वास्को द गामा का इतिहास | वास्को द गामा भारत कब आया था | Vasco Da Gama in Hindi | Vasco Da Gama Kaun Tha
१५वीं शताब्दी के आरंभ तक समुद्री मार्गों के विषय में बहुत कम जानकारी थी । अमरीका और ऑस्ट्रेलिया तो खोजे ही नहीं गए और एशिया तथा अफ्रीका के विषय में भी बहुत कम ज्ञान था । लोगों को इतना भी ज्ञान नहीं था कि यदि कोई जलयान अफ्रीका के पश्चिमी किनारे की तरफ ले जाया जाये तो उसे हिंद महासागर से होते हुए भारत ले जाया जा सकता है ।
भारत जाने के लिए बहुत से यूरोपीय यात्रियों की लालसा बनी रहती थी । क्योंकि भारत एक धनी और संपन्न देश माना जाता था । कपूर, काली मिर्च, दालचीनी, अदरक और जायफल ऐसे मसाले थे जिनकी उन दिनों यूरोपवासियों में बहुत अधिक मांग रहती थी और भारत इन सभी मसालों के विषय में एक संपन्न देश था । यूरोपीय देशों के लोगों में इस बात की होड़ लगी हुई थी कि कौन पहले भारत पहुंचे और मसालों के व्यापार में अपना आधिपत्य स्थापित करे । इस कार्य के लिए दक्षिण-यूरोप के राष्ट्रों ने पहल की ।
समुद्री रास्ते से भारत ढूंढ़ने वाले यात्रियों में इटली के कुछ लोगों ने अफ्रीका के किनारे-किनारे होते हुए भारत आने का अभियान शुरू किया लेकिन कोई भी वापस न लौटा । अफ्रीका की दक्षिणी सीमाओं तक पहुंचने का श्रेय पुर्तगाल के बार्टोलोम्यू डियास (Bartolomeu Dias) को जाता है जिसने सन् १४८८ में अफ्रीका के दक्षिणी भाग तक पहुंचने की सफल यात्रा की । यात्रा के दौरान उसे अनेक समुद्री तूफानों का सामना करना पड़ा, लेकिन उस यात्रा से पुर्तगाल के राजा को यह विश्वास हो गया कि भारत जाने का रास्ता खोजा जा सकता है । अतः इस कार्य के लिए २८ वर्षीय पुर्तगाली समुद्री यात्री वास्को दा गामा को चुना गया ।
वास्को दा गामा पहला पुर्तगाली यात्री था जिसने भारत आने के लिए, एक नए और सुविधाजनक मार्ग की खोज की ।
८ जुलाई, १४९७ को वास्को दा गामा चार जहाजों के साथ, ११८ आदमियो का कप्तान बनकर लिसबन (Lisbon) बंदरगाह से भारत की ओर रवाना हुआ । पुर्तगाल के राजा मैनुएल (Manuel I) ने उसे एक पत्र दिया, जिसमें भारत के साथ व्यापार करने की प्रार्थना की गयी थी । लगातार तीन महीने तक समुद्र में यात्रा करते रहने के बाद भी उसे तट के दर्शन न हुए । रास्ते में उसे अनेक तूफानों का सामना करना पड़ा । २२ नवंबर को वह आशा अंतरीप पहुंचा, उसका काफिला वहां कई दिन तक चक्कर काटता रहा । उसे समुद्री लहरों से जूझना पड़ा । कुछ दिन मोजांबिक (Mozambique) में रुक कर उसने फिर यात्रा आरंभ की । वह हिंद महासागर से होता हुआ भारत का रास्ता खोजने में लगा हुआ था । रास्ते में भयंकर तूफानों, गर्मी और बीमारियों के कारण उसके कई साथी मर चुके थे । २४ अप्रैल को उनका बेड़ा पूर्वी अफ्रीका के मेलिंडी बंदरगाह से हिंद महासागर में प्रवेश कर गया । वह अपने रास्ते पर चलता रहा और अंततः १८ मई, १४९८ को वह भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर स्थित कालीकट (Calicut) बंदरगाह पहुंच गया । इस प्रकार दस महीने की कठिन यात्रा के बाद उसने भारत के लिए समुद्री रास्ता खोज लिया ।
उन दिनो भारत छोटे-छोटे राज्यो मे बटा हुआ था | मालाबार उनमें से एक था । कालीकट बंदरगाह उन दिनों पूर्वी व्यापार का मुख्य का केंद्र था | वहां से अरब, बल्जीरियाई और यहूदी व्यापारी मसालों से भरे जहाज ले जाते थे । मालाबार पहुचने पर वहा के राजा को पूर्तगाल के राजा का पत्र दिया और भारत के साथ व्यापार करने की आज्ञा प्राप्त की । लेकिन व्यापारी इस बात से भयभीत हो गये कि कहीं पूर्तगाल के लोग उनसे यह व्यापार छीन न लें । उन्होंने भारतीयों को पुर्तगालियों के विरुद्ध भड़काया, जिसके कारण उन्हें जल्दी ही वापस जाना पड़ा ।
वास्को दा गामा ५ अक्तूबर, १४९८ को अपने देश वापस चल पड़ा । उसके साथ भारतीय मसालों से भरे हुए जहाज थे । वह सितंबर, १४९९ में पुर्तगाल की राजधानी लिसबन पहुंचा तो वहां के राजा ने उसका भव्य स्वागत किया । लेकिन दुःख की बात यह थी कि रास्ते की कठिनाइयों के कारण उसके ११८ साथियों में से ६० से भी कम बच पाये । इसी समुद्री यात्रा में उसके भाई की भी मृत्यु हो गयी थी लेकिन उसे सबसे बड़ा संतोष यह था कि उसने एक नया काम किया है ।
वास्को दा गामा का बचपन से ही देखा हुआ सपना कि वह एक महान नाविक बनेगा, पूरा हो गया था । इस प्रकार वास्को दा गामा ने भारत पहुंचने का एक नया मार्ग खोल दिया । इसके बाद अनेक पुर्तगाली दूसरे रास्तों से भी भारत आये और भारत में एक पुर्तगाली बस्ती बस गयी ।
वास्को दा गामा का जन्म सन् १४६९ में इटली के वेनिस नगर में हुआ । बचपन से ही उसे एक बड़ा नाविक बनने की अभिलाषा थी । भारत की यात्रा से लौटने के बाद उसने अपनी यात्रा के महत्त्वपूर्ण संस्मरण लिखे । इसके बाद सन् १५२४ में वास्को दा गामा पुर्तगाली वायसराय के रूप में भारत आया । लेकिन वह ज्यादा दिनों तक न रह सका, २४ दिसंबर, १५२४ को कोचीन में उसकी मृत्यु हो गयी ।