Samosa Ka Itihas :
यह सनसनीखेज खुलासा जो शत प्रतिशत सत्य है कि समोसा भारतीय व्यंजन नहीं है, लेकिन चमकीले तेल में गहरा तला हुआ यह गरमा गर्म नमकीन पकवान हम तक कैसे पहुंचा ?
इसका इतिहास बहुत दिलचस्प है, तो पेश है समोसा का इतिहास
भारत में समोसा तो सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाला शाकाहारी नाश्ता है, जहां उत्तर भारत में समोसे का बड़ा रूप दिखाई देता है, वहीं भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में छोटे और मीठे समोसे बनते हैं जिन्हें “सिंघाड़ा” कहा जाता है, और थोड़े नीचे चले जाओ तो दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में बहुत छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे “कीमा समोसे” बनते हैं
आमतौर पर भारतीय समोसा एक त्रिभुजाकार आकृति जैसा होता है जिसके अंदर भरा जाता है उबले आलू, हरे मटर, हरी मिर्च और मसालों का मिश्रण | फिर इस पूरी सामग्री को गर्म तेल में तला जाता है, जब तक यह सुनहरा हल्का भूरा न हो जाए |
मजे के लिए इमली की चटनी के साथ गर्म-गर्म दिया जाता है लेकिन अगर समोसा भारत का नहीं है तो कहां से आया |
इरानी इतिहासकार अबुल फजल बैहाकी ने अपनी किताब तारीख-ए-बैहाकी में समोसे का जिक्र किया है इस हिसाब से समोसा तकरीबन १०वीं सदी में मध्य पूर्वी दिशा में पैदा हुआ था, जहां उसे “समबोसा” कहा जाता था |
दसवीं सदी से १३वीं सदी की अरबी पाक-शास्त्र की किताबों में समोसा को समबुसा का नाम दिया गया है जो कि फारसी शब्द समबोसा से काफी मिलता-जुलता है | इजिप्ट, सीरिया और लेबनान में अब भी ये उच्चारण प्रचलित है |
पारंपरिक समोसा अर्धचंद्रकार होते थे, इसमें मांस, प्याज, किशमिश या सूखे मेवों का मसाला भरा जाता था और फिर सारी सामग्री को तेल में तला जाता था | लेकिन क्या भोजन को तलने की कला भी भारत में बाहरी देशों से आई थी |
वैसे तो माना जाता है की २५०० ईसा पूर्व में तलने की कला इजिप्ट में ईजाद हुई थी लेकिन यदि हड़प्पा में पाए गए तांबे के पात्रों और ऋग्वेद में वर्णित उपायों यानि तले हुए मीठे मिष्ठान को नजरअंदाज नहीं किया जाए, तो यह मानना अनुचित नहीं होगा कि भारत में तले हुए भोजन का चलन प्राचीन काल से ही प्रचलित है |
लेकिन अब यह देखा जाए कि आखिर यह लाजवाब समोसा भारत तक पहुंचा कैसे हैं | १४ सदी में कुछ व्यापारी दक्षिण एशिया से मध्य पूर्वी एशिया से कई चीज़ें साथ में लाए थे, साथ में उनके साथ चला आया नरम-गरम समोसा, जो आने वाली सदियों में बस यहीं का होकर रह गए |
मशहूर खुसरो अमीर भी आईने अकबरी में इसको जिक्र खूब किया और तभी से समोसा राजभोग बन गया | इसके साथ ही साथ बाहर से आए यात्रीगण भी समोसे के बारे मे लिख गए जिसमे इब्न बतूता जी भी शामिल थे |
इसके साथ ही हमारा समोसा अलग-अलग नामो को हासिल करता गया | जैसा “सिंघोड़ा” है नेपाली, तो “समोसा” म्यांमार वाले कहे | मध्य एशिया इसे “शमसास” पुकारता है, “जम्मू-कश” पुर्तगाल वाले कहे | अफ्रीका में “समबुसा” बनकर यह काफी प्रसिद्ध हुआ और “शम्बू-स” कहलाया जब इसराइल की ओर चला | पर एक बात तो है कि भारतीय समोसा अपने सारे विदेशी भाई बहनों में से सबसे ज्यादा मशहूर है मगर क्यों ? क्योंकि यहां के समोसे में आलू का राज है |
यूरोपियों ने आलू खोजा जाकर दक्षिण अमेरिका से | सन १४९८ में आलू भारत आया पुर्तगाली बनके, लेकिन सन १८५० मे जब अंग्रेज हमारे आसपास आए, तब उन्होने आलू को बनाना सिखाया | अब बाहर से आया आलू और बाहर से ही समोसा भी | पर इन दोनों को एक साथ सिर्फ हमने ही परोसा |