मुकुन्दी लाल । Mukundi Lal
श्री मुकुन्दी लाल – Mukundi Lal इटावा जिले के उरइया कस्बे के रहने वाले थे । इनके पिता एक प्रसिद्ध अमीर व्यापारी थे । मरते वक्त वे काफी धन छोड़ कर गए थे । उस समय लाला मुकुन्दी लाल की उम्र सिर्फ १४ वर्ष थी । इनका राजनीतिक जीवन मैनपुरी पढ़यन्त्र के प्रसिद्ध नेता श्रीयुत गेंदालाल दीक्षित के साथ से, जो उस समय शिक्षक थे, आरम्भ हुआ । श्री गेंदालाल जी ही इन्हें इस पथ पर लाये थे । ये उन्हें अपना गुरु मानते थे । श्री गेंदालाल जी एक बार लोकमान्य तिलक से मिलने के लिये पूना गये थे । वहाँ से लौटने में देरी होने के कारण वे नौकरी से बर्खास्त कर दिये गये । उस समय मुकुन्दी लाल जी ने जी खोलकर उनकी मदद की । श्री मुकुन्दी लाल ने श्री गेंदालाल दीक्षित को उनके इस कार्य में खूब आर्थिक मदद पहुचायी । उन्होंने अपने मकान के एक बड़े हिस्से को भी उनके रहने के लिये दे दिया था । आरम्भ से ही ये क्रान्तिकारी दल के एक ज़िम्मेदार सदस्य रहे ।
कहते हैं, कि सन् १९१७ में हिन्दी के क्रान्तिकारी पर्चो के बाँटने में इनका ज़बर्दस्त हाथ था, जो एक ही दिन सारे युक्त-प्रान्त में बाँटा गया था, और जिसके कारण प्रान्त भर में भारी हल-चल मच गयी थी । इसके कुछ ही दिनों बाद मैनपुरी षड्यन्त्र का मुकदमा चला । श्री मुकुन्दी लाल भी उस सम्बन्ध मे गिरफ्तार हुए और छः साल की सज़ा पायी । अपनी पूरी सज़ा नैनी-जेल में काट कर सन् १९२६ मे ये मुक्त हुए । पुलिस इनसे बहुत चिढी हुई थी और सिर्फ इसी कारण १९२० में जब सभी लोग राज घोषणा में छोड़े गये तब श्री मुकुन्दी लाल नहीं छोड़े गये ।
उन दिनों जेल में बड़ी धाँधागर्दी हुआ करती थी, जिसके कारण जेल में इन्हें अनेक मुसीबतें सहनी पडी । कैदियो पर इनका बड़ा नैतिक प्रभाव रहा । जेल में वे महात्मा गाँधी के शिष्य कहे जाते थे । जेल से लौटकर इन्होंने फिर देश के कामो में हाथ बटाया। सन् १९२४ में इनकी भेट श्रीयुत शचीन्द्रनाथ बख्शी से झॉसी में हुई । इन्हीं की मदद से ये “हिन्दुस्थान रिपबिलिकन एसोसिएशन” के सदस्य बने । समिति के लिये इन्होंने दिल खोलकर काम किया । काकोरी के मुकदमे के आरम्भ से ही ये फरार थे । फरार के वक्त इन्हें अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ा । आज यहाँ हैं, तो कल वहाँ । न किसी से सहानुभूति मिलती थी, न किसी की मित्र बनाकर अपना सच्चा परिचय देने का ही साहस होता था, नियमित रूप से खाना भी नहीं मिलता था । रातको सोते वक्त एक चूहे की आवाज़ से भी दहशत मालूम होती थी । ऐसी अवस्था में भी ये सन् १९२५ को कानपुर की कांग्रेस देखने का लोभ सवरण न कर सके । कांग्रेस मे खुफिया लोगो के भरमार के कारण गिरफ्तार हो जाने की पूरी सम्भावना थी । पर इसकी इन्होंने कोई परवा नही की । इसी अवस्था में ये एक बार रेल में जब वेश बदले हुए सफर कर रहे थे, आगरे में एक इन्सपेक्टर ने उनसे टिकट माँगा । पास में पैसा न होने के कारण ये टिकट न ले सके । इन्सपेक्टर ने इन पर क़ानूनी कार्यवाही करने की इच्छा प्रकट की । मामला बहुत नाजुक था । किसी खुफिया से भेट हो जाना, कोई असम्भव बात न थी । अन्त मे इस देश-भक्त ने अपने पहनने के कपड़े बेचकर वहाँ से जान बचायी जबकी उन दिनों सख्त जाड़ा पड़ रहा था ।
इस घटना के कुछ ही दिन बाद श्री मुकुन्दी लाल दिन दहाड़े काशी के कारमाइकेल पुस्तकालय में गिरफ्तार हुए । गिरफ्तार होने की घटना आश्चर्यजनक थी । इनके परिचित एक देश भक्त महाशय ने सहायता भेजने के बहाने धोखा देकर, इनका बनारस का पता जान लिया और उन्हीं के विश्वासघात के कारण ये वहाँ पकड़े गये । ये कांग्रेस में खुफिया देशभक्त महाशय भी काकोरी के अभियुक्तो में थे पर अपनी करतूत और सरकार की विशेष कृपा से बाद मे बरी हो गये ! काकोरी के मुकदमे मे श्री मुकुन्दीलाल को दस साल सख्त कैद की सज़ा मिली पर पुलिस ने इनका नाम भी उन छहों में रखा, जिनकी सजा बढ़ाने के लिये उसने अपील की । फलस्वरूप इनकी सज़ा बढ़ाकर आजन्म काले पानी की कर दी गयी ।
अपनी पत्नी के एकमात्र सहारा होते हुए भी इन्होंने पत्नी का भार भगवान को सौंप दिया । मैनपुरी की कैद के बाद बाहर आकर इन्होंने अपनी सम्पत्ति को बिल्कुल भी नही पाया था उसे सरकार के द्वारा कब्जा कर लिया गया था । फिर भी ये निराश न हुए और अपने हृदय को खोखला नहीं बनने दिया । देश का कार्य वैसे ही करते रहे । ये जेल में बड़े धैर्य, शान्ति और सन्तोष के साथ रहते तथा चेहरे पर कभी उदासी नहीं आने देते ।
इनका शरीर बड़ा बलिष्ट था । पहलवानी का शौक़ इन्हें बचपन से ही था । इसमें नाम भी काफी बनाया था । दोनों बार के अनशन में इन्होंने भाग लिया था । इन्होंने अपने कस्बे के लोगों को पुलिस के जुल्मों से भरसक बचाया था; इससे पुलिस से श्री मुकुन्दी लाल की हमेशा खटपट बनी रही । काशी में रहते वक्त इन्होने कितनी ही औरतों को गुण्डों के हाथ से बचाकर या तो उनको उनके घर भेजने का प्रबन्ध करवा दिया या ऐसी संस्थाओं में रखवा दिया, जहाँ उनके मरण-पोषण का पर्याप्त प्रबन्ध हो गया ।