इंद्रजाल – एक अनोखी कहानी – भाग ३ | तांत्रिक की कहानी – भाग ३ | Indrajal – A Unique Story – Part 3 | Story of Tantrik – Part 3
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से उनकी तरफ देखा ।
रामगोपाल असाटी यहां के प्रतिष्ठित नागरिक हैं । ब्रजेन बाबू ने कहा, “उनकी जवान, विवाह योग्य कन्या काफी बड़े संकट का शिकार हो गयी है। “
“कैसा संकट ?”
“पिछली रात से उसका खाना-पीना सब बंद है, डॉ. नारद ।“ ब्रजेश राय ने कहा, ” वह किसी बड़े हादसे का शिकार हो गयी लगता है ।“
मैंने उनसे पूछा कि दुर्घटना किस तरह से हुई और कहां ।
“यह किसी भी प्रकार की शारीरिक दुर्घटना का मामला नहीं है,” वे बोले, ” कल रात ६ बजे के करीब जब वह अपने घर वापस आ रही थी, उसके साथ बेहद सनसनीखेज और सर्वथा अविश्वसनीय-सा मामला घटित हुआ ।“
और फिर इस संबंध में ब्रजेन राय ने मुझे जो कुछ बतलाया, वह यदि सचमुच सच था, तो निश्चय ही एक स्तब्ध कर देने वाला और अविश्वसनीय-सा प्रसंग था ।
रामगोपाल असाटी की युवा और सुंदरी पुत्री विमला बस्ती की सबसे खूबसूरत युवतियों में गिनी जाती थी । उसके विवाह की चर्चा चल रही थी । कुछ लोग उसे देखने भी आ चुके थे । पिछली रात चौधरी मुहल्ले में विमला की सहेली रुक्मणी की सगाई का समारोह था ।
चौधरी मुहल्ला को जाने वाला रास्ता अपेक्षाकृत सूनसान है और आम तथा सागौन के दरख्तों के बीच से होकर जाता है । बारिश की वजह से विमला को रुक्मणी के घर से निकलने में देर हो गयी । रात दस बजे के करीब जब वह आम और सागौन के घने दरख्तों से होकर अपने घर की तरफ जा रही थी, बादल छंट गये थे और चांद निकल आया था । चांदनी में वहां का जर्रा-जर्रा चमक रहा था । दरख्तों, उनकी डालियों, पत्तियों और यहां-वहां बिखरी वनस्पतियों पर भी चांदनी चमचमा आई थी । बोराड़ की भी लहरें और रेत भी चमक उठी थी उस ज्योत्सना में । रास्ता सूनसान जरूर था, लेकिन बहुत ही निरापद । गांव की किसी भी लड़की के साछ छेड़छाड़ या जबरदस्ती की कोई भी घटना लालपुल में आज तक नहीं हुई थी । खुद विमला पचासों दफा उस बियावान से रातों में गुजर चुकी थी । निर्भय होकर वह अपने घर की तरफ कदम बढ़ाती जा रही थी उस रात ।
दूर-दूर तक सन्नाटा था । चांदनी अपने पूरे शबाब पर थी । जब हवा चलती, दरख्तों में आलोढ़न होता । गांव की सीमा के पास बने मरी माता के मंदिर में बजते ढोल की आवाज हवा की पेंगों पर तैरती हुई यहां तक बह आती, उसके साथ-साथ करताल और मंजीरों पर गाये जाते भजन के बोल भी, “मोरी पत राखो, हे मैया महारानी… ।“
तभी हवा का एक तेज झोंका आया और दरख्त जोर-जोर से हिलने लगे । सड़क के दोनों तरफ उगे सरकंडों के झुंडों में भी विकट कंपन हुआ । लगा, दोनों हाथों से पकड़कर उन्हें जैसे कोई झकझोर रहा हो । उस प्रभंजन में चांदनी भी सिहरती-सी महसूस हुई । हवा के तेज झोकों से नदी किनारे की रेत भी करकराई और फिर सरकंडों की दीवार फाड़कर, उनके भीतर से दो आकृतियां अपनी ओर आती नजर आई विमला को ।
विमला उन्हें देखकर ठिठकी । घर की ओर बढ़ते हुए उसके कदम धमथमा गये । एक महिला और एक पुरुष थे वे । विमला से नितांत अपरिचित | लालपुर के भी निवासी प्रतीत नहीं हो रहे थे वे । उनकी आकृतियां अजीब-सी थीं । पुरुष का माथा संकरा था, नाक चौड़ी और गहरा सांवला रंग । वैसा विशालकाय व्यक्ति विमला ने अपने आसपास कहीं देखा हो, उसे याद नहीं आया । उस आदमी ने बदन पर एक धारीदार फतूही पहिन रखी थी और छोटे किनारे की धोती । हाथ की मांसपेशियां, कलाई का घेरा, सीना और गर्दन की चौड़ाई देखकर वह स्तंभित रह गयी । हालांकि उस आदमी की लंबाई पांच फिट और दो या तीन इंच से अधिक नहीं थी । उम्र होगी कोई ३५ वर्ष । वह अपलक विमला की तरफ घूर रहा था । होठों के कोने में एक निष्ठुर-सी हंसी उभर आई थी ।
स्त्री की उम्र भी तीस वर्ष के आसपास थी । उसका रंग गेहुआ था । उसकी भी आकृति विशाल थी, लेकिन पुरुष की अपेक्षाकृत कम । भरा हुआ जिस्म था उसका । लाल रंग की साड़ी उसने पहन रखी थी । उसके अलावा देह पर कुछ भी नहीं था । हवा चलने पर उसका आंचल जब गिरता, उसके गुदाज मांसल स्तन उघड़ जाते । काफी सख्त, पत्थर जैसी प्रतीत होती थी उसकी वे नंगी छातियां ।
वह औरत भी विमला की तरफ तीक्ष्ण दृष्टि से देख रही थी । “हमें कुंडाली जाना है, वह पुरुष बोला, “वहां जाने का रास्ता कौन-सा है ? “
कुंडाली कोई रास्ता नहीं जाता था लालपुल से । पहाड़ों के पार थी वह बस्ती ।
विमला बोली, “यहां से दक्षिण की तरफ जैतपुर होकर जाना पड़ेगा । दो पहाड़ों के बाद कुंडाली है । यहां से काफी दूर है वह गांव ।”
“तब तुम कुंडाली चलो हमारे साथ वह औरत भुनभुनाकर बोली, “हम तुम्हें भी कुंडाली ले जाएंगे ।
“मैं भला तुम्हारे साथ कुंडाली क्यों जाऊं ?” विमला तमतमाकर बोली, “तुम आखिर हो कौन ?”
और तभी वह सिहर उठी । उस पुरुष और महिला के पैरों की तरफ निगाह पड़ी थी उसकी और मारे आतंक के, उसका खून जैसे पानी हो गया था उन लम्हों मे ।
पैर नहीं थे उन दोनों के । शून्य में टंगे थे वे और मारे उत्तेजना के, झूम रहे थे । हवा में लहराती उनकी काया विमला की तरफ बढ़ने का उपक्रम कर रही थी ।
“अरे, बाप रे !” भयभीत विमला चिल्लाई और बदहवास-सी अपने घर की तरफ भागी |
अपने पीछे विकराल अट्टाहास सुनाई दिया उसे | खून जमा देने वाली वीभत्स हंसी थी वह, वह हंसी विमला को अपना पीछा-सा करती हुई प्रतीत हुई |
रामगोपाल असाटी अपने बेटी का इंतजार कर रहे थे | दरवाजे पर कुछ गिरने की आवाज सुनकर उनका दिल धक-से रह गया | किवाड़ खोलने पर दहलीज पर चौचीर पड़ी अपनी बेटी नजर आई थी उन्हें । अवश, बेहोश ।
“दो घंटे बाद ।“ ब्रजेन बाबू बोले, “विमला को होश तो आ गया, लेकिन उसके बाद शुरू हो गया एक विचित्र तमाशा । आप शायद ही यकीन करें ।
” कैसा तमाशा ?” मैंने पूछा । मुझे सचमुच कौतूहल हो रहा था वह सारा किस्सा सुनकर ।
“होश में आते ही विमला ने खाना मांगा, ” ब्रजेन राय ने कहा, “उसकी मां थाली परोसकर लाई । लेकिन रोटी का टुकड़ा विमला ने जैसे ही दाल में डुबोया, वह हड्डी बन गया और दाल तब्दील हो गयी लाल-लाल खून में । “