इवान जेलिस्टा टोरिसेली | टोरिसेली निर्वात क्या है | Evangelista Torricelli
इटली के फ्लोरेंस नामक शहर में विज्ञान के इतिहास से संबंधित एक संग्रहालय है । इसमें रखे बहुत से वैज्ञानिक साजो-सामान के बीच चार इंच व्यास से कुछ अधिक का एक लेंस रखा हुआ है । इस लेंस की सत्यता को देखकर आज के लेंस निर्माता विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाते । यह लेंस १ मिमी. के १०,०००वें भाग की सत्यता के साथ बना हुआ है । सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इसे सन् १६४६ में बनाया गया था । उस समय तक लेंस-निर्माण के लिए न तो आज की तरह के आधुनिक उपकरण उपलब्ध थे और न ही इस प्रकार की कोई तकनीक विकसित हो पायी थी । इस लेंस का निर्माण इवान जेलिस्टा टोरिसेली ने किया था ।
वायुदाबमापी के आविष्कारक के रूप में तो टोरिसेली को बच्चा-बच्चा जानता है लेकिन इस आविष्कार के पीछे जो कहानी है उसे संभवतः बहुत ही कम लोग जानते हैं ।
यह एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी है । इस कहानी के अनुसार सन् १६४० में टसकानि के ग्रेंड ड्यूक ने अपने महल के अहाते में एक कुआं खुदवाया । कुआं खुद गया और पानी लगभग ४० फुट की गहराई पर मिला ।
पानी को ऊपर लाने के लिए एक पम्प लगाया गया, जिसकी नली पानी में डूबी हुई थी । पम्प के हैंडल को बार-बार ऊपर नीचे करने पर भी पानी टूटी से बाहर नहीं आया । यह केवल ३३ फुट की ऊंचाई तक ही चढ़ पा रहा था । मजदूरों ने सोचा कि पम्प में कुछ खराबी है लेकिन काफी जांच करने पर उसमें कोई गड़बड़ नहीं मिली । इस घटना की सूचना ड्यूक को दी गई । उनकी समझ में भी यह बात नहीं आ पाई कि आखिर पम्प काम क्यों नहीं कर रहा है । उन दिनों गैलीलियो ड्यूक के विशिष्ट दार्शनिक और गणितज्ञ थे । अतः यह समस्या गैलीलियो को सुलझाने के लिए दी गई । गैलीलियो ने इस समस्या की कुछ व्याख्या की लेकिन वे स्वयं इस व्याख्या से पूरी तरह संतुष्ट न थे ।
इवान जेलिस्टा टोरिसेली
जन्म : १५ अक्टूबर १६०८ (इटली) मृत्यु : २५ अक्टूबर १६४७ (इटली)
वृद्ध होने के कारण गैलीलियो ने इस समस्या को अपने होनहार शिष्य टोरिसेली को सुलझाने के लिए दे दिया । टोरिसेली उन दिनों गैलीलियो के सचिव के रूप में कार्य कर रहे थे । गैलीलियो की कुछ ही दिनों में मृत्यु हो गई और उनके स्थान पर टोरिसेली की नियुक्ति कर दी गई । इसके बाद टोरिसेली ने इस समस्या पर काम करना आरंभ किया ।
इवान जेलिस्टा टोरिसेली का विश्वास था कि पम्प द्वारा भारी द्रव को इतनी ऊंचाई तक नहीं उठाया जा सकता, जितना कि किसी हल्के द्रव को । इसलिए उसने अपने प्रयोग के लिए पारे को चुना । पारा, पानी की तुलना में साढ़े तेरह गुना अधिक भारी होता है । अतः पानी की तुलना में पारे को साढ़े तेरह गुना कम ऊंचाई तक ही उठाया जा सकता है । चूंकि पम्प से पानी को ३३ फुट की ऊंचाई तक उठाया जा सकता था, इसलिए पारे को केवल ३० इंच की ऊंचाई तक ही उठा पाना सम्भव था ।
यह संख्या ३३ फुट को १३.५ से विभाजित करने पर प्राप्त होती है । पानी के स्थान पर पारे को इस्तेमाल करने में सबसे बड़ी सरलता यह थी कि ३३ फुट लम्बी नली के स्थान पर केवल १ गज लम्बी नली ही पर्याप्त थी ।
टोरिसेली ने कांच की एक नली ली । इसकी लम्बाई लगभग एक गज थी और उसका एक सिरा बंद था । पहले उसने इस नली को पारे से भरा और उसके खुले सिरे को अंगूठे से दबाकर और नली को उलटा करके पारे से भरे कटोरे में डुबा दिया-ताकि खुला सिरा पारे की सतह के नीचे रहे । जब उसने अपने अंगूठे को नली के खुले सिरे से हटाया तो नली में पारा कुछ नीचे की ओर खिसका और पारे के स्तंभ की लम्बाई ३० इंच रह गई ।
नली के ऊपरी भाग में जहां पहले पारा भरा था वहां खाली स्थान हो गया । बाद में इसी खाली स्थान का नाम ‘टोरिसेली निर्वात’ के नाम से पुकारा जाने लगा । इस प्रयोग से यह सिद्ध हो गया कि पानी को पम्प द्वारा मात्र इतनी ऊंचाई तक उठाया जा सकता है, ३० इंच x १३.६ के बराबर हो । यह ऊंचाई लगभग ३३ फुट के करीब होती है ।
जो कुएं में लगे पम्प की विफलता का कारण तो इस प्रयोग द्वारा स्पष्ट हो ही गया, साथ ही साथ टोरिसेली की यह नली वायुदाबमापी या बैरोमीटर के रूप में प्रयोग होने लगी । आज भी विद्यार्थी साधारण बैरोमीटर इसी तरह से बनाते हैं ।
टोरिसेली के बनाए इस वायुदाबमापी को जब पहाड़ की चोटी पर ले जाया गया तो यह पाया गया कि पारे के स्तंभ की ऊंचाई कम हो जाती है । इससे यह सिद्ध हुआ कि ऊंचाई के साथ-साथ वायुदाब घटता है । इसी प्रयोग के आधार पर ब्लेज पास्कल नामक वैज्ञानिक मौसम विज्ञान का एक अत्यावश्यक अंग बन गया है । आज अनेक प्रकार के वायुदाबमापी बनने लगे हैं ।
इटली के इस वैज्ञानिक ने कई प्रकार के दूरदर्शी, सूक्ष्मदर्शी और दूसरे प्रकाशीय उपकरणों के नमूने बनाए, जो बहुत ही शुद्धता के साथ बनाए गए थे । टोरिसेली केवल प्रयोगात्मक वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि एक अच्छे गणितज्ञ भी थे । इन्होंने इन्टीग्रल कैलकुलस में भी कई आविष्कार किए । १९ साल की उम्र में ही इन्हें रोम विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया था, जहां बाद के वर्षों में वे प्रोफेसर बने ।
सन् १६४१ में इनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसमें गैलीलियो के कार्यों का विवरण था । इनके समय में हार्वे, बेकन, पास्कल, गैलीलियो आदि प्रसिद्ध वैज्ञानिक मौजूद थे । दुर्भाग्य की बात तो यह थी कि यह महान वैज्ञानिक ३९ साल की अल्पायु में ही संसार से चला गया ।