सोने का प्रदेश | El Dorado | एल डोराडो

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सोने का प्रदेश | El Dorado | एल डोराडो

कुछ समय पहले तक होमर के “इलियड” तथा “ओडिसी” नामक महाकाव्यों को काल्पनिक ही माना जाता था । हाइनरिख श्लीमान नामक एक व्यक्ति का विचार इससे एकदम भिन्न था । पेशे से हाइनरिख श्लीमान एक सफल जर्मन व्यवसायी था, परंतु पुरातत्त्व ज्ञान में उसकी गहरी रुचि थी । उसने इन ग्रंथों को कल्पित कथा नहीं माना । उसने जब होमर का “एगमैम्नोन की गॉर्गन ढाल” (Gorgon Shield of Agamemnon) का विवरण पढ़ा और उसे यह भी ज्ञात हुआ कि ढाल का पट्टा तीन सिरों वाले सांपों की आकृतियों से सुसज्जित है तो उसने इस सबको ठोस सत्य ही माना ।

उसका मानना था कि होमर द्वारा वर्णित रथ, अस्त्र-शस्त्र तथा घरेलू उपयोग की वस्तुएं वास्तव में ही प्राचीन यूनान का अभिन्न अंग थी । वह यह भी मानता था कि पेट्रोक्लस, हैक्टर, एचिलीस तथा एनियस और प्रेम, घृणा, मित्रता एवं साहसिक कार्यों की घटनाएं केवल कवि की कल्पना मात्र नहीं थे तथा ट्रोजन युद्ध एक सच्ची घटना थी ।

होमर में अपने इसी दृढ़ विश्वास के कारण करोड़पति हाइनरिख श्लीमान इस काल्पनिक प्रदेश की खोज में निकल पड़ा । उसकी पुरातत्त्वीय खोज उस समय सफलता पार कर गयी, जब उसने “प्रियम का खजाना” (Priam’s treasure) तथा माइकी के शाही मकबरे खोज निकाले ।

‘माइकी’ शब्द सुनहरे तथा खून-खराबे से भरपूर साम्राज्य का पर्यायवाची है । होमर के अनुसार, ट्रॉय धनी था किन्तु माइकी उससे भी कहीं अधिक धनी था । “सुनहरे” शब्द का प्रयोग होमर ने नगर का विवरण करते समय एक विशेषण के रूप में किया है । अपनी पहली खोज से प्रेरित होकर श्लीमान ने नई संपदाओं को खोजने के प्रयास दुगने कर दिए और उसने १८७४ में माइकी का प्राचीन नगर खोज निकाला ।

माइकीनी कोरिन्थ (Corinth) के इस्थमस (Isthmus) के रास्ते में आर्गोस (Argos) के सुदूरतम कोने में घोड़ों के चरागाह की भूमि पर स्थित था । श्लीमान को पश्चिम दिशा से यह नगर खण्डहरों की भांति ही प्रतीत हुआ था । किंतु हजारों वर्षों की धूल-मिट्टी भी अतीत कालीन गौरव तथा वैभव को छिपा नही सकी ।

अनेक पात्रों की खोज करने के अतिरिक्त उसकी एक अन्य प्रमुख खोज एक ऐसा गोलाकार ढांचा (Circular Structure) था जिसके किनारे पर तख्तों की दोहरी कतार बनी हुई थी । उसके अनुसार पत्थरों के इस घेरे पर माइकी नगर के वरिष्ठ लोग बैठते थे और सभा को संबोधित करते थे, सभा सलाह लेते थे तथा न्याय प्रदान करते थे ।

उसकी सबसे महान् खोज एक कब्रगाह थी, जो उसने ६ दिसंबर १८७६ को खोजी । वहां उसे पांच कब्रें मिलीं तथा १५ शवों के अस्थि-पंजर मिले, जो सोने तथा हीरों से सजे हुए थे । अब श्लीमान के लिये यूनानी रहस्य सुलझ गया था उसने बताया कि ये पांच कब्रें एगमैम्नोन, केस्साण्ड्रा (Cassandra), यूरिमेडो (Eurymedon) तथा उनके दो सेनापतियों की हैं । ये पांचों क्लिटम्नेस्ट्रा (Clytemnestra) तथा उसकी प्रेमिका द्वारा मार डाले गये थे । इस प्रकार श्लीमान ने उन यूनानी चरित्रों के रहस्य को सुलझा दिया, जो उनके वंशजों द्वार काल्पनिक दुनिया के वासी मान लिये गये थे ।

किन्तु श्लीमान की खोजें अभी भी अपूर्ण थीं । उसने और भी खुदाई की और उसे सोने के मुखौटे तथा कवच मिले, जो परंपरा के अनुसार मृत राजा को पहनाए जाते थे, ताकि मृत्यु के बाद उसकी दुष्प्रभावों से रक्षा हो सके । श्लीमान ने अपनी पत्नी की सहायता से चौथी कब्र में पाये गये पांच मृत शरीरों पर से मिट्टी की परते साफ कीं । कुछ ही घण्टे वायु के संपर्क में रहने के कारण इन अस्थि-पंजरों के सिर धूल में परिवर्तित हो गये लेकिन चमकदार सुनहरे मुखौटों का आकार पूर्ववत् ही रहा । प्रत्येक मुखौटा बिलकुल अलग नाक-नक्श दिखा रहा था । इन मुखौटों को देखकर श्लीमान ने कहा कि “ये ईश्वर के आदर्श रूपों से पूर्णतः भिन्न हैं तथ निःसंदेह प्रत्येक मुखौटा किसी मृत व्यक्ति के वास्तविक चेहरे की ही अनुभूति है ।“

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तो ये थीं श्लीमान की खोज! निःसंदेह उसने इतिहासकारों तथा पुरातत्त्ववेत्ताओं की उस धारणा का अंत कर दिया, जिसने इस पृथ्वीवासियों को काल्पनिक दुनिया के वासी बना दिया था । उसने केवल मिनोआई सभ्यता के निरंतर टिके रहने में ही विश्वास नहीं किया बल्कि माइकी सभ्यता की कथा को जीवन प्रदान किया ।

इसमें संदेह नहीं कि माइकी संस्कृति मिनोआई सभ्यता से अत्यधिक प्रभावित हुई थी, किन्तु साथ ही यह स्वयं भी स्वतंत्र रूप से विकसित हुई । आरंभ में कीटवासियों या मिनोआई लोगों ने यूनान देश के केन्द्रों में उपनिवेश स्थापित करने की चेष्टा की, किन्तु फिर किसी प्रकार से स्थिति बदल गयी और माइकी लोग ही इस देश के स्वामी बन गये । इस देश की सभ्यता के फलने-फूलने का प्रथम वास्तविक प्रमाण माइकी लोगों की मीनारों के समान बनी हुई कब्रों (Shaft Graves) के रूप में दिखायी देता है । ये कब्रें १६वीं शताब्दी में बनी होंगी क्योंकि इन कब्रों में सोना, चांदी, कांसा, स्फटिक आदि मूल्यवान सामग्री का प्रयोग किया गया है । अतः हम अनुमान लगा सकते हैं कि ये कब्रें किसी ऐसे उच्च राजसी परिवार का विश्राम-स्थल हैं, जो किसी संपन्न तथा प्रतिभाशाली समाज पर शासन कर रहा था । अनेक वस्तुएं जैसे-हाथी-दांत की नक्काशी, कटारें, किलेबंदी, कवच तथा हथियारों को देखकर लगता है कि उनके जीवन में युद्ध का महत्त्वपूर्ण स्थान था । यहां तक कि सोने के मुखौटे का स्वामी कोई साधारण दरबारी न होकर, लड़ाकू नायक ही होता था । ऐसे ही एक नायक का होमर ने भी वर्णन किया है । क्रीटवासियों के सुसंस्कृत तथा उत्कृष्ट शिल्प तथा माइकीनियों के शिल्प में यह एक बहुत बड़ा अंतर था । माइकीनियों को अपनी उन्नति करने का तभी मौका मिल पाया जब धीरे-धीरे क्रीटवासियों की सर्वोच्चता और उनका समुद्र पर नियंत्रण क्रमशः कम होता गया । इस बात की पुष्टि के लिये बहुत से पुरातत्त्वीय भूगर्भशास्त्रीय और भाषा-विज्ञान संबंधी प्रमाण मौजूद हैं ।

माइकीनियों ने कई बार माइनोयनों के प्रमुख केन्द्रों को जीतने की कोशिश की । माइनोयनों के विशाल महलों के चारों ओर कोई दीवार या रक्षात्मक खाइयां नहीं थीं । इसलिये वहां प्रविष्ट होना सरल था । हालांकि इनके महलों का विनाश १६००ई.पू. में हुआ, फिर भी इसमें माइकीनियों का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता है । इसीलिये बाद में माइनोयन महल धीरे-धीरे माइकीनी साम्राज्य का हिस्सा बन गये ।

प्लेटो के अनुसार मिनोआई सभ्यता का नाश उस क्षेत्र में हुई भयानक जल-प्रलय से हुआ । जो भी हो इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध हैं कि मिनोआई सभ्यता ने ही इन टापुओं पर पुनर्निर्माण का कार्य किया और एक नयी सभ्यता की नींव डाली ।

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भाषा संबंधी अध्ययन भी मिनोआई सभ्यता के उत्कर्ष और क्रीटवासियों के विनाश के साथ-साथ होने की ओर ही संकेत करता है । क्रीटवासी चित्र लिपि शैली का ही प्रयोग करते थे । फिर इस शैली का स्थान लेखन की एक नयी शैली ने ले लिया, यह शैली थी- लीनियर ए (Linear A)। यह शैली अमूर्त संकेतो (Abstract Signs) पर आधारित थी । १५०० ई.पू. के लगभग माइकीनियों के आगमन के साथ ही एक तीसरी प्रकार की लेखन-शैली विकसित हुई । यह शैली थी – लीनियर बी (Linear B)। १९वीं शताब्दी के पांचवें दशक में एक अंग्रेज माइकल वैण्ट्रिस् इसे समझ पाये । उन्होंने यह सिद्ध किया कि लीनियर बी अक्षरों वाली एक उन्नत भाषा-शैली है तथा यह यूनानियों की बोलचाल की एक प्राचीन भाषा है ।

इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में माइकीनियों की सर्वोच्चता स्थापित हो गयी थी । क्रीट पर भी माइकीनियों ने अधिकार कर लिया तथा नोसस के विशाल महल का नए राजवंश (Dynasty) के आवास के रूप में पुनर्निर्माण किया गया ।


क्या ८०० तथा ७०० ई.पू. के मध्य कवि होमर (Homer) द्वारा रचित “इलियड” (Illiad) तथा “ओडिसी” (Odyssey) केवल काल्पनिक ही हैं ? शताब्दियों तक इन्हें सचमुच एक महान् कवि की काल्पनिक उड़ानों के रूप में ही देखा जाता रहा, किन्तु १९वीं शताब्दी में एक जर्मन पुरातत्त्ववेत्ता हाइनरिख श्लीमान (Heinrich Schliemann) ने इन्हें काल्पनिक कथाएं मानने से इंकार कर दिया । ट्राय (Troy) तथा माइकीनी (Mycenae) में पाये गये अवशेष इन कथाओं के वास्तविक होने के प्रमाण हैं । इतिहासकार स्वर्ण से सुसज्जित इस सभ्यता को देखकर स्तब्ध रह गये ।

निजी घरों की अभी तक भी खोज नहीं की जा सकी है । किन्तु माइकीनी के अवशेषों से ज्ञात होता है कि निजी घर सुविधापूर्ण तथा सुख-साधन-संपन्न रहे होंगे । दीवारों तथा फर्शो पर भली-भांति प्लास्टर किया जाता था । हाथी दांत पर नक्काशी की जाती थी । इस नक्काशी में प्रायः ग्रिफिन (Griffins) तथा स्फिक्स (Sphinxes) बनाये जाते थे ।

मर्तबानों तथा लैम्पों का भी प्रयोग होता था । इन पर पूर्ववर्ती क्रीट युग के समान उभारदार नक्काशी नहीं की जाती थी । इस युग में सोने तथा चांदी का प्रयोग होने लगा था । माइकीनी में सोने का एक बड़ा बर्तन मिला है, जिसे मदिरा तैयार करने के काम में लाया जाता था । इस बर्तन को “सैन्य-पात्र” (Warrior Vase) कहा जाता था । इस बर्तन पर सशस्त्र आदमियों की कतार बनी हुई है, जिनकी नाकें आश्चर्यजनक रूप से बड़ी बनायी गयी हैं ।

कांसे के बर्तनों का भी प्रयोग किया जाता था । ये बर्तन कब्रों में पाये गये हैं । हथियार तथा कवच भी कांसे के बने होते थे, किन्तु कांसे से निर्मित वस्तुएं अन्य धातुओं से बनी वस्तुओं की तुलना में बहुत कम मात्रा में पायी गयी हैं । इसका कारण स्पष्ट है । उस समय यह धातु मूल्यवान समझी जाती थी, अतः इससे बनी किसी वस्तु के टूटने या बेकार हो जाने पर उसे सीधा कारीगर के पास पहुंचा दिया जाता था । दैनिक जीवन में इस धातु के महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि पाइलस (Pylus) में पायी गयी लीनियर बी की एक पट्टी पर कम-से-कम २७० कांसे के कारीगरों के नामों का उल्लेख है ।

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माइकीनियों के द्वारा निर्मित जो वस्तु समय की मार खाकर भी बची रही है, वह हैं मिट्टी के बर्तन । आमतौर पर मिट्टी के बर्तनों से पुरातत्त्ववेत्ताओं को तथ्य एकत्रित करने में बहुत मदद मिलती है, किन्तु माइकीनी सभ्यता के संबंध में तो ये बर्तन सचमुच बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं । मिट्टी के बर्तन बड़े पैमाने पर बनाये जाते थे । इस क्षेत्र में इनका अच्छा व्यापार होने के कारण प्रत्येक काल विशेष में उस समय के चलन के अनुसार एक विशेष शैली के ही बर्तन बनाये जाते थे । साथ ही यह उस समय की कला तथा संस्कृति की सामान्य प्रवृत्ति को भी प्रकट करती है । माइनोयनों से भिन्न, इस काल में इन बर्तनों पर की जाने वाली सजावट अधिक विशिष्ट (Stylized) हो गयी थी तथा आड़ी (Horizontal) रेखाओं का प्रयोग बहुत प्रचलित हो गया था । माइनोयन काल में रूपांकन के लिये प्राकृतिक नमूनों का प्रयोग होता था, लेकिन अब रेखीय (Linear) रूपांकन की मदद से नए प्रकार के नमूने बनाये जाने लगे ।

आवासी स्थानों की अपेक्षा कब्रों में मिट्टी के बर्तनों का पाया जाना एक महत्त्वपूर्ण पहलू की ओर संकेत करता है । इससे ज्ञात होता है कि ये लोग अपने अंत्येष्टि क्रिया संबंधी प्रबंधों का विशेष ध्यान रखते थे । मृत व्यक्ति के साथ नौका, निजी आभूषण, हथियार, औजार तथा बर्तन रखे जाते थे । कब्र के द्वार के बाहर अंतिम विदाई के रूप में सभी संबंधी एक प्याले से मदिरापान किया करते थे और फिर उस प्याले के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाते थे ।

पत्थरों से निर्मित मधुमक्खियों के छत्ते के आकार की कब्रें (Bechive tombs) शासकों का अंतिम विश्राम स्थल होती थीं । १४वीं शताब्दी में माइकीनी में निर्मित “ऐट्रियूस का खजाना” (Treasury of Atreus) माइकीनियों की वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । इसके साथ “खज़ाना” शब्द इसलिये जोड़ा गया है क्योंकि कब्र में पायी गयी सभी वस्तुएं बहुत मूल्यवान हैं । संभवतः ये शाही कब्रे शासकों के जीवनकाल में ही तैयार कर ली जाती थीं । इन कब्रों को बनाने में पर्याप्त समय तथा श्रम प्रयोग में लाया जाता था । इससे यह भी स्पष्ट होता है कि राजा को काफी उच्च स्थान प्रदान किया जाता था । फिर भी यह प्रश्न अभी भी बना हुआ है कि राजाओं को अपने जीवन काल में या उसके पश्चात् आम मनुष्यों से ऊपर माना जाता था या नहीं ?

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