गौ गिरिराज व्रत | गौ गिरिराज व्रत कथा | Gau Giriraj Vrat Katha

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गौ गिरिराज व्रत | गौ गिरिराज व्रत कथा | Gau Giriraj Vrat Katha

यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है । इस दिन गौऊ की पूजा करने का विधान है । साथ में भगवान लक्ष्मीनारायण की भी पूजा करनी चाहिए ।

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प्रथम एक मण्डप तैयार कर भगवान की प्रतिमा को स्नान कराकर उसमें स्थापित करें । गौओं की पूजा में निम्न मंत्र पढ़कर गायों को नमस्कार करें –

पंचगाव समुत्पन्नाः मध्यमाने महोदधौ ।
तेषां मध्ये तु यानन्द तस्मै धेन्वे नमो नमः ॥

क्षीर सागर का मंथन होने पर उस समय पाँच गायें पैदा हुई । उनके बीच में नन्दा नाम वाली गाय है । उस गाय को बारम्बार नमस्कार है ।

पुनः निम्न मंत्र पढ़कर गाय ब्राह्मण को दान कर दें –

गावों मामग्रमः सन्तु गावों मे सन्तुपृष्ठतः।
गावों मे पार्श्वतः सन्तु गवाँ मध्ये वासम्यहम् ॥

गाएँ मेरे आगे-पीछे रहें । गाएँ मेरी बगल में रहें और मैं गायों के बीच में निवास करता रहूँ । इसके बाद ब्राह्मण को दक्षिणा देकर आदर-सत्कार सहित विदा करें । जो इस व्रत को करता है वह सहस्त्रों अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है ।

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