वामन द्वादशी कथा | वामन द्वादशी 2023 | वामन द्वादशी का महत्व | Vaman Dwadashi ki Katha | Vaman Dwadashi Vrat Katha
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी कहते है |
वामन द्वादशी का महत्व व विधान
इस दिन स्वर्ण या यज्ञोपवती से वामन भगवान की प्रतिमा स्थापित कर सुवर्ण पात्र में अर्घ्य दान करें । फल-फूल चढ़ाएँ तथा उपवास करें ।
पूजन मंत्र – देरेश्वराय देवेश्य, देव संभूति कारिणे ।
प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नमः ॥ १ ॥
पूजन मंत्र – देरेश्वराय देवेश्य, देव संभूति कारिणे ।
प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नमः ॥ १ ॥
अर्घ्य मंत्र – नमस्ते पद्मनाभाय नमस्ते जलः शायिने ।
तुभ्यमर्च्य प्रयच्छामि बाल या मन अपिणे ॥ १ ॥
नमः शांग धनुर्याण पाठये वामनाय च ।
यज्ञभुव फलदात्रे च वामनाय नमो नमः ॥ २ ॥
वामन द्वादशी 2023
भगवान वामन की स्वर्ण मूर्ति के समक्ष ५२ पेड़े तथा ५२ दक्षिणा रखकर पूजन करते हैं । भगवान वामन को भोग लगाकर सकोरों में दही, चावल, चीनी, शरबत तथा दक्षिणा ब्राह्मण को दान करके व्रत का पारण करते हैं । इसी दिन उजमन व्रत समाप्ति उत्सव भी करें । उजमन में बाह्मणों को १ माला, २ गउमुखी, कमण्डल, लाठी, आसन, गीता, फल, छाता, खड़ाऊं तथा दक्षिणा देते हैं । इस व्रत को करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है ।
वामन द्वादशी कथा
बलि राक्षस ने एक बार देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया । उसका देवताओं पर अत्याचार बढ़ने लगा तो देवमाता अदिति ने अपने पति महर्षि कश्यप से सारा हाल कहा ।
अदिति ने पति की आज्ञा से विशेष अनुष्ठान किया । फलस्वरूप विष्णु भगवान ने वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर बलि के यहाँ जाकर तीन पग भूमि दान में माँग ली । बलि तीन पग भूमि देने के लिए दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी वचनबद्ध हो गए ।
वामन रूपी विष्णु ने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पाँव से स्वर्ग तथा ब्रह्मलोक नाप लिया तीसरा पैर बलि की पीठ पर रखकर उसे पाताल भेज दिया । देवमाता अदिति की कोख से भाद्रपद शुक्ला द्वादशी वामनवतार होने से ही इसे वामन द्वादशी कहते हैं ।