रॉबर्ट पियरी – उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाला प्रथम खोज यात्री | Robert Peary in Hindi

रॉबर्ट पियरी

रॉबर्ट पियरी – उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाला प्रथम खोज यात्री | Robert Peary in Hindi

उत्तरी ध्रुव हमारी धरती का अत्यंत दुर्गम प्रदेश है । वहां चारों ओर बर्फ जमी है, वाहा स्थित है ग्रीनलैंड, ग्रीनलैंड वहा से लगभग ७२५ कि.मी. दूर है । वहां छह महीने का दिन और छह महीने की रात होती है । इस प्रदेश पर पहुंचने के कई प्रयास किये गये जिसमें सबसे पहले पहुंचने वाले यात्री थे – रॉबर्ट पियरी और उनके साथी मैथ्यू हैनसन (Matthew Henson) जो सन् १९०९ में कुत्तों द्वारा खींची जाने वाली स्लेज गाड़ियों द्वारा वहां पहुंचे थे ।

इस प्रथम सफल यात्रा के बाद अब तक अनेक यात्री वहां पहुंच चुके हैं । उदाहरण के लिए सन् १९५८ में अमरीका की परमाणु ऊर्जा से चालित पनडुब्बी भी वहां पहुंची थी । रॉबर्ट पिअरे की खोज-यात्रा की कहानी अत्यंत साहसपूर्ण और दिलचस्प है ।

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रॉबर्ट पियरी उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाले अभियान दल के नेता थे । यह यात्रा एक लंबी योजना और कई लोगों के मिले-जुले प्रयासों के फलस्वरूप ही सफल हो पायी । रॉबर्ट पियरी के मन में बचपन से ही उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने की अभिलाषा थी । वह इस स्वप्न को पूरा करने की तैयारी में कुछ वर्ष के लिए आर्कटिक प्रदेश के एस्कीमो लोगों के साथ रहा भी था । उसने भयंकर सर्दी का सामना करने के तरीके सीखे और कुत्तों द्वारा खींचे जाने वाली स्लेज गाड़ियों पर चलना सीखा । कई वर्षों की कठिन साधना के बाद यह अमरीकी नौसैनिक अपने लक्ष्य में सफल हो पाया ।

उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने के लिए रॉबर्ट पियरी ने आठ प्रयास किये और वहां की भयंकर स्थितियों के कारण वह अपने सात प्रयासों में असफल रहा । केवल आठवें प्रयास में ही वह सफल हो पाया । उसने अपनी पहली यात्रा सन् १८९८ में आरंभ की, लेकिन बर्फीले तूफानों और भयंकर ठंड के कारण उसके पैरों की अंगुलियां मृतक हो गयीं । इस कारण उसे अपनी अंगुलियां कटवानी पड़ीं । इसके बाद वह हर साल प्रयास करता रहा लेकिन बर्फीले रास्तों की विषमताओं के कारण असफल होता रहा । लेकिन इन प्रयासों से उसे अनेक अनुभव प्राप्त हुए । इन अनुभवों के आधार पर उसने अपने आठवें अभियान के लिए एक व्यवस्थित योजना बनायी ।

रॉबर्ट पियरी के आठवें अभियान में २४ आदमियों का दल था । १९ स्लेज गाड़ियां और १३३ कुत्ते थे । उसके दल में कोर्नेल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉस मार्विन (Ross Marvin), एक नीग्रो मैथ्यू हैनसन, जॉर्ज बोरोप (George Borop), डोनाल्ड मैकमिलियन (Donald Macmillan), जे.डब्ल्यू. गुडसेल (J.W. Goodsel) तथा बॉब बार्टलेट (Bob Bartlett) आदि व्यक्ति थे । इस दल में अनेक एस्कीमो भी थे जिन्हें उस प्रदेश के विषय में काफी जानकारी थी ।

रॉबर्ट पियरी का दल न्यूयार्क से चलकर शेरीडन अंतरीप (Cape Sheridan) पर पहुंचा । वहां से कैप्टन बार्टलेट की देखरेख में २८ फरवरी, १९०९ को कोलविया अंतरीप (Cape Columbia) से उनका दल अपने लक्ष्य की ओर रवाना हुआ ।

पूरे अभियान दल को तीन हिस्सों में बांट दिया गया । उत्तरी ध्रुव इस स्थान से ८०० कि.मी. दूर था । अभियान दल की पहली टोली ने अपनी यात्रा प्रातः काल आरंभ की । उस दिन का प्रातः स्वच्छ था लेकिन तापमान -50 डिग्री सेल्सियस था । यह टोली बार्टलेट की देखरेख में आगे बढ़ी । इसके दो घंटे बाद दूसरी टोली जॉर्ज बोरोप की देखरेख में रवाना हुई । पिअरे की योजना अपने मुख्य दल के साथ अगले दिन रवाना होने की थी ।

अगले दिन रॉबर्ट पियरी और हैनसन उस रास्ते पर रवाना हुए जो पहली टीम ने बनाये थे । बर्फीला रास्ता बड़ा भयानक था । हवा उस दिन बहुत तेज चल रही थी । यह दल आगे बढ़ रहा था कि अचानक ही समुद्र के ऊपर की बर्फ हट गयी और समुद्र निकल आया । कुछ कुत्ते उसमें डूब गये । कुछ स्लेज गाड़ियां टूट गयीं । बड़ा परिश्रम करने के बाद शेष लोगों की जाने बचीं । एक बार तो रास्ते में ऐसा हुआ कि पूरा दल ही बर्फ से घिर गया । बहुत प्रयास करने के बाद इन लोगों ने अपनी जाने बचायीं और आगे बढ़ना आरंभ किया । बर्फ की ठंड के कारण कुछ साथी बीमार हो गये थे और कुछ के पैर सूज गये । जगह-जगह बर्फ फट रही थी और समुद्र निकल रहा था । इस स्थिति को देखते हुए रॉबर्ट पियरी ने अपने कुछ साथियों को एक स्थान पर रोक दिया और स्वयं अपने नीग्रो सेवकों तथा चार एस्कीमों सहयोगियों के साथ आगे बढ़ा । उसके पास पांच स्लेज गाड़ियां और ४० कुत्ते थे । १ अप्रैल से ५ तक का समय बहुत ही कठिनाई का था । बर्फीली हवाएं हजारों सुइयों की भांति शरीर के खुले भागों में चुभ रही थीं । ५ अप्रैल को तो बड़ी भयानक ठंड थी । लेकिन रॉबर्ट पियरी ने आगे कदम बढ़ाने का निश्चय कर रखा था । उसने सोना और आराम करना छोड़ रखा था । जिन लोगों में साहस होता है वे निश्चय ही अपने उद्देश्य पर पहुंच जाते हैं ।

आखिरकार यह साहसी यात्री ६ अप्रैल, १९०९ को प्रातः १० बजे अपने गंतव्य पर जा पहुंचा । हैनसन, जो उसके साथ था, उसने एक छोटा-सा पैकेट खोला । पैकेट में एक रेशमी झंडा था जिसे रॉबर्ट पियरी की पत्नी ने कुछ वर्ष पहले बनाया था । रॉबर्ट पियरी ने झंडे को एक छोटे से डंडे पर लगाकर बर्फ में गाड़ दिया ।

पिअरे ने अपने चारों ओर बर्फ का एक शील्ड बनवाया और अपने साथ लाये यंत्रों से कुछ निरीक्षण किये । इस प्रकार इस व्यक्ति ने उत्तरी ध्रुव पर विजय प्राप्त की । अपने उद्देश्य की पूर्ति के बाद वह जुलाई मास में अपने देश लौट गया ।

अमरीकी सरकार ने उसे विशेष सम्मान दिया और नौसेना में उच्च पद प्रदान किया । सारे संसार के लोगों ने उसकी सफलता के लिए उसे अनेक बधाई पत्र और तार भेजे ।

रॉबर्ट पियरी का जन्म ६ मई, १८५६ में हुआ था । पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने अमरीकी नौसेना में सन् १८८१ से नौकरी आरंभ की । शुरू से ही उसके मन में उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने की अभिलाषा थी । नीग्रो हैनसन उसके सहयोगी थे जो सदा ही साथ रहे । उत्तरी ध्रुव पर विजय प्राप्त करने के ११ वर्ष बाद २० फरवरी, १९२० को इस साहसी यात्री की मृत्यु हो गयी । उसने सन् १९११ में अमरीकी नौसेना से अवकाश ग्रहण किया । अपनी यात्राओं से संबंधित उसकी तीन पुस्तकें बड़ी प्रसिद्ध हैं । ये पुस्तकें हैं – नॉर्थ वार्ड ओवर द ग्रेट आइस (Northward over the Great Eyes), द नॉर्थ पोल (The North Pole) और सीक्रेट्स ऑफ पोलर ट्रैवल (Secrets of polar travel)। इस साहसी यात्री को हम कभी भी नहीं भूल सकते ।

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