होई का व्रत | होई व्रत की कथा । होई व्रत की कहानी | Hoi Ka Vrat
होई का व्रत कब है
कातिक बदी म होई को व्रत कर । कोई दीवाली क वार को और कोई आठ या सात न कर । यो व्रत लड़को होने क बाद शुरु कर ।
होई का व्रत कैसे रखते हैं
कोई क होई मांडता होव तो दीवाल पर चुना से पोतकर गेरु से या रंग से मांड लेवे । शाम का कहानी सून, जद एक पाटा पर जल को लोटो, सीरो, एक गिलास म गेहूं, रोली और चांवल रक्ख । एक चांदी की होई और दो मणियां नाल म पोकर रक्ख । पिछ लोटा पर स्वास्तिक कर और सात टिक्की देव । होई न चिरच कर सीरा सूं जीमाव । सात दाना गेहूं का हाथ म लेकर कहानी सुन । पिछ टीका निकालकर सीरा और रुपिया पर बानो निकालकर सासुजी न पगां लागकर दे देव । होई गला म पहन लेव | गिलास का गेहूं थोड़ो सीरा और रुपिया मिसरानी न दे देव । तारा उगण से, बीं जल का लोटा से और गेहूं क दाना से अरग देव, रोली, चांवल और सीरो चढाव । पिछ जीम लेव । दीवाली क बाद अच्छो बार देखकर होई निकाल देव । आपकी बहन बेटियां क भी सीरो और रुपिया बानो निकालकर भेज ।
होई का उद्यापन
अगर कोई क लड़की होव या लडकी को विवाह होव, जद हर बार होई को उद्यापन कर । कहानी सुन, जद होई की कंठी म दो मणिया और घाल । एक थाली मे सात जगां चार चार पूडी, थोड़ो थोड़ो सीरो, तिल और रुपिया रक्ख कर, हाथ फेर क सासुजी न पगा लाग कर देव । सासुजी तिल रुपिया तो आप रख लेव और सीरा पूडी का बाना बांट देव ।
होई व्रत की कथा
एक साहूकार के सात बेटा, सात बहुवां और एक बेटी थी । एक दिन सातु बहुवां और बेटी खन्द माटो ल्याव न गई । माटी खोदन क समय नणद के हाथ सुं स्याऊ का बच्चा मरगा। स्थाऊ माता बोली कि अब मं तेरी कूख बांधुगी। नणद आपकी सारी भाभियां न कयो कि म्हारे बदली कूख बंधवाल्यो । छः भामियां तो नटगी, पर छोटो भाभी थी, जिकी सोची कि नहीं बंधवावागां तो सासुजी नाराज हो जासी, सो बा आपकी कूख बंधवाली। बींक टाबर होता और होई सात के दिन मर जाता । एक दिन बा पण्डितां न बुलाकर पूछयो कि यो काई दोष, मेंर टाबर होतां ही मर जाव। पण्डित बोल्या कि तू सुरही गाय की सेवा किया कर, बा स्याऊ माता की भायली ह, जिको तेरी कुख छड़वा देसी, जद ही तेरा टाबर जीसी । बा खूब सुबह उठकर सूरही गाय को सारो काम कर क आ जाती। एक दिन गऊ माता सोची कि आजकल कुण मेंरो इतनो काम कर ह, बहुवां तो लडाई करती रहती थी । आज देखनो चाहिए कि कुनसी काम कर हैं।
गऊ माता खूब सुबह उठकर बैठगी, देख तो साहूकार क बेटा की बहू सारो काम कर है । गऊ माता पूछी कि तन के चाहिए है सो मेंरो इतनो काम कर हैं । बा बोली कि मन वचन दे, गऊ माता ऊं न वचन दे दिया। वह बोली कि स्थाऊ माता कन मेरी कूख बंधयोडी हैं, बा थारी भायली हैं, सो मेरी कुख छुड़वा कर देवो। जना गऊ माता बिन सात समुन्दर पार आपकी भायली क पास लेजावन लागी, रास्ता म धुप थी, सो बे लोग एक पेड़ क नीच बैठगा । थोड़ी देर म एक सांप आयो, बे पेड.पर गरुड़ पक्षी का बच्चा था, जिका न डसन लाग्यो । साहूकार की बहू देख ली और सांप न मारकर टोकरा क नीच रख दियो गरुड़ पक्षी आई, आकर साहूकार की बहू क चोंच मारन लागी। बा बोली कि म तेरा बच्चा न कोनी मारया, यो सांप मार थो, म तो जिवायां हूं। गरुड़ पक्षी बोली कि तू मेरा बच्चा न बचाया है, सो कुछ मांग । बा बोली कि सात समुन्दर पार स्याऊ माता रेव है. म्हा न ऊंक पास पहुंचा दे।
गरुड़ पक्षी आपकी पीठ पर बैठाकर दोनु न स्याऊ माता क पास पहुँवा दी। स्याऊ माता गऊ मा न बोली कि आव भैण भोत दिन स आई, मेरा सिर म जूं पड़गी, सो काढ दे। गऊ माता बोली कि मेरे साग आइ हैं, जिकी स कढा ले| साहू कार की बहू बिकी जूं काढ दी। स्याऊ माता बोली कि तू महारे भौत सलाई गेरी सो तेर सत बेटा सात बहुवां होव। जना बा बोली कि महारे तो एक भो कोनी, सात कठ स होसी । स्याऊ माता पूछी कि क्यूं कोनी होया बा बोली वचन दे जद बताऊंगी। स्याऊ माता बोली कि “वचन दिये नहीं पालूं तो धोबी कुन्ड पर कांकरी होऊ।’ साहू कार की बहू बोली कि मेंरी कुख तो थार पास ही बंधी पड़ी हैं । स्याऊ माता बोली कि तू तो मन भोत ठगी तू थारे घरां जा, तन सात बेटा, सात बहुवां मिलसी । तू सात उजमन करिजे, सात होई मांडिजे. सात कढाई करिजे ।
बा घरां गई जाकर देख तो सात बेटा, सात बहुवां बैठी है । जना बा सात होई मंडाई, कोई दोवाल क, कोई मटका क, कोई कठ, सात उजमन कर्या, कढ़ाई करी । ऊं की सब दिवर जीठानियां बोली कि जल्दी जल्दी धोका पूजा कर लो, नहीं तो सदरोई रोवण लाग जासी थोड़ी देर म ब आपका टाबरां न देखन भेजी कि आज सदरोई, रोई क्यूं कोनी । टाबर आकर बोल्या कि मां आज तो काकी क होई मंडेरी हैं, खूब उजमन होर्या हैं जद दिवर जिठानियां दौड़ी दौडी गई, देख तो बा आपकी कुख छुड़ा ल्याई और ऊं न पूछन लागी कि क्यान छुड़ाई।
जद बा बोली कि थे तो कुख बंधाई कोनी थी, म टाबर थी सो बंधवाली, पर स्याऊ माता दयाकर के मेंरी कुख खोल दी। हे स्याऊ माता ज्यान बी साहूकार की बहू की कुख खोलो, ब्यान म्हारो भी खोलिजे, कहतां की, सुणतां की सबकी खोलिजे । इ क. वाद विनायकजी की कहानी केव ।
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