विनायक जी की कथा (मारवाड़ी मे)
Vinayak Ji Ki Katha (In Marwari)
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एक बार विनायकजी टावर बन्योडा चिमटी म चांवल चिमचा म दूध लेर गांव म फिरया कोई खीर रांध दयो । लुगायां कहयो महाराज म्हान फुरसत कोनी ।
गांव के बार एक साची बाई रेवती, बींक घर विनायकजी जार बोल्या साची बाई खीर बणादयो । साचो बाई मोटी सारी परात पाडोस्यां क ऊँ लाई चिमटी भर चांवल घालता हो परात भरीजगी | मोटी सारी कढाई भी मांगर लाई चमचोभर दूध घालता ही कढ़ाई भरीजगी। खीर खदबद खदबद सीजबा लागी खीर की सुगंध आबा लागी। साची बाई को मन चाल्यो। साची बाई डावडा की याद करी | टाबर खीर रंधार पाछो आयो ही कोनी मन तो भूख लागी ह।
बिनायकजी को नाम लेकर धूप देकर तुलसी छोड दी । फेर कटोरा भर खीर सबडका लेर पीली। कीडीनगरो सींचण न गई आगे विनायकजी बालक घन्योडा खेल हा । साची बाई पिछाण कर बोली डावडा खीर रंधा कर पाछो आयो ही कोनी। विनायक जी बोल्या माता म्हार तो कणां ही भोग लाग ग्यो। तू धूप देकर तुलसी छोडकर म्हारो नाव लियो जद ही म्ह तो जीम लियो ।
डोकरी कहयो अव म्ह इत्ती खीर को काई कुरु । विनायकजी बोल्या कंवर का व्याह कर, परणोजोडयां का मुकलावा कर, होम कर, यज्ञ कर, धरम कर, पुण्य कर, तीरथ जा बरत कर। तोही कढाव को छेडो आवेलो।
हाथ जोड कर विनायकजी सु अरज करी हे भगवान कढ़ाव को छोडो आवे पण म्हारा घर को छेडो मती आवे आप भंडार भरपूर राखीजो ।