विनायक जी की कहानी – १० (मारवाड़ी मे) | Vinayakjee kee kahani – 10 (In Marwari)

विनायक जी की कहानी (मारवाड़ी मे)

Vinayak Ji Ki Kahani (In Marwari)

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एक कठवाडयो हो [लकडौ काटने वाला] वो रोज लकड़ी काटन जावंतो । ओर जो पेसा आवंता बींसु बाल बच्चा को गुजारो करतो । यान करता-करता सगलो बन खाली होयगो बठ विनायकजी की खेजडी ही। एक दिन वो कुलाडी ले बीस झाड न काटन लाग्यो विनायकजी बोल्या भरे भाई कूण ह ?

बो कहयो महाराज कठवाडयो हूं लकड़ी काटन गुजारो क हूं । अरे म्हारी ठंडी छाया करु नीचे कोई आर विश्राम लेव, आराम कर इशा झाड न क्यूं काट ? कठवाडो बोल्यो महाराज टाबर-टूबर भूका मर ह बेको गुजारो कौनी हुव ई वास्त लकड़ी काटू हूं। विनायकजी बोल्या आ ब्यालू रेत ह म्हारी आ तू थाली भरर ले जा । वो कांसा फो थाली लायो थाली भर रेत लेर बोलतो गयो ले जावूं ढुल-ढूलती हों जाइजो फल फुलतो। ब्यालू रेट लापसी हुई होयगी | टाबर-भर भर कटोरा खाबा लाग्या | लापसी, बादाम, पिश्ता, केशर, खोपरो, इछायची घाल्योडी टावरान खूब सवाद लागी टावर भर भर खाव घी टपा टप चुव । पाडोसण देखर बोली यांक तो रोटी का ही साँसा हा | इसी छपसो थांक कठसू आयी ? टाबरन बुलायो पुच्छ्यो इसी लापसी थानक कठसू आयी ? टावर बोल्या म्हाका भाइजों विनायक जी की खेजडी काटन गया हा विनायक जो दिया बठसु लाया | पड़ोसण रिसाकर सोयगी । धणी अयो ओर पूछयो चन्दा की मां तू रसोई बनाई कौनी-काई?

लूगाई बोली पाडोस्यांक विनायकजी की लापसी आयो ह आपांक भी लेर आवो। धणी बोल्यो डब्बा भरयो घी पहयो थेलो भर गेहूं पडया बौरा भर शक्कर पडी आपांक तो घर म ही लापसी बनवो । बाट दखण की सरदा नहीं है तो दुकान सु बाट लेकर आ जायो । लूगाई बोंली म्हन तो विनायक जी की लापसी होणू । धणी जार पाडोसी न पूछयो पडोसी बिने सगली हफीकत बताई। जणा बो जंगल में जार खेजडी का झाड क कुलाडी सु मारयो । विनायकजी बोल्या अरे भाई तू कूण ह ? वो बोल्यो महाराज धायो धिंगण हूं लूगाई को सिखायोडो आयो हूं । बिंका हाथ खेजडी क चिपग्या । शाम होयगी टाबर बोल्पा मां भूख लागी है । मां बोली थांका बाबूजी विन्दायकजी की लापसी लेर आयी। बहुत देर होय गी जणा मां भागी भागी ग्या| चन्दा का बाबूजी घर चालो कोनी कांई ? धणी बोल्यो विनायकजी पाडोसी न तो लापसी घणी दी आपांन धन को चरू दियो ह । जल्दी आ | बा नेडी गयी। धणी मन की मन म बोल्यो हे महाराज म्हन चइ ज कोनी इन देवो जणा थी लगाई का हाथ चिपग्या नीच झुकी नाक चिपगयो। बा बोली महाराज ओ कांई करियो । जणा विनायकजी बोल्या पडोसी तो भूको मरतो हो वींक घरम खावण को सरतन कोनि हो। थार घरम आनंद हो । तू बीन देकर खाणो हो । तू ईसको क्यू करयो ? बा बोली महाराज म्हारा हाथ छुडवो । बिनायकजी बोल्या तू आधा धन को पाती देव तो हाथ छुड़ावु । बा धन की पांती करर आधों धन पाडोंसी न दियो । हे विनायकजी महाराज थे जान कठवाडया पर तुष्ठ मान हुआ ब्यान सब होंइजों । पडोसन सु रुठया ब्यान कोई सु मत रुठीजों।

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