रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट – विश्व के दुर्गम प्रदेश दक्षिणी ध्रुव पर प्राणों की बलि देने वाला खोज-यात्री | Robert Falcon Scott Biography In Hindi

रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट

रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट – विश्व के दुर्गम प्रदेश दक्षिणी ध्रुव पर प्राणों की बलि देने वाला खोज-यात्री | Robert Falcon Scott Biography In Hindi

अंटार्केटिका विश्व के सभी महाद्वीपों की तुलना में अत्यंत दुर्गम प्रदेश है । यह भारत और चीन के भूभाग से भी बड़ा है । अपनी भौगोलिक स्थिति और जलवायु विषमताओं के कारण यह मानव के आकर्षण का केन्द्र रहा है ।

यह एक निर्जन महाद्वीप के रूप में जाना जाता है लेकिन भौतिक, रासायनिक और जीव वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । इस दुर्गम प्रदेश पर जाने का प्रथम प्रयास रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट ने किया था ।

वह ब्रिटिश नौसेना में कप्तान था । उसे बचपन से ही यात्राएं करने का चाव था । दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने का उसने अपने मन में एक उद्देश्य बना रखा था । रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट ने जून, १९१० में दक्षिणी ध्रुव की यात्रा आरंभ की । उसका उद्देश्य रॉस सागर (Ross Sea) का अध्ययन करते हुए दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने का था । उसके अभियान दल में ११ और साथी थे । उनके साथ अनेक यंत्र, मोटर-स्लेज, टट्टू और कुत्ते थे । यह दल इवांस अंतरीप पहुंचा । इवांस अंतरीप से यह दल २४ अक्तूबर, १९११ को दक्षिणी ध्रुव की ओर रवाना हुआ ।

वहां से दक्षिणी ध्रुव लगभग ६५० कि.मी. दूर था । यात्रा के आरंभ में ही स्लेज गाड़ियों की मोटरें खराब हो गयीं । ठंड और बर्फीली हवाओं के कारण टट्टुओं और कुत्तों को वापस भेजना पड़ा । हिम्मत के साथ दल ने आगे बढ़ना शुरू किया और १० दिसंबर को इस अभियान दल ने बीअर्डमोर (Beardmore) ग्लैसियर पर स्लेजों की सहायता से चढ़ना आरंभ किया । रास्ते की कठिनाइयों, बर्फीले तूफानों और ठंड के कारण ३१ दिसंबर तक इस दल के सात सदस्य वापस बेस कैंप आ गये थे ।

इसे भी पढ़े :   महारानी पद्मावती का इतिहास । महारानी पद्मिनी की कहानी । Rani Padmavati Story

अब इस दल में रॉबर्ट स्कॉट के साथ एडवर्ड विल्सन (Edward Willson), हेनरी बावर्स (Henry Bowers), एल.ई.जी. ओट्स (L.E.G. Oates) और एडगार इवांस (Edgar Evans) ही बचे थे । रास्ते की मुसीबतें झेलते हुए ८१ दिन तक यात्रा करने के बाद ये सदस्य १७ जनवरी, १९१२ को दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचे । रॉबर्ट स्कॉट के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने यह देखा कि नार्वे का रोल्ड एमंडसन (Roald Amundsen) नामक खोज-यात्री उनसे पहले ही वहां पहुंच चुका है ।

इसे देखकर स्कॉट बहुत दुःखी हुए । उन्हें इस बात का दुःख था कि इतने कष्ट उठाकर और जीवन को जोखिम में डालकर भी वे दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाले प्रथम व्यक्ति न बन सके । उन्होंने दुःखी होकर नार्वे के झंडे की बगल में अपना झंडा फहरा दिया । स्कॉट का अभियान दल वहां कुछ दिन रुका लेकिन मौसम अत्यंत खराब था । कुछ दिन रुकने के बाद इस दल ने लौटना आरंभ किया । चारों ओर सैकड़ों कि.मी. तक फैले बर्फ के पहाड़ दिखायी देते थे । बर्फीले तूफानों में हवा की गति २०० कि.मी. प्रति घंटे से भी अधिक थी । लौटने की यात्रा के दौरान स्कॉट का पहला साथी इवांस, बिअर्डमोर ग्लैसियर पर १७ फरवरी, १९१२ को ठंड की वजह से मर गया । उनका दूसरा साथी ओट्स १७ मार्च को बर्फीले तूफान में फंसकर भगवान को प्यारा हो गया । बचे हुए तीन यात्रियों ने बर्फीले तूफान में दस मील की यात्रा की लेकिन वे भी शीत से लगभग जम गये थे । उनका खेमा अभी लगभग १८ कि.मी. दुर था । स्कॉट ने २२ मार्च को अंतिम बार अपनी डायरी लिखी । उसके शब्द थे :-

इसे भी पढ़े :   हित्ती सभ्यता | Hittite Civilization

“हम रोजाना ११ मील की दूरी पर स्थित अपने खेमे पर पहुंचने के लिए तैयार होते हैं लेकिन बर्फीले तूफान के कारण कुछ कर नहीं पाते । मुझे दुःख है कि मैं अब फिर न लिख पाऊंगा लेकिन मेरी यह यात्रा बहुत ही साहसपूर्ण रही । ऐसा लगता है कि अब हम ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पायेंगे ।“

इसके बाद ये तीनों साथी भी सन् १९१२ में ठंड और बर्फीली हवाओं के कारण भगवान को प्यारे हो गये । १२ नवंबर, १९१२ को खोज करने पर आठ महीने बाद तंबू में तीन जमे हुए शव प्राप्त हुए । इस प्रकार अपनी मंजिल पर पहुंचकर दम तोड़ने वाले इन बहादुरों के चेहरों पर संतोष की झलक थी ।

वास्तविकता तो यह है कि रॉबर्ट स्कॉट को अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाले प्रथम यात्री के रूप में श्रेय प्राप्त न हो सका चूंकि इनसे पहले १४ दिसंबर, १९११ को रोल्ड एमंडसन वहां पहुंच चुके थे । इसलिए रोल्ड एमंडसन का दक्षिणी ध्रुव का प्रथम खोज-यात्री और रॉबर्ट स्कॉट को द्वितीय खोज-यात्री के नाम से जाना जाता है । सन् १९२९ में अमरीका के रिचार्ड बायर्ड (Richard Byrd) तीसरे खोज-यात्री के रूप में वहां पहुंचे ।

सन् १९७० के बाद अनेक देशों के कई दल दुर्गम प्रदेश अंटार्कटिका जा चुके हैं । भारत का प्रथम अभियान दल ९ जनवरी, १९८२ को अंटार्कटिका महाद्वीप पर पहुंचा था । तब से अब तक हमारे देश के कई अभियान दल वहां जा चुके हैं । पिछले वर्षों में ३५० से भी अधिक भारतीय व्यक्ति अंटार्कटिका जा चुके हैं । इस प्रदेश के बर्फीले पहाड़, सुंदर पैंगुइन, उछलती कूदती सील मछलियां बड़े ही सुंदर लगते हैं ।

इसे भी पढ़े :   बेटे के शिक्षक के नाम लिंकन की चिट्टी | Lincoln`s Letter To The Son`s Teacher

विश्व के अनेक लोग इस प्रदेश में जाते रहते हैं और यहां के विषय में अनेक अनुसंधान करते रहते हैं । यहां से लोगों को अनेक खनिज पदार्थ मिलने की आशा है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *