फ्रिडचॉफ नानसेन | Fridtjof Nansen

फ्रिडचॉफ नानसेन

फ्रिडचॉफ नानसेन | Fridtjof Nansen

फ्रिडचॉफ नानसेन नार्वे का खोज-यात्री था, जिसने सन् १८९३ और १८९६ के बीच सर्वप्रथम फ़ाम (Fram) नामक जलयान से अंटार्कटिक सागर की खोज-यात्रा की और उत्तरी ध्रुव के पास तक पहुंचा ।

फ्रिडचॉफ नानसेन का जन्म सन् १८६१ में नार्वे के क्रिश्चियाना (Christiana) नामक स्थान में हुआ था । वह एक शक्तिशाली व्यक्ति था । यद्यपि आज उसे एक साहसी खोज-यात्री के रूप में याद किया जाता है लेकिन वह एक वैज्ञानिक, कलाकार और महान राजनीतिज्ञ भी था ।

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फ्रिडचॉफ नानसेन को सन् १९२२ का शांति के लिए नोबेल पुरस्कार (Nobel Peace Prize) प्रदान किया गया ।

युवा फ्रिडचॉफ नानसेन एक उत्साही खिलाड़ी, चतुर शिकारी और मछली पकड़ने वाला था । नार्वे के दूसरे लोगों की भांति वह एक दक्ष स्केटर (Skater) भी था । उसकी बाहरी दुनिया में बहुत अधिक रुचि थी और विज्ञान उसका प्रिय विषय था, इसलिए उसने विश्वविद्यालय स्तर पर जंतुविज्ञान का अध्ययन किया । भौतिक चातुर्य और मानसिक रुचि के सम्मिश्रण से वह एक प्रभावशाली वैज्ञानिक और खोज-यात्री बन गया ।

आर्कटिक क्षेत्र की परिस्थितियों के विषय में उसे छोटी उम्र में ही अनुभव प्राप्त हो गये थे । उसने भूगर्भ प्रेक्षक (Geological Observer) के रूप में वाइकिंग (Viking) नामक जलयान पर, जो स्पिट्सबर्जन (Spitsbergen) और ग्रीनलैंड (Greenland) के बीच यात्रा करता था |

ग्रीनलैंड में बर्फ के विशाल मैदानों को देखकर उसके मन में बर्फीले क्षेत्रों की यात्राओं का विचार पैदा हुआ । इसी विचार को प्रयोगात्मक रूप में परिवर्तित करने के लिए उसने सन् १८८८ में बर्फीले मैदानों को स्की (Ski) और स्लेज की सहायता से पार करने का निश्चय किया । छह लोगों की टीम ने ग्रीनलैंड के इन बर्फीले मैदानों को सफलतापूर्वक पार कर लिया । फ्रिडचॉफ नानसेन ने एस्कीमों लोगों से बर्फ में रहने और चलने के विषय में अनेक बातें सीखीं । साथ ही साथ उसने एस्कीमों लोगों की जिंदगी से संबंधित एक पुस्तक लिखने के लिए जानकारियां एकत्रित कीं ।

एस्कीमों लोगों के जीवन से संबंधित उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक सन् १८९१ में प्रकाशित हुई ।

यद्यपि २८ साल की उम्र तक ग्रीनलैंड को पार करने वाला नैनसन प्रथम व्यक्ति था और वह अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका था लेकिन उसे इससे संतुष्टि नहीं थी । सन् १८८४ में उसने एक समाचार पत्र में लेख पढ़ा, जिसमें एक जहाज के कुछ टुकड़े बर्फ में जमे हुए पाये जाने का विवरण दिया गया था । निश्चय ही यह टुकड़े तीन साल के अंतराल में उत्तरी दक्षिणी अक्ष पर काफी दूरी तक खिसक गये थे । फ्रिडचॉफ नानसेन के दिमाग में आया कि हवा और बर्फ के खिसकने की शक्ति द्वारा वह उत्तरी ध्रुव तक पहुंच सकता था । सन् १८९१ में फ्रिडचॉफ नानसेन ने अपना यह विचार क्रिश्चियाना की रॉयल जीओग्रैफिकल सोसायटी के सामने प्रस्तुत किया ।

उसने बताया कि वायु के बल के सहारे वह उत्तरी ध्रुव की ओर पहुंच सकता है । उससे पहले के खोज-यात्री ग्रेटआर्कटिक आइसबेरियर तक पहुंच चुके थे लेकिन बर्फ में दबने और कुचलने के डर से वह आगे नहीं बढ़ पाये थे । फ्रिडचॉफ नानसेन की इच्छा थी कि वह एक विशेष प्रकार के जलयान का निर्माण कराये और उसे बर्फ के बीच धारा के सहारे छोड़ दे ताकि वह खिसकते-खिसकते ध्रुव तक जा पहुंचे । वह जानता था कि यह जरूरी नहीं कि धारा के सहारे वह ध्रुव तक पहुंच जायेगा लेकिन उसका मंतव्य था कि इस यात्रा के दौरान वह निश्चय ही ध्रुव के चारों ओर के अज्ञात क्षेत्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कर लेगा ।

एक बार फ्रिडचॉफ नानसेन ने बहुत सारे ऐसे प्रमाण एकत्रित किये जिनसे यह प्रदर्शित होता था कि ध्रुवीय सागर की बर्फ साइबेरिया से स्पिट्सबर्जन की ओर खिसकती है । फ्रिडचॉफ नानसेन की देखरेख में नार्वे के इंजीनियर कालिन आर्चर ने जलयान निर्माण की योजना तैयार की । इस जहाज का नाम फ्राम (Fram) रखा गया । फ्राम बनकर तैयार हो गया । यह देखने में सुंदर नहीं था लेकिन काफी मजबूत था । इसकी चौड़ाई ३० फुट थी जो इसकी लंबाई की लगभग एक तिहाई थी । जहाज में पांच वर्ष के लिए राशन और कई वैज्ञानिक उपकरण लादे गये । १३ व्यक्तियों की टीम ने इस यान द्वारा २४ जून, १८९३ को यात्रा आरंभ की । १३ व्यक्तियों की इस टीम में ओटो (Otto) और लेफ्टीनेंट हजैल्मर जॉनसन (Hjalmar Johansen) भी थे ।

टीम के साथ डॉक्टर, हजैल्मर, घड़ीसाज और बिजली का साजो-सामान ठीक करने वाले व्यक्ति भी थे । २० सितंबर को यह जहाज ग्रेट आइस बैरियर के पास पहुंचा । जहाज को बर्फ के एक विशाल खंड की ओर खिसका दिया गया । जहाज ने ध्रुवीय बर्फ पर खिसकना आरंभ किया । टीम के सदस्यों ने वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से अनेक आंकड़े लेने आरंभ किये । समय बीतता गया और जहाज खिसकता रहा । खिसकने की दर बहुत ही धीमी थी ।

१४ मार्च, १८९५ को फ्रिडचॉफ नानसेन ने जहाज के खिसकने की दर धीमी होने के कारण पैदल ही ध्रुव की ओर जाने का निश्चय किया । उसके साथ लेफ्टीनेंट जॉनसन भी था । इन दोनों यात्रियों ने अपने साथ तीन स्लेज, २७ कत्ते, रेडियर की खाल से बने सोने के थैले, वैज्ञानिक उपकरण, सूखी मछली और मांस आदि सामग्री ली । पंद्रह महीने तक वे यात्रा करते रहे ।

१७ जून, १८९६ को उनकी मुलाकात फ्रैंज जोसेफ लैंड (Franz Josef Land) पर एक अंग्रेज खोज-यात्री से हुई । इधर फ्राम भी धीरे-धीरे खिसक रहा था । नैनसन और जॉनसन अपनी यात्रा पर आगे बढ़ते चले जा रहे थे । वहां का तापमान -४७ डिग्री सेल्सियस के लगभग था । ८ अप्रैल को ये दोनों यात्री बर्फ के विशाल क्षेत्र में पहुंचे और इन्होंने यह मान लिया कि इस बर्फीले क्षेत्र को पार करना लगभग असंभव है । वहीं इन्होंने नार्वे का झंडा फहरा दिया ।

यह स्थान उत्तरी ध्रुव से लगभग २५० मील दूर था । थके हुए ये दोनों यात्री घर की ओर वापस चल पड़े । रास्ते में खाद्य सामग्री की कमी होने के कारण इन्हें अपने वफादार कुत्ते मारने पड़े । अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए ये दोनों यात्री क्रिश्चियाना पहुंचे । क्रिश्चियाना में इनका भव्य स्वागत किया गया ।

यद्यपि यह टीम उत्तरी ध्रुव पर नहीं पहुंच पायी लेकिन आर्कटिक सागर की परिस्थितियों का पूर्ण विवरण इस यात्रा से प्राप्त हो गया । निश्चय ही यह अपने-आप में एक महान उपलब्धि थी । फ्राम यान का डिजाइन इतना अच्छा था कि कुछ वर्ष बाद एमंडसन ने दक्षिणी ध्रुव की यात्रा के लिए इसे नैनसन से उधार मांगा और दक्षिणी ध्रुव की यात्रा की ।

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