कनाडा की खोज किसने की थी | कनाडा की खोज यात्री | Who Discover Canada

Who Discover Canada

कनाडा की खोज किसने की थी | कनाडा की खोज यात्री | Who Discover Canada

युरोपीयों द्वारा की गयीं कनाडा की खोज-यात्राओं का विवरण बड़ा ही दिलचस्प है । कहा जाता है कि सन् १००० में लीफ एरिक्सन (Leif EriCsson) नामक एक वार्याकंग खोज-यात्री ग्रीनलैंड से यात्रा करता हुआ उत्तरी अमरीका तक गया, लेकिन वह वहां थोड़े समय के लिए ही रुका । यह शायद वह स्थान था जिसे आज हम उत्तरी पूर्वी संयुक्त राज्य कहते हैं । उसने इस स्थान का नाम विनलैंड (Vinland) रखा क्योंकि वहां अंगूर काफी मात्रा में पैदा होते थे ।

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इसके पश्चात् कोलंबस ने कई यात्राएं की और वह एशिया की खोज में दक्षिणी अमरीका जा पहुंचा । सन् १४९७ में इटली का जॉन केबोट (John Cabot) कनाडा के किनारों तक जा पहुंचा, लेकिन वह भी गलती से उसे दूसरा ही महाद्वीप समझ बैठा ।

सन् १४९९ और १५०० के बीच इटली का एक व्यापारी अमरीगो वैसपूसी (Amerigo Vespucci) दक्षिणी अमरीका के उत्तरी किनारों तक जा पहुंचा । उसे यह भली-भांति पता था कि यह एशिया नहीं है । अमरीगो के नाम पर ही इस महाद्वीप का नाम अमरीका पड़ा ।

सन् १५२३ तक कोई भी व्यक्ति कनाडा के आंतरिक भागों तक न जा सका । उसी वर्ष फ्रांस के राजा फ्रांसिस-प्रथम (Francis-I) ने यह कार्य एक इटली के नाविक गिओवेन्ने दा वैराजेनो (Giovanne da Verrazano) को सौंपा । परंतु वह अपनी यात्रा में सफल न हो पाया ।

सन् १५३४ में फ्रांस के एक चतुर नाविक जैक्स कार्टियर (Jacques Cartier) ने कनाडा के आंतरिक भागों में जाने का बीडा उठाया । फ्रांसिस-प्रथम ने कार्टियर को दो जहाज और राशन सामग्री देकर यात्रा पर रवाना किया । यह नाविक पहले भी न्यू फाउंडे लैंड तक जा चुका था, अतः बहुत सारा रास्ता उसका देखा हुआ था । वह लैब्रोडोर और पश्चिमी न्यूलैंड के किनारे-किनारे चलता हुआ सेंट लारेंस (St. Lawrence) नदी के किनारे तक जा पहुंचा । वहां से आगे यात्रा करके वह आगे बढ़ा और कनाडा के आदिवासियों से बातचीत की । वहां के आदिवासी उसके मित्र बन गये । फ्रांस लौटते समय वह कनाडा के दो आदिवासियों को साथ लेकर गया ।

सन् १५३६ में कार्टियर तीन जहाज लेकर दोबारा कनाडा की यात्रा के लिए रवाना हुआ । वह सेंट लारेंस नदी से होता हुआ क्यूबैक (Quebec) तक पहुंचा ।

एक नौका के सहारे नदी में यात्रा करता हुआ वह एक गांव में पहुंचा जिसे आज मांट्रियल (Montreal) कहा जाता है । इस बार वह अपने साथ कनाडा के बारह आदिवासी साथ लेकर लौटा ।

कनाडा के आंतरिक भागों में पहुंचने के बाद फ्रांस वालों ने वहां अपने उपनिवेशों की स्थापना का ध्येय बनाया । सन् १५४१ में कुछ सैनिकों के साथ वह फिर कनाडा की यात्रा पर चला । लेकिन फ्रांस के सैनिक रास्ते की कठिनाइयों के कारण पहुंच न पाये और यात्रा असफल रही । यात्रा से लौटने पर फ्रांसिस-प्रथम ने कार्टियर का काफी सम्मान किया । वह एक बार फिर कनाडा जाना चाहता था लेकिन सन् १५५७ में उसके जन्म स्थान सेंट मारलो में उसकी मृत्यु हो गयी ।

इसके पश्चात् सन् १६०३ में फ्रांस के सेमुएल डी चैंप्लेन (Samuel de Champlain) ने कनाडा की यात्रा की । उसका जन्म सन् १५६७ में फ्रांस बिस्के खाड़ी में हुआ था । वह एक ऐसा यात्री था जिसने सन् १६०८ में कनाडा में फ्रांस की बस्तियां बसायीं । उसने इनका नाम ‘नया फ्रांस’ रखा । यही कारण है कि उसे नये फ्रांस का ‘जन्मदाता’ कहा जाता है ।

सन् १६०९ में चैंप्लेन (मध्य में) आदिवासियों से लड़ते हुए कुछ समय बाद चैंप्लेन फ्रांस लौट गया, लेकिन चार वर्ष बाद वह फिर कनाडा वापस आ गया । उसने फ्रांस के अनेक परिवारों को कनाडा ले जाकर बसाया । वह हर वर्ष फ्रांस जाता और वहां से कुछ परिवारों को कनाडा में फ्रांस की बस्तियां बसाने के लिए अपने साथ ले जाता ।

चैंप्लेन ने कनाडा में फ्रांस के उपनिवेश स्थापित करने में इतना महान योगदान दिया कि सन् १६१२ में उसे नये फ्रांस का ‘लेफ्टीनेंट गवर्नर’ बना दिया गया । शासन की काफी व्यस्तता होने के बावजूद भी वह कनाडा में फ्रांस के विस्तार के लिए कार्य करता रहा ।

ब्रिटेन भी कनाडा में अपने उपनिवेश स्थापित कर रहा था । ब्रिटेनवासी चैंप्लेन से खुश न थे । इसलिए सन् १६२९ में ब्रिटिश बेड़े ने उसे क्यूबैक में कैद कर लिया और इंग्लैंड ले गये । कैदी के रूप में वह अपनी यात्राओं के विवरण लिखता रहता था । जब कनाडा फिर से फ्रांस को प्राप्त हुआ तो वह फिर क्यूबैक आ गया ।

नया फ्रांस स्थापित करने वाले महान चैंप्लेन की सन् १६३५ में मृत्यु हो गयी ।

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