन् १६०६ में खोज करता हुआ आस्ट्रेलिया के उत्तरी किनारे पर पहुंचा । जहाज के कुछ यात्री उतरकर किनारे से अपने बर्तनों में पानी भरने के लिए गये तो वहां के क्रूर निवासियों ने उन्हें पानी नहीं भरने दिया और मारकर भगा दिया । इस प्रकार यह जहाज आस्ट्रेलिया के विषय में कोई जानकारी प्राप्त किये बिना वापस लौट गया ।

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सन् १६१६ में एक अन्य डच यात्री डर्क हार्टोग (Dirk Hartog) पश्चिमी आस्ट्रेलिया पहुंचने वाला पहला व्यक्ति था ।

इसके बाद सन् १६४२ में डच निवासियों ने कैप्टन एबेल जेन्सजून तम्मान (Abel Janszoon Tasman) को भेजा । वह बाटाविया (Batavia) के किनारे इन मार्गों से होता हुआ अगस्त, १९४२ में हिंद महासागर में मॉरीशस पहुंचा ।

२४ नवंबर को वह आज के तस्मानिया टापू पर पहुंचा । आगे बढ़ते हुए उसने न्यूजीलैंड को भी खोज निकाला और जून, १६४३ में वापस आ गया । यद्यपि वह सारे रास्ते आस्ट्रेलिया जैसे विशाल टापू की परिक्रमा करता रहा लेकिन फिर भी उसे इसका पता न चल सका ।

१७वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटेन ने दक्षिणी सागरों की खोज के लिए एक दल भेजा । विलियम डेंपियर (William Dampier) पहले अंग्रेज यात्री थे जिन्होंने आस्ट्रेलिया को देखा । सन् १६९९ में इस बहादुर यात्री ने उत्तरी-पश्चिमी आस्ट्रेलिया की खोज की । पिछले यात्रियों की भांति इस व्यक्ति ने भी यही अनुभव किया कि वहां के निवासी काफी क्रूर थे । आस्ट्रेलिया के विषय में यह विचार लंबे समय तक बना रहा ।

इसके पश्चात् एक अंग्रेज कैप्टन जेम्स कुक (James Cook) ने आस्ट्रेलिया के पूर्वी किनारे की खोज की । जेम्स कुक एक गरीब अंग्रेज किसान का बेटा था । उसने सन् १७५५ में ब्रिटिश नौसेना में नौकरी आरंभ की । उसे ज्योतिष विज्ञान और मानचित्र बनाने में काफी दिलचस्पी थी । सन् १७६८ में कुक को प्रशांत महासागर के खोज-यात्री दल का कमांडर नियुक्त किया गया । कमांडर कुक कई वैज्ञानिकों के साथ अगस्त, १७६८ में अपनी खोज-यात्रा आरंभ की । सन् १७६९ में वह ताहिती (Tahiti) पहुंचा । वहां उसने शुक्र ग्रह के विषय में अनेक जानकारियां प्राप्त कीं । इसी वर्ष के जुलाई माह में वह न्यूजीलैंड पहुंचा जहां उसने अनेक समुद्री किनारों के मानचित्र तैयार किये तथा सर्वप्रथम यह सिद्ध किया कि न्यूजीलैंड दक्षिणी महाद्वीप का हिस्सा नहीं है । न्यूजीलैंड का मानचित्र बनाने के बाद कुक ने पश्चिम की ओर अपनी यात्रा आरंभ की । अप्रैल, १७७० में वह आस्ट्रेलिया के दक्षिणी पूर्वी किनारे पर जा पहुंचा और खुशी से नाच उठा ।

उसका दावा था कि आस्ट्रेलिया का पूर्वी हिस्सा ब्रिटेनवासियों के लिए बहुत उपयुक्त है । सन् १७७२ में कुक ने अपनी दूसरी यात्रा आरंभ की और वह दक्षिणी में अंटार्कटिक वृत्त (Antarctic Circle) तक पहुंच गया । वह दक्षिणी ध्रुव २००० कि.मी. की सीमा में था । विशाल बर्फ के कारण वह आगे न बढ़ सका । वहां उसने प्रशांत महासागर के अनेक टापुओं के मानचित्र तैयार किये । सन् १७७७ में उसने हवाई टापू की खोज की, लेकिन १४ फरवरी, १७७९ को उसे वहां मार दिया गया ।

सन् १७८८ में आस्ट्रेलिया में अंग्रेजों ने एक कालोनी बनायी जिसे आज सिडनी शहर के नाम से जाना जाता है । जेम्स कुक की गिनती आज भी महान समुद्री यात्रियों में की जाती है और उसे पूर्वी आस्ट्रेलिया का खोज-यात्री कहा जाता है । अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी उस साहसी व्यक्ति ने प्रशांत महासागर में तीन महान यात्राएं कीं ।

मैथ्यू फ्लाइंडअर्स (Matthew Flinders) पहले यात्री थे जिन्होंने यह सिद्ध किया कि पूर्वी आस्ट्रेलिया उसी महाद्वीप का अंग है जिसका की न्यू हार्लंड है ।

फ्लाइंडअर्स ने एक दूसरे यात्री जार्ज बास (George Bass) के साथ सन् १७९८-९९ में दक्षिणी पूर्वी आस्ट्रेलिया और तस्मानिया की खोज की । फ्लाइंडअर्स ने सन् १८०१ में आज के सिडनी नामक स्थान को खोजा ।

आस्ट्रेलिया के आंतरिक भागों को खोजने में काफी समय लगा । इसका कारण था पूर्वी किनारे के दुर्गम पर्वतों की यात्रा । सिडनी के पीछे के पर्वत सन् १८१३ में पार किये गये । सन् १८२४ में हेमिलटन हूम (Hamilton Hume) आस्ट्रेलिया में जन्मा पहला खोज-यात्री था जो उस स्थान तक पहुंचने में सफल हुआ जहां आज मेलबोर्न शहर बसा हुआ है ।

उस समय तक की आस्ट्रेलिया का मध्य और पश्चिमी सूखा भाग खोजा नहीं गया था, गर्मी, पानी की कमी और दुर्गम रास्तों ने यात्रियों की हिम्मत पस्त कर दी थी । सन् १८४४-४५ में चार्ल्स स्टर्ट (Charles Sturt) ने आस्ट्रेलिया के मध्य भाग में जाने का प्रयास किया लेकिन कठिनाइयों के कारण उसे वापस आना पड़ा । सन् १८४८ में लुड विग लिचार्ड (Lud wig Leichhardt) ने मध्य आस्ट्रेलिया को पार करने की कोशिश की लेकिन उसका दल कभी वापस नहीं लौटा ।

सन् १८६० में दक्षिणी आस्ट्रेलिया की सरकार ने आस्ट्रेलिया को दक्षिण से उत्तर तक पार करके जाने वाले व्यक्ति के लिए २००० पौंड का पुरस्कार घोषित किया । अप्रैल, १८६० में जॉन मैकडॉउल स्टुअर्ट (John McDouall Stuart) ने इसका प्रयास किया और वह जुलाई, १८६२ में उत्तरी किनारे तक पहुंच गया, लेकिन एक दूसरे खोज-दल ने उसके दल की पिटाई कर दी । इसी लक्ष्य हेतु अगस्त, १८६० में रॉबर्ट ओ’हारा बर्क (Robert O’Hara Burke) और विलियम विल्स (William Wills), मेलबोर्न से रवाना हुए, लेकिन रास्ते में उनके खाने-पीने की सामग्री समाप्त हो गयी और दोनों साहसी यात्रियों को भूख के कारण ही मरना पड़ा ।

आस्ट्रेलिया आज विश्व के विकसित महाद्वीपों में से एक है, लेकिन एक तथ्य के अनुसार यह माना जाता है कि लगभग २० हजार वर्ष पहले तास्मनोयड लोग न्यूगिनी से आकर आस्ट्रेलिया में बस गये थे । उन्हीं दिनों दक्षिणी भारत से आस्ट्रेलाइड जाति के लोग भी वहां जाकर बस गये । अधिक से अधिक जमीन पर कब्जा करने के लिए इन दोनों जातियों में लड़ाई शुरू हो गयी । इस लड़ाई में तास्मनोयड हार गये, जिन्हें आस्ट्रेलाइड जाति के लोगों ने खदेड़कर बाहर भगा दिया । पराजित तास्मनोयड एक अन्य स्थान पर जाकर बस गये, जिसे आज हम तस्मानिया कहते हैं । आस्ट्रेलाइड लोग ही आस्ट्रेलिया के आदिवासी हैं ।

आस्ट्रेलिया विश्व का एक विचित्र महाद्वीप है । इसकी दो तिहाई जमीन मरुस्थल है । कंगारू जैसे विचित्र जंतु इसी महाद्वीप में पाये जाते हैं । इस महाद्वीप में खरगोश बहुत अधिक संख्या में पाये जाते हैं । एक समय ऐसा भी था जब खरगोश वहां के लिए एक विकट समस्या बन गये थे । वहां पर सोना, टंगस्टन, मैगनीज व सीसा धातुओं के अयस्क काफी अधिक मात्रा में मिलते हैं । संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि आस्ट्रेलिया विश्व के खुशहाल देशों में से एक है ।

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