ह्यूग क्लैपरटन – सहारा मरुस्थल का प्रथम खोज-यात्री | Hugh Clapperton History
सहारा मरुस्थल समस्त यूरोप से भी बड़ा है । सहारा एक अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है – ‘जंगलीपन’। यहां चारों ओर बालू ही बालू है, दिन में अत्यधिक गर्मी होती है और रातें काफी ठंडी होती हैं । वर्षा यहां न के बराबर ही होती है ।
अनेक खोज-यात्रियों ने सहारा मरुस्थल जाने के प्रयास किये । ह्यूग क्लैपरटन पहला यूरोपीय यात्री था जिसने सहारा के विशाल रेगिस्तान की खोज-यात्रा की ।
हग क्लैपर्टन का जन्म १८ मई, १७८८ को अनान (Annan) में हुआ था । वह नौसेना में एक अफसर था । उत्तर अफ्रीका की एक खोज-यात्रा पर जाने वाले डिक्सन डेनहम (Dixon Denham) और वाल्टर औडनी (Walter Oudney) के दल में उसे भी शामिल किया गया । यात्रा का प्रबंध ब्रिटेन की सरकार ने किया था जिसका उद्देश्य नाइजर नदी के उद्गम का पता लगाना था ।
सन् १८२२ में यह यात्रा आरंभ हुई । यह दल दक्षिण की ओर ट्रिपोली (Tripoli) से सहारा मरुस्थल होते हुए लेक चड (Lake Chad) तक सन् १८२३ में पहुंचा । औडनी की मर्नर (Murner) नामक स्थान पर मृत्यु हो गयी । क्लैपर्टन और डिक्सन में मतभेद पैदा हो गया और वे दोनों एक दूसरे से अलग हो गये । अब क्लैपर्टन अकेला ही कानो (Cano) की ओर चल पड़ा । लेक चड के पश्चिम में यह शहर व्यापार का एक महान केन्द्र था । कानो से वह सोकोटो (Sokoto) तक गया, जहां उसकी दोस्ती वहां के शासक सुल्तान से हो गयी । इस यात्रा पर कुका (Kuka) पहुंचकर ह्यूग क्लैपरटन और डेनहम की फिर मुलाकात हुई ।
इन दोनों ने यह सिद्ध कर दिया कि कोई भी नदी, जो लेक चड से निकलती है, उनका नाइजर नदी से कोई संबंध नहीं है । इन तथ्यों के साथ ह्यूग क्लैपरटन सन् १८२५ में इंग्लैंड लौट गया और अपनी यात्राओं से संबंधित एक किताब लिखी ।
नाइजर नदी की समस्या का समाधान करने के लिए वह सन् १८२५ में फिर अफ्रीका की यात्रा पर चल पड़ा । दिसंबर, १८२५ में क्लैपर्टन बैनिन (Benin) से नाइजर नदी की ओर चल पड़ा । नौ महीने तक कठिन यात्रा करने के पश्चात् वह कानो होता हुआ सोकोटो पहुंचा । वहां उसे सुल्तान ने रोक लिया । रास्ते की कठिनाइयों के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया और वह बहुत कमजोर हो चला था । ३९ वर्ष की उम्र में १३ अप्रैल, १८२७ को क्लैपर्टन की सोकोटो में मृत्यु हो गयी ।
इस साहसी यात्री को सोकोटो की चहारदीवारी के बाहर दफनाया गया । कैप्टन ह्यूग क्लैपरटन की अफ्रीका की अंतिम यात्रा का विवरण सन् १८३० में लैंडर (Lander) ने प्रकाशित कराया जो दिलचस्प और रोमांचकारी है ।
इसके पश्चात् सहारा मरुस्थल की ओर लेक चड की अनेक यात्राएं की गयीं और इस विस्तृत क्षेत्र के विषय में अनेक जानकारियां प्राप्त की गयीं । इसके विषय में की गयीं खोजों से पता चलता है कि हजारों वर्ष पहले सहारा एक हरा-भरा क्षेत्र था और वहां अनेक नदियां बहती थीं । इन नदियों द्वारा काटी गयी गहरी घाटियों से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि वहां मानव सभ्यता काफी विकसित थी । ऐसा अनुमान किया गया है कि अंतिम हिमयुग समाप्त होने के पश्चात् यह क्षेत्र सूखने लगा । जैसे-जैसे यह क्षेत्र सूखता गया वैसे-वैसे ही सहारा में रहने वाले लोगों ने दूसरे स्थानों की ओर जाना आरंभ कर दिया । आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व सहारा ने रेगिस्तान का वह रूप धारण कर लिया जो हमें अब दिखायी देता है । बिना ऊंटों की सहायता से इस मरुस्थल को पार करना लगभग असंभव है ।