हरतालिका तीज व्रत नियम | हरतालिका तीज की पूजा विधि | हरतालिका तीज 2023 | हरतालिका तीज व्रत कथा | हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है | Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi
हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया में किया जाता है ।
हरतालिका तीज व्रत नियम | हरतालिका तीज की पूजा विधि
इस दिन शंकर और पार्वती की बालू की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है । सुंदर वस्त्रो और कदली स्तंभो से गृह को सजाकर नाना प्रकार के मंगल गीतों से रात्रि जागरण करना चाहिए ।
इस व्रत को करने वाली स्त्रियाँ पार्वती के समान सुखपूर्वक पति रमण करके शिवलोक को जाती हैं ।
हरतालिका तीज व्रत कथा | Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi
इस व्रत के माहात्य की कथा सुनकर भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने हेतु इस प्रकार कही थी –
एक बार तुमने हिमालय पर गंगा तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्ष की आयु में अधोमुखी होकर घोर तप किया था । तुम्हारी कठोर तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता को बड़ा क्लेश होता था ।
एक दिन तुम्हारी तपस्या और तुम्हारे पिता के क्लेश के कारण नारदजी तुम्हारे पिता के पास आए और बोले कि विष्णु भगवान आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं । उन्होंने इस कार्य हेतु मुझे आपके पास भेजा है ।
तुम्हारे पिता ने विष्णु जी के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया । इसके बाद नारद जी ने विष्णु जी के पास जाकर कहा कि – हिमालयराज अपनी पुत्री सती का विवाह आपसे कराना चाहते हैं । विष्णुजी भी तुमसे विवाह करने को राजी हो गए ।
नारदजी के जाने के बाद तुम्हारे पिता ने तुम्हें बताया कि तुम्हारा विवाह विष्णु जी से तय कर दिया है । यह अनहोनी बात सुनकर तुम्हे अत्यन्त दुख हुआ और तुम जोर-जोर से विलाप करने लगी । एक अंतरंग सखी के द्वारा विलाप का कारण पूछने पर तुमने सारा वृतांत सखी को बता दिया – “मैं शंकर भगवान से विवाह के लिए कठोर तप कर रही हूँ । उधर हमारे पिताश्री विष्णुजी के साथ मेरा सम्बंध करना चाहते हैं । क्या तुम मेरी सहायता करोगी ? नहीं तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगी ।“
तुम्हारी सखी बहुत बड़ी दूरदर्शी थी । वह तुम्हें एक घनघोर जंगल में ले गई । इधर तुम्हारे पिताजी तुम्हें घर में न पाकर बहुत चिंतित हुए । मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का वचन दे चुका हूँ । वचन भंग की चिंता से वह मूर्छित हो गए ।
इधर तुम्हारी खोज होती रही और तुम अपनी सहेली के साथ नदी तट पर एक गुफा में मेरी तपस्या कर रही थी । भाद्रपद शुक्ला की तृतीया को हस्त नक्षत्र में तुमने रेत का शिवलिंग स्थापित करके व्रत किया और पूजन तथा रात्रि जागरण भी किया ।
तुम्हारे इस कठिन तपव्रत से मेरा आसान डोलने लगा । मेरी समाधि टूट गई । इसलिए मैं तुरंत तुम्हारे पास पहुँचा और वर माँगने का आदेश दिया । तुम्हारी मांग तथा इच्छानुसार तुम्हें मुझे अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करना पड़ा ।
तुम्हें वरदान देकर मैं कैलाश पर्वत पर चला आया । प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारण किया । उसी समय तुम्हें खोजते हिमालयराज उस स्थान पर पहुँच गए । बिलखते हुए तुम्हारे घर छोड़ने का कारण पूछने लगे ।
तब तुमने उन्हें बताया कि मैं शंकर भगवान को पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ परन्तु आप मेरा विवाह विष्णुजी से करना चाहते थे । इसलिए मुझे घर छोड़कर आना पड़ा । मैं अब आपके साथ घर इसी शर्त पर चल सकती हूँ कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके भगवान शिव से करेंगे ।
गिरिराज तुम्हारी बात मान गए और शास्त्रोक्त विधि द्वारा हम दोनों को विवाह के बंधन में बाँध दिया ।
इस व्रत को हरतालिका तीज इसलिए कहते हैं कि पार्वती की सखी उसे पिता के घर से हरकर घनघोर जंगल में ले गई थी । हरत अर्थात् हरण करना और आलिका अर्थात् सखी सहेली – हरतालिका ।
शंकर जी ने पार्वती से यह भी बताया कि जो स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग प्राप्त होगा ।