शालिग्राम कथा | Shaligram Katha

Shaligram Katha

Shaligram Katha : एक बार की बात है । एक वृद्धा शालिग्राम की बहुत भक्त थी । वह उनकी प्रतिदिन सेवा करती, पूजा अर्चना करती, उनका ध्यान करती ।

जब कार्तिक मास आया तब तो उसने सोचा कि इस बार तीर्थराज पुष्कर में स्नान करना चाहिए । अतः उसने सोचा मेरे बाद शालिग्राम का क्या होगा ? वह क्या करेंगे ? उनकी देखभाल कौन करेगा ? फिर उसे अपनी पड़ोसन का ध्यान आया । अतः उसने पड़ोसन को शालिग्राम देते हुए कहा – इनका पूरा ध्यान रखना । प्रातः इनको गंगास्नान करवाना । दूध से भी अभिषेक करना । तुलसी पत्र चढ़ाना, चन्दन का टीका करना व भोग लगाना ।

पड़ोसन ने कहा – मुझे पूजा-अर्चना तो आती नहीं लेकिन कर दूंगी । यह सब बताकर चली गई, पडोसन ने शालिग्राम की उसी प्रकार से सेवा की जिस प्रकार बताया था । लेकिन शलिग्राम भोजन नहीं करते ।

यह देख कर पड़ोसन परेशान थी कि इस प्रकार तो शालिग्राम दुबले हो जाएंगे । बीमार हो जाएगे, उसने शालिग्राम से कहा मेरी लाज रखो वह आएगी तो कहेगी कि मैंने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई । यह सुन शालिग्राम ने सोचा क्या किया जाए ? तब उन्होंने बालक रूप रखा, पड़ोसन का दिया भोग खाया और दूध पिया । इस तरह वह प्रतिदिन भोग खाने लगे ।

वह वहाँ पर बैठे-बैठे सोचते क्या करूँ ? उन्होंने कहा – आज से मैं तुम्हारे जानवरों को चराने ले जाऊंगा । तुम्हारी गायों की जिम्मेदारी आज से मेरी है | पड़ोसन बोली – मेरी पड़ोसन ने मना किया लेकिन वह नहीं माने और प्रतिदिन नियमानुसार गौओं को लेकर जाने लगे ।

कुछ दिनों पश्चात् वृद्धा वापिस आई और तुरंत पड़ोसन के यहाँ पहुँचकर बोली – तुमने मेरे शालिग्राम की बहुत देखभाल की है । अब मैं आ गई हूँ । लाओ मुझे शालिग्राम दे दो । यह सुन पड़ोसन ने कहा – बूढ़ी माँजी ! अभी शालिग्राम गाय चराने गए हैं । संध्या समय आएँगे तब उन्हें ले जाना । लेकिन वृद्धा अड़ गई कि नहीं मुझे तो अभी चाहिए । वह लड़ने लगी । आस-पास के लोग इकट्ठा होने लगे लेकिन वह नहीं मानी ।

जैसे-तैसे संध्या हुई । शालिग्राम गौओं को लेकर वापिस आए और गौओं को गौशाला में बाँधकर अपने स्थान पर बैठ गए । पड़ोसन ने वृद्धा को शालिग्राम देते हुए कहा – लो यह है तुम्हारे शालिग्राम । वृद्धा ने कहा – घर में छिपाकर रख रखे थे । देने का मन नहीं था । इसलिए इतना झगड़ा किया । तब पड़ोसन ने शालिग्राम से प्रार्थना की – हे प्रभु ! इसे भी अपने असली रूप में दर्शन देकर बता दो कि मैं सही कह रही थी ।

तब शालिग्राम ने वृद्धा को दर्शन दिए और सत्यता बताई । यह सुन वृद्धा पड़ोसन के पैरों में गिर गई और कहने लगी कि तुम्हारे कारण और कार्तिक स्नान के कारण मुझे आज शालिग्राम के साक्षात् दर्शन हो गए । कार्तिक मास की ऐसी ही महिमा है ।

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