इंद्रजाल – एक अनोखी कहानी – भाग २ | तांत्रिक की कहानी – भाग २ | Indrajal – A Unique Story – Part 2 | Story of Tantrik – Part 2

इंद्रजाल – एक अनोखी कहानी - तांत्रिक की कहानी

इंद्रजाल – एक अनोखी कहानी – भाग २ |

तांत्रिक की कहानी – भाग २ | Indrajal – A Unique Story – Part 2 |

Story of Tantrik – Part 2

भले आदमी ने अपने तख्त के नीचे रखा हुआ बेहद पुराना पीतल का एक लैंप निकाला काफी बड़ा था वह । तोते जैसी शक्ल थी उसकी । सिर पर बत्ती लगी थी । वह समूचा काला पड़ गया था । उस लैंप को मेरे सामने रखते हुए वे बोले, “इसे देखिए, यह भी मेरे लिए अत्यंत बहुमूल्य है |

तोतानुमा उस लैंप से रेंडी के तेल की गंध आ रही थी ।

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“चलें, डॉ. नारद, ” ब्रजेन राय ने मुझसे कहा । उनके लहजे से लगा, वे भी मधुसूदन हालदार के यहां बैठे हुए ऊब रहे थे। “बारिश होने वाली है।” वे बोले ।

“आप इनका तमाशा जल्दी ही देखेंगे।” मधुसूदन हालदार बोले,

“मुझे मालूम है, तमाशा जल्दी ही होगा। ” उनका स्वर बेहद रहस्यपूर्ण हो गया था ।

हम दरवाजे की तरफ बढ़ गये । मधुसूदन हालदार ने लम्हों मुझे उद्भ्रांत से प्रतीत हुए । कुछ कुछ पागल से ।

“आप तो रहस्य रोमांच की कहानियां लिखते हैं न डॉ. नारद ।”

बोले, मुझे यकीन है, आप उस तमाशे पर जरूर कोई कहानी लिखेंगे….

लिखेंगे न ?”

उनका आखिरी सवाल जैसे मैंने सुना नहीं हो, इस अंदाज में मैं उनके घर से बाहर निकल आया । ब्रजेन राय मेरे साथ ही थे । बारिश तेज हो चली थी । लगभग दौड़ते हुए से हम दोनों अपने होटल में पहुंचे । कमरे में घुसकर जब स्विच दबाया, तो बत्ती नहीं जली । बरामदे में जाकर बेयरा को पुकारने की जरूरत नहीं पड़ी । मोमबत्ती लिए वह कमरे की तरफ ही आ रहा था । जब मैंने पूछा कि बिजली जाने की वजह क्या है तो उसने बतायो, .” ज्यादा बारिश में बस्ती की बत्ती बुझना एक साधारण घटना है आठ बजे खाना-पीना समाप्त कर जब मैं लिखने बैठा, तो मन नहीं लगा । मन बार-बार दौड़कर मधुसूदन हालदार की तरफ जाने लगा । बस्ती से इतनी दूर, निपट एकांत में वह सज्जन एकाकी जिंदगी कैसे गुजार रहे हैं । न कोई संगी न साथी । सिर्फ एक नौकर और बंदर का वह पंजा, हिरन के वे सींग, पीतल का वह तोतानुमा लैंप । इन सबका इंतजाम कहां से किया उन्होंने ।

उनसे क्या सचमुच ही किन्हीं सिद्धियों को हासिल करते हैं वे और किस तमाशे की बात कही थी उन्होंने । कौन-सा तमाशा होनेवाला था बस्ती में, जिस पर मुझे कहानी लिखनी थी । मधुसूदन हालदार मुझे रहस्यमय लगे ।

इसी उधेड़बुन में मेरी नींद कब लग गयी, पता ही नहीं चला । दूसरे दिन सुबह ६ बजकर १५ मिनट पर जब मेरी नींद खुली, देखा, बादल रात में ही छंट गये हैं । मेरा दूथपेस्ट खत्म हो रहा था । नौ बजने पर बाजार की तरफ निकल पड़ा ।

होटल से दो फर्लांग की दूरी पर बाजार था । लेकिन दूकानें तब भी नहीं खुली थीं । अजीब-सा सन्नाटा पसरा था लालपुल गांव में । बीजासेनी देवी के मंदिर की तरफ जो रास्ता जाता था । वहां भी २-४ दूकानें थीं ।

मुमकिन है, वे दूकानें खुल गयी हों, यह सोचकर उस तरफ कदम बढ़ाए मैंने कि तभी ब्रजेन राय मिल गये । वे अपनी टार्च के सेल की तलाश में निकले थे ।

आज सारी दूकानें बंद क्यों हैं, ब्रजेन बाबू,” मैंने उनसे पूछा ।

“बाजार आज शायद ही खुले।” वे बोले, ” यहां के भूतपूर्व मालगुजार नेमीगोपाल पांडेय की कैंसर से नागपुर में मृत्यु हो गयी है । वे यहां के राजा साहब कहलाते थे।”

“ओह! “मैंने कहा,” तभी ।

वे क्षण भर असमंजस में खड़े रहे, फिर बोले, ” और भी एक विचित्र घटना हो गयी है, गांव में ।

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