एक बार की बात है रतन टाटा
अपनी कार से कही जा रहे है और तेज बारिश हो रही थी | तभी
उन्होने देखा की एक पूरा परिवार दोपहिया मे भिंगता हुआ कही जा रहा है | तभी
उनके विचार मे आया की इस दुपहिया मे छत और रोलबार लगाया जा सकता है क्या ? ताकी
हर मौसम मे इसे उपयोग किया जा सके और यह सस्ता एवं सुरक्षित साधन हो |
जल्द ही उन्हे समझ आ गया
की उन्हे एक कार ही बनानी होगी | पर सबसे बड़ा सवाल यह था की
मोटर साइकिल चालक इसे किस दाम मे खरीदेंगे ? २००३
मे भारत मे सबसे सस्ती कार का दाम भी करीब २ लाख रूपय
था, मतलब
किसी मोटर साइकिल से करीब तीन गुना ज्यादा और वो थी
मारूती सुजुकी 800 |
रतन टाटा चाहते थे की उनकी
कार ज्यादा आधुनिक दिखे मगर उसका दाम मोटर साइकिल के दाम के आस-पास हो | एक इन्टरव्यू मे रतन टाटा से पूछा गया की आपकी इस योजना मे कार का क्या
दाम होगा ? और उन्होने कहा – “लगभग 1 लाख” | इस प्रकार ये समाचार ही हैड
लाइन्स बन गई | अब बात यह थी की रतन टाटा उस न्यूज
को झूठा साबित कर दे या उसे एक चुनौती की तरह ले | इस प्रकार उन्होने दूसरा विकल्प चुना | पर
उस समय कोई यह सोच भी नही सकता था की 1 लाख मे कार दे पाना संभव है | सुजुकी मोटर्स के चेयरमेन तो खाश तौर पर इस बात पर यकीन ही नही कर रहे थे |
ये चुनौती तो बहुत बड़ी थी, पर
रतन टाटा के हौसले भी बुलंद थे | टाटा मोटर्स भारत
के तीन चोटी के वाहन निर्माताओ मे से एक है, फिर भी इस
कार के सपने को साकार करना एक बहुत बड़ी चुनौती होने वाली थी | अब इस सपने को साकार करने के लिए रतन टाटा ने अपनी उमिदे गुजरात के सानंद
नामक शहर के नजदीक बनाई गई टाटा समूह की फैक्टरी पर लगा रखी थी | यहा ४५० हेक्टेयर मे बड़ी वर्कशाप है जो एक दूसरे से आपस मे जुड़ी हुई है | अपनी पूरी क्षमता से काम करने पर यह फैक्टरी पूरे साल मे ३ लाख पचास हजार
नैनो का उत्पादन कर सकती है | यहा काम करने के लिए
१३० से भी ज्यादा रोबॉट्स है | लेकिन इन मशीनों को
चलाने के लिए गाव से कर्मचारियो को रखा जाता है और उन्हे प्रशिक्षण भी दिया जाता
है |
सबसे बड़ी चुनौती थी सस्ता
कार देना फिर चाहे कटौती उत्पादन की हो या लागत का, फिर
भी एक ऐसी कार होनी चाहिए जिसे लोग पसंद करे चाहे वो सुरक्षा, खूबसूरती, ईंधन की कम खपत और रखरखाव की दृष्टि
मे हो | लेकिन अगर वो तमाम खूबियो के पाने के
चक्कर मे बजट से आगे निकाल जाते तो नैनो दुनिया की सबसी सस्ती कार होने का अपना
आकर्षण खो देती |
साल 2003 मे रतन टाटा और
उनकी टीम की आपस मे बातचीत के बाद प्रोजेक्ट X3 के नाम से यह
प्रयोग चल रहा था और इसके बारे मे कुछ खाश लोगो को ही पता था जबकि कंपनी मे लगभग
२० हजार लोग काम करते है | टीम ने शुरू मे रतन
टाटा को विचार दिए जैसी एक तरफ आटो के जैसे खुला हुआ भाग होना जिससे चार दरवाजो की
जरूरत न हो और लागत पर भी नियंत्रण किया जा सके पर रतन टाटा इस बात पर अडिग थे की
कार के चार दरवाजे ही होंगे | लागत नियम होने के
बावजूद टीम चार दरवाजो की व्यवस्था करने मे कामयाब रही |
अब उनका ध्यान था कार के
इंजन की तरफ, इंजन को दूसरी कारो की तरह आगे न लगाकर पीछे लगाया गया ताकी कार को छोटी
होने के साथ साथ चार लोगो के बैठने के अनुसार बनाया जा सके | इंजन के पीछे लगाने से कार के दुर्घटना होने की स्थिति मे भी यात्रियो और
कार को ज्यादा नुकसान न होने की भी पुष्टि पाई गई | इंजन को डिज़ाइन करने का कार्य इंजन डिज़ाइनर नरेंद्र जैन एव गिरीश वाघ के
द्वारा किया गया | इसमे सफलता के बाद इसे इंजन का
असंबल किया जाने लगा | इस इंजन मे नैनो को १ लीटर
मे २४ किलोमीटर की क्षमता मिलने वाली थी |
नैनो की बॉडी के लिए सबसे
पहले प्लास्टिक को चुना गया मगर प्लास्टिक कार मे डेंट लगने के हिसाब के साथ साथ
लागत मे भी सही नही था इसलिए स्टील का चुनाव किया गया ताकि डेंट लगने पर इसे आसानी
से निकलवाया जा सके | इस प्रकार नैनो को एक सुंदर बॉडी और लूक मिला |
ये सभी कार्य पूरा होने और
लोगो के बीच इस कार को लाने के पहले इसमे कई परीक्षण किए गए जैसे इसे शहरो के छोटी
सड़क पर मोड काटने, खराब से खराब सड़क पर चलने, मानसून की बारिश मे
सडको पर भरे पानी से गुजरने, तीखी चढाई के गुजरना और
साथ ही साथ जीरो से माइनस पचास डिग्री तक के तापमान मे जांचा और परखा गया |
कार पूरी तरह तैयार होने
के बाद इसे सबसे पहले दिल्ली ऑटो एक्स्पो मे प्रस्तुत किया गया | और रतन टाटा के वादे के अनुसार कार का डीलर मूल्य १ लाख ही था |
टाटा मे सबसे पहली नैनो
कंपनी प॰ बंगाल मे सिंगूर मे शुरू की थी तब यहा कमनुशिस्ट सरकार थी | लेकिन सरकार ने टाटा समूह को जो जमीन दी थी, उस
पर स्थानीय किसानो ने विवाद खड़ा कर दिया और शुरू से ही निर्माण प्रक्रिया मे बाधा
पहुचने की कोशिश करने लगे | रतन टाटा मे २ वर्षो
तक इंतजार किया लेकिन स्थिति और खराब होती चली गई और प्लांट का उदघाटन होने मे
करीब एक सप्ताह बाकी रह गए थे, लेकिन काम प्रारम्भ करना और
भी ज्यादा मुश्किल होता जा रहा था | ऐसी स्थिति मे
अब यह प्लांट भारत के दूसरे छोर और बेहतर माहौल वाले राज्य गुजरात के सानन्द ले
जाना था जो लगभग २२०० किलोमीटर की दूरी पर था | इस
समय तक नैनो के लगभग २ लाख आर्डर आ चुके थे अत: कुछ कारो को टाटा समूह की दूसरी
फैक्टरी मे बनाया गया | इस प्रकार से प्रोजेक्ट
अपने निश्चित समय से पिछड़ गया था |
फैक्टरी के सारे सामान व
मशीनों को स्थानांतरित करने के लिए लगभग ३४०० ट्रको की मदद ली गई
इस प्रकार की सभी मुश्किलों
का सामना करने के बाद एक और समस्या सामने आ गई | नैनो के शुरूआती माडल के कुछ कारो मे सड़क पर आग लग गई और ये एक बड़ी बदनामी
का कारण बन सकता था | टीम नैनो मे फौरन कदम उठाया
और कारो मे लगी इस आग के लिए स्थानीय और अंतराष्ट्रिय विशेषज्ञो(ब्रिटैन के
फोरेंसिक एक्सपर्ट) की एक टीम बनाई | उन्होने सारे
जाच की और नैनो को क्लीन चिट देकर स्पष्ट कर दिया की इसमे किसी भी प्रकार की कोई
भी खराबी नही है पर कुछ मामलो मे यह भी पाया गया की ग्राहक ने किसी भी प्रकार की
असेसरीज़ लगाने के लिए कार के इलेक्ट्रिकल मे छेरछाड की थी, जिसकी वजह से इसमे यह दुर्घटना हुई | इसके
जवाब मे टीम नैनोने कार को और भी ज्यादा सुरक्षित बनाया |
इस चुनौती मे खरा उतारने
के बाद जून-२०१० मे रतन टाटा ने अधिकारिक रूप से फ़ैक्टरी का उदघाटन किया और
अंत मे नैनो का निर्माण पूरी रफ्तार से होने लगा |