वीर कुंवर सिंह । Kunwar Singh

वीर कुंवर सिंह । Kunwar Singh

सन् १८५७ के सिपाही युद्ध में बाबू कुँवर सिंह ने अंग्रेजी सेनाओं से लोहा लिया था, पर सरकार की विजयी सेनाओं के सामने उनके पैर न टिक सके ।

बिहार केसरी कुंवर सिंह का जन्म बिहार प्रदेश के अन्तर्गत शाहाबाद ज़िले के जगदीशपुर प्रांत के क्षत्रीय वंश में १३ नवम्बर १७७७ मे हुआ था । इनके पिता का नाम वीरवर बाबू साहबज़ादा सिंह था । बাबू दयालु सिंह, राजपति सिंह तथा अमर सिंह इनके और तीन छोटे भाई थे । इनको पढ़ने-लिखने का शौक़ यद्यपि कम था परंतु हिन्दी, ऊर्दू लिखना-पढ़ना जानते थे । इन्हें बाल्यावस्था से ही आखेट से बहुत प्रेम था । वे बदमाश-से-बदमाश घोड़ों पर चढ़ने, बन्दुक चलाने, तीर तथा गुलेल छोड़ने और माला चलाने में पूर्ण सिद्धहस्त थे । बाबू कुँवर सिंह आरम्भ से ही स्वतंत्रता तथा स्वाभिमान के बहुत बड़े भक्त थे ।

AVvXsEihS5PwH4DnEw2RFd6FQlw ynW6tBf65VyeY97UeQ6pVJEoK geadwTdPxI8nsv38c5WwATePg5SJ8wZQ6fA6U fd6s761dHE8S0ZiHf6sk jWiVOujhaIsuouoxDbi49GFzHp NPy0lw4XzUn2EMsiYJvdMuJBu8MM1GZk1UwdTYzod7rFYpeaX3C=s320

कुंवर सिंह का विवाह देवमूँगा अर्थात गया के राजा फतहनारायण सिंह की कन्या से सन् १८०० में हुआ । पाँच साल पश्चात् इनके एक पुत्ररत्न हुआ, जिसका नाम दलमंजन सिंह रखा गया ।

सन् १८५७ के जून महीने में उत्तर भारत के प्रायः सभी प्रमुख स्थानों में विद्रोह की आग भड़क उठी थी । इससे बिहार भी वंचित न रहा । वहाँ के कमिश्नर मि. टेलर ने बिना सुझबुझ के काम लिया, इसलिये विद्रोह की आग और भी ज़ोरों में भड़क उठी । मि. टेलर बाबू कुंवर सिंह को पकड़ कर फाँसी देना चाहते थे, और इधर विद्रोही सिपाही उनसे कहते की अगर आप हमारा साथ न देगे, तो हम आपको सपरिवार मार डालेंगे ।

अन्त मे बाबू कुँवर सिंह को विद्रोहियों का ही साथ देना पड़ा । बाबू कुँवर सिंह के नेतृत्व में विद्रोही सेनाओं और अंग्रेजी सेनाओं में कई लड़ाइयाँ हुई, पर सफलता न प्राप्त हुई। विद्रोह निष्फल होने पर कुँवर सिंह भागते रहे और भागकर नेपाल तक पहुँच गये थे; पर नेपाल के राजा जंगबहादुर ने उन्हें शरण न दी । फिर वे लौटकर जगदीशपुर आये और यहाँ उनके भाई बाबू अमर सिंह ने उनका बड़ा स्वागत किया, अब उनकी आयु भी ७० वर्ष की हो चुकी थी और शरीर से बहुत अस्वस्थ थे । एकाएक उन्हीं दिनों मे उनका स्वर्गवास हो गया ।

बाबू अमर सिंह भी कुछ दिनों तक अंग्रेजो से वीरता-पूर्वक लड़ते रहे; पर अन्त में गिरफ्तार हो गये। उन्हें जेल में डाला गया और जेल में ही उनकी मृत्यु हो गयी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *