पन्ना धाय का त्याग की कहानी । Panna Dai Story in Hindi
यों तो भारत के इतिंहास में देश, धर्म, कर्तव्य और स्वतन्त्रता के लिये अपने जीवन को बलिदान करने वाले महान व्यक्तियों की कमी नहीं है; परन्तु स्वामिपुत्र को रक्षा के लिये अपने प्राणप्रिय पुत्र की बलि पर चढा कर, जो आदर्श पन्ना धाय ने इस संसार में उपस्थित किया है, वह अतुलनीय, अनुपम तथा दुर्लभ है ।
भारत के इतिहास में इस प्रकार की स्वामिभक्ति बहुत कम ही देखने को मिलती है । कौन ऐसी माता होगी, जो स्वामिपुत्र की रक्षा के लिये गोद के खेलते हुए अपने पुत्र को मृत्यु में फेंक देगी ? धन्य वह मातृ-हृदय ! धन्य वह स्वामि-भक्ति ! जो अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र की बलि होते देख जरा भी विचलित न होती हो ।
मेवाड़ का गौरव धीरे-धीरे विलीन हो रहा था । उसका भविष्य अमावस्या के घोर अंधकार में डूब रहा था । वीर योद्धागण स्वर्गलोक को सिधार चुके थे । राणा संग्राम सिंह भी इस समय नही रहे थे । मेवाड़ के राज सिंहासन पर दासीपुत्र वनवीर राज्य कर रहा था । ऐसे समय राजवंश का एकमात्र उत्तराधिकारी संग्राम सिंह के सुपुत्र उदयसिंह, पन्ना धाय की संरक्षता में आनन्द पूर्वक अपना बचपन व्यतीत कर रहे थे । उस अबोध बालक को क्या पता, कि उसका वध करने के लिये ही वनवीर पड़यन्त्र रच रहे थे ?
भला छः वर्ष के अबोंध बालक को इसकी क्या खबर हो सकती थीं ? मेवाड़ के सिंहासन को सुशोभिन करने वाले “दासी-पुत्र वनवीर” रात-दिन इसी चिन्ता में पड़ा सोच रहा था, कि जब तक मेवाड़-राजसिंहासन के एक मात्र वारिस उदयसिंह की हत्या न की जायेगी, तब तक मेरा यह अधिकार सुरक्षित नहीं है ।
वनवीर एक रात उसी पाप को पूरा करने के लिये प्रयत्न करता है । देखते-देखते रात काफी हो गई । चारो ओर घोर अन्धकार छा गया । प्रकृति पूर्ण शान्त रूप धारण कर चुकी थी । न तो अब वह चिड़ियों की चहुचहाहट है और न पत्तों की खड़खड़ाहट । राज-प्रासाद में भी बिलकुल सन्नाटा छा गया था ।
बालक उदयसिंह सुख की नींद मे सो रहे थे । उसकी धात्री पलंग पर बैठी पंखा झल रही थीं । इतने में ही राजमहलों के भीतर से एकाएक एक भयंकर कोलाहल सुनाई पड़ा । शोर की आवाज से राज महल गूँज उठा । घबराता हुआ एक दास वहाँ आया और काँपते हुए स्वर से बोला –“ निर्दयी वनवींर राणाविक्रम की हत्या कर कुमार उदयसिंह का वध करने आ रहा है ।“ दास की बातों से पन्ना धाय बहुत घबरा उठी । सोचने लगी – “क्या कुमार उदयसिंह को हत्या वनवीर के हाथ होगी ? मेरे सामने राणावंश का नाश होगा ? और मैं आँखे फाड़-फाड़ कर इस दृश्य को देखूँगी ? – नहीं ; कदापि नहीं ! मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगी । कुमार उदयसिंह की रक्षा जिस प्रकार होगी, अवश्य करूँगी ।
कुमार की रक्षा से देश, धर्म तथा वंश की रक्षा होगी । पर मेरे पुत्र से सिवा इस कार्य को और कौन कर सकेगा ? अच्छा हो, कि अपने पुत्र का जीवन लुटाकर कुमार के जीवन की रक्षा की जाये ।”
उस कमरे के कोने में फल की एक टोकरी रखी थीं । पन्ना ने अपने एक-मात्र पुत्र को कुमार के पलंग पर सुलाकर सोए हुए राजकुमार को उस पर से उठा कर, टोकरी में सुला दिया और फलों तथा पत्तों से छिपा, उस टोकरी को उठाकर शीघ्रातिशीघ्र दास के द्वारा दुर्ग के बाहर निकल जाने को कहा । उसने वैसा ही किया । इतने में हत्यारा वनवीर नंगी तलवार लिये कोठरी में आ धमका और उदय सिंह को ढुढने लगा । उसे देखकर दासी के होश उड़ गये । वह कुछ भी न बोंल सकी । उसने केवल आँख के इशारे से अपने प्यारे पुत्र को दिखा दिया । हृदयहीन वनवीर खूँखार जानवर की तरह उस बालक पर टूट पड़ा और क्षण-भर में उसका काम तमाम कर दिया ।
पन्ना धाय ने अपने प्रिय पुत्र को तड़प-तड़प कर मरते अपनी आखों से देखा, तथापि उसने उफ न की । धैर्य से चुपचाप देखती रही । जब वनवीर अपनी इच्छा पूर्ण कर लौट गया, तथा पन्ना दुर्ग के बाहर कुमार उद्यसिंह की खोज में चली । इधर राज-प्रासाद के किसी व्यक्ति को यह खबर न लग सकी, कि हितकारिणी पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान करके राणा सांगा के टिमटिमाते हुए दिपक को सदा के लिये बुझने से बचा लिया है। अतः महल की स्त्रिया फुट-फुट कर रोने लगीं ।
चित्तौड़ के पश्चिम ओर वेरीस नदी के किनारे वह दास इसकी इंतजार कर रहा था। टोकरी भी उसके पास ही रखी थी, जिसमें सौभाग्यशाली कुमार उदय सिंह अब तक सो रहे थे ! वीर पन्ना धाय उस दास को साथ लेकर वहाँ से देवल नगर में सिंहरावजी के पास गयी और उस शिशु-कुमार की रक्षा करने की प्रार्थना की । पर वनवीर के भय से उसने उसे आश्रय देना अस्वीकार किया । वहाँ से वह डूँगापुर गयी, पर वहाँ भी ऐशवर्ण ने अपने पास रखने में असमर्थता दिखायी ।
वींर दासी इससे भी हताश नहीं हुई । वह कुछ वींर और विश्वासी योद्धाओं को साथ लेकर दुर्गम अरावली पर्वत मार्ग से कमलमीर पहुँची । आशा शाह अपनी माता की प्रेरणा तथा बुद्धिमती पन्ना की चतुराई से प्रसन्न होकर कुमार को अपने यहाँ आश्रय देना स्वीकार कर लिया । इस प्रकार सभी कठिनाइयों का सामना करती हुई वीर पन्ना धाय ने राणा-वंश के एकमात्र उत्तराधिकारी उदय सिंह की रक्षा कर अपना नाम इस संसार में अमर कर दिया ।