विनायक जी की कहानियाँ – ३ (मारवाड़ी मे) | Vinayakjee kee kahaniya – 3 (In Marwari)

विनायक जी की कथा (मारवाड़ी मे)

Vinayak Ji Ki Katha (In Marwari)

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एक धनी लुगाई हा धनी क नेम हो बो रोज ४ बजा तडक ऊठतो गणेशजी की पूजा करर बार पाठ पूजा न जावंतो । लुगाई रोज ८ बजा ऊठती । बा बोलती म्हारो धणीरोज ४ बजां ऊठर म्हारी नींद खराब कर । जिको बा गणेश जो न ले जार ओरा म छिपा दिया। दूजा दिन दिनुगे धणी ऊठयो न्हायो धोयो गणेशजी की पूजा करण गयो तो गणेशजी मिल्या कोनी । बो लुगाई न पूछयो म्हारा गणेशजी कठ म्हन पूजा पाठ न जाणू ह म्हण देर हुवे। लुगाई उठो कोनो । धनी नातणो पेरकर धीर-धीर मारर लगाई न उठायो ओर पूछयो कि म्हारा गणेशजी न बता। गणेशजी बेठा हंस्या । देखो म्हारा वास्त ए धणी लुगाई लड ह। गणेशजी हंसता ही सोना चांदी का फूल खिरया। लुगाई न उठाया और बोल्यो कि देख म्हारा गणेशजी तुप्ट मान हुया है । लुगाई झटपट ওठी सगला भेल कर लिया ओर बी दिनसं वा भौ गणेशरजी को पूजा को नेम लियो ।

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