लपसी तपसी की कहानी – १ (मारवाड़ी मे) Lapsi Tapsi Ki Kahani -1 (In Marwari)

लपसी तपसी की कहानी (मारवाड़ी मे)

Lapsi Tapsi Ki Kahani (In Marwari)

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एक तपस्वी हो । रोज तपस्या करतो । नारद जी वीणा बजाता बजाता आया नारद जी बोल्या तप्या तपी ह क लौभी ह ? बो बोल्यों महाराज म्हार लोभ को कांई काम ? बारा बरस होयजग्या तपस्या करता न | नारद जी सवा लाख की मुंदड़ी छिटकायग्या । तपसी मुंदड़ी गोंडा क निच्च छिपा लियो। नारद जी पाछा आया तप्या तपेसरी क लोभी ह ? तप्यो बोल्यो बार बार कांई पूछों म्हे तपेसरी हूं । नारद जी बोल्या थारो गोडो ऊँचो कर । गोडो ऊचो करता ही सवा लाख की मुंदड़ी निकली। नारदजी बोल्या थारी तपस्या भंग होयगी तपस्वी बोल्यो अब क्यान करु ? म्हे जाण्यो गरीब दुबला न देवू तो काम आई। बुढापा म म्हार काम आयी । नारद जो बोल्या बारा बारा २४ बरस तपस्या कर। तप्यो बोल्यो गोडा होयग्या खोला, माथा म आयग्या धोला, कान होयग्य बोला। अब म्हारसू तपस्या होव कोनी | कोई गली कुंचली काढो |

नारद जी बोल्या ब्राह्मण जिमार दिखणा नई देई तो बो फल थन हो जाई। ब्राह्मण जिमार सवासणी नई जिमाई तो बीको फल थन हो जाई | रोटया कर बाटयो नई पोई तो बीको फल थन हो जाई । साड़ी देर पौलको नई देई तो बीको फल थन हो जाई | कहाणी कथा केर दो नाम तप्या का नही लेई तो बीको फल थ न हो जाईं । तप्या को पुण्य तप्या न होइजो म्हाकी कहाणी कथा को म्हान दीजो।

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