चौथ का व्रत २०२१ (मारवाड़ी मे) | Chouth Ka Vrat

चौथ का व्रत २०२१ (मारवाड़ी मे)

माँ की चौथ का व्रत

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चौथ का व्रत कब है

साल का बारा महिना हुवे । हर महिना में एक चौथ लागत पख-वाड़ा (बदी) म आब झिकी कोई तो हर महिना कर । ईम गणेश जी की पूजा हुव । चार मुख्यबड़ी चौथ हुव । एक भादवा की बड़ी तीज क दुज दिन और कणाई कणाई तिथी भेली आ जाव तो तीज के ही । दुजी करवा चौथ कार्तिक बदी म और तीसरी माही चौथ । चौथी बेसाख बदी म आव।

चौथ का व्रत क्यो किया जाता है ?


चौथ के व्रत सु अन्न हुव, धन हुव, बिछुडया के मेलो हुव, पुत्र हुव

चौथ माता का व्रत कैसे किया जाता है ?


चौथ की पूजा की सामाग्री

कूंकू, चांवल, हल्दी, मोली, मेंधी, पान, सुपारी, पैसा, पानी को कलश, चिराग, बत्ती, पुष्प, अगरबत्ती, आरती कपूर, पाटो, गुड़ की डलियाँ, गेहूँ का आखा ।

चौथ का व्रत की विधि

पेली पाटो मांडनो । बींपर एक कानी गेहूँ का आखा मांडर कलश रखनूं । भीत (दिवार) पर एक कानी चंद्रमा जी माडण दूजी कानी सूरज जी । बीच में त्रिशुल मांडणू । पान पर सुपारी का गणेशजी बना कर रखणू समस्त सामाग्री सुं पुजा करणू आरती करणू ओर चंद्रमा जी उग्या पछ चंद्रमाजी न अरग देर भोजन करणू ।

चौथ का व्रत कथा | चौथ का व्रत की कहानी


एक साहुकार हो बीक एक बेटों बहु हा । सासू बहु न नित्य नवा पकवान बनार जिमाती। बा जीम कर जाती । पाडोसन पूछती बींदणी कांई जीम्या । बा केती बासी कुसी जीम्या बीको धणी रोज सुणतो । एक दिन बेटो मां न बोल्यो माँ आज आपांक पावणा आणे वाला है खूब अच्छी अच्छी रसोयां बणाओ मां खूब अच्छी रसोई बनाई । ओर बेटा न बोली कि कोई जीमन आयो कोनी बेटो बोल्यो माँ आपां ही पावणा हां। मां आपका बेटा बहु न साथ जिमाई बा जीमर गई पाडोसण पूछ्यो बींदणी कांई जीम्या ? बा बोली बासी- कुसी। धणी ध्यान लगार सुण्यो और आपकी लुगाई न बोल्यो कि म्हारी मां धन अब्बार अच्छा अच्छा तीपण जिमाया तू बीन बासी कुसी क्यान बोली ?

बा जवाब दियो कि देखो आ थांकी कमाई नहीं थांका बाप की कमाई नहीं आ तो बाबा दादा परदादा की कमाई है। इन बासी कुसी नहीं तो कांई ताजी थोडे ही केवे । धगी न रीस आयगी दिनुगा उठताई मां न बोल्यो मां म्हे परगांव कमावण जाऊं – मां बोली – बेटा आपांक घर म काई कमी ह ? तू क्यूं जाव ? बाप न बोल्यो पिताजी म्हे परगांव कमावण जावू । पिताजी जवाब दिया अगर बेटा तू यान बैठो खाई तो भी थार घणो तू परगांव क्यूं जाव ? बिन तो रीस आई वो घर क बार निकलग्यो । लुगाई न बोल्यो थारा म्हारा जोग होई जण मिलां ।

खूब दूर एक गांव म जार काम धंदो करण लाग्यो । खब बेपार धंदो चालण लाग्यो । खूब पैसा कमावण लाग्यो । भोत दिन होयग्या एक दिन लुगाई बैठी बैठी पाडोसण क गई । पाडोसण चौथ माता की पूजा कर ही । बा पाडोसण न पूच्यो कांई करो पाडोसण बोली आज चौथ म्हे चौथ माता की पूजा करूं हूं । और काणी कथा केंवा । बऊ पूछो इबू कांई होव पाडोसण बोली अन्न हुव धन हुव, बिछुडया के मेलो हुव, पुत्र हुव पण बा बोली म्हारा धणी न १२ बरस होयग्या दिसावर गया न की भी समाचार कोनी मे भी चौथ माता की पूजा करु म्हार भी बिछूडयो मिलणू बा कयो तू भी चौथ को बरत कर बऊ पूछी ओ बरत क्यान करणू मन मालुम कोनी म्हारी सासू कठई जाबा देव कोनी मन क्यान मालूम पडो कि चौथ कण आव ? पाडोसण बोली तीस गेवू का आखा लेजा रोज एक एक गिण कर रख देणू जिक दिन खतम हुव बी दिन बरत कर लेणू ।

कूंक चावल गुड़ हल्दी पान-सुपारी मोली मंगाकर पूजा कर लेणू । बा बठासू महिना की महिना पूजा करण लागगी । चौथ माता बोली साउकार का बेटा की बु न १२ बरस होयग्या चौथ को बरत करतां बीको बिछडयो धणी मिलाणू । चौथ माता साउकार का सपनो म गई तू घर जा थारी लुगाई धन उडीक । साउकार बील्यों म्ह क्यान जावूं म्हार बेपार खूब फैलोडयो पडयो ह आर खूब उलझ्योडो हूं चौथ बिना बोल्या तू नहा धोकर दिनुका चौथ विनायक को नांव लेकर बैठ जाइल ले वाला ले जाई दे वाला दे जाई बो बोल्यो म्हे क्यान समझू तो चौथ विनायक बोल्या थारा घर के सामन कूंकू का टीका मंडजाई तो तू समझ जाइजे दिनुका उठर देख तो सच्ची ही कूंक का टीका मडयोदा ह। न्हा धोर दुकान में बेठ ग्यो लेवण वाला लेग्या देवण वाला देग्या । सगलाणें बेपार धंदो समेट दियो । ओर जावण तैय्यार हुयो हाथी घोडा रथ पालकी सोने-चांदी धन लेर रवाना हुयो ।

रास्ता के मायन एक सांप आपकी जूण पूरी करण जा रयो हो । बो जाण्यो अबार लाय म जय जाई सावुकार बीन सिसकार दियो । बो बोल्यों म्ह तो म्हारी पूण पूरी करण जाव हो अब म्हन ओर बारहा बरस भोगणा लागी म्हे तो थन खावूं । साउकार बोल्यो म्हे तो थारी भलाई करण गयो बो बोल्यो भलाई करता बुराई आव कांई म्हन मालुम कोनी ही चालो आंपां तलाब न पुछा ? तलाब कन गया हां रे भाई भलाई करता बुराई आव कांई ? तलाब बोल्यो म्हारा म हाथ धोव मूंडा धोव दो घुट पाणी पीव जावतां कुल्ला थूकर जाव भलाई करता बुराई आग-आग आवा ।

झाड़ कन गया झाड़ न पूछयो हां रे भाई भलाई करता बुराई आव कांई झाड बोल्यो म्हारी ठंडी छाया टेर विश्राम कर ठंडी ठंडी हवा खाव जावतो केव ई झाड़ न काट तो दो बंडी लकडो हु भलाई करता बुराई आग-आग आव यान झाड बोल्यो । सावुकार बोल्यो १२ बरस होयग्या म्हारा घरकांन छोडया न मन म्हारा घरकां न मिलबा दे पछ तू आर मन खा जाइजे । सर्प बोल्यो तु तो जार पलग पर सो जाई म्हे पलंग पर क्यान चढूं थन क्यान खावूं साउकार बोल्यों म्हे म्हारी लुगाई की आंठी (चोटी) लटका देवूं तू बीक सार सूं चढर खा जाइये ।

साउकार घर गयो १२ बरसा सूं आयो जाणर मां बाप खूब राजी हुआ लुगाई भी कुश हुयी लापसी चांवल की रसोई बनाई सावुकार कोई सूं भी ज्यादा बात कोनी करयो भायो जीमर जितो आपका कमरा म जार आपकी लुगाई न बोल्यो सात सीढ़ियां ह वी पर तू सात चीजा रख दे। एक पर बालू रेत विछा दी एक पर कच्चो दूध रख दियो एक पर दही रख दियो एक पर फुला बिछा दिया एक पर अत्तर रख दियो बो सावुकार तो जार सोयग्यो लुगाई सूं ज्यादा बोल्यो कोनी । लगाई भी थाक्योडी ही जिको सोयगी । रात की १२ बजी बो सरप आयो खूब रेती म लुटयो है रेती रखणवाली थारो सवाग अमर रहियो । खांवतो तो कोनी पर बचना को बांध्यो आयो हु खूब पुष्पां म लुटयो हे रखण वाली खांवतो तो को नी पर बचनां को बांध्यो आयो हूं खुब दूध दही पियो रखण वाली को सवाग अमर रेवी खांवतो तो कोनी बचना को बांध्यो आयो हूं साबकार की बहू न बीदिन चोथ को बरत हो जिको चौथ को बरत करी ही ओर पूजा करी ।

चौथ विनायक बोल्या अबार अगर ई सावूकार न खा पाई तो इन रंडापी आ जाई तो आपान कून पूजी ? कूण ध्यायी ? तो चौथ माता बनी ढाल और विनायकरजी बन्या तलवार चंद्रमा न बोल्या उपायो कर थाको तो बरत करयो म्हारो कांई बरत करयो ? म्हे उजालो कोनी करू विनायकजी बोल्या आजू ज्ञाम पडया पछ पाणी कोनी पीव । म्हाका बरत म तो पाणी पी लेई तो की नही शाम पडया पछ तू उग जित्तर पाणी कोनी पीव । चन्द्रमाजी उजालो कर दियो । सांप का टुकडा टुकडी कर दिया । खून की नदियां बेयगी ।

धरणी उठयो लुगाई न बोल्यो म्हारो बेरी मरग्यो दोनूं जणा खुब चोपड पासा खेल्या और सोतां ई नीद आयगी । दिन उग्गयो देर तांई उठया कोनी । गांव म एक बेन रेती ही बा सुणी भाई आयो हैं मिलण भागती भागती आयी । बेन आर मां न बोली मां भाई आयो जण मां बोली हाल उठ यो कोनी जा जार उठा । आग जार बेन देखी तो खून सूं सगठी सीढयां भरयोडी। बा रोबण लागगी ओर मां न बोली मां माँ भाई न बेरी मारर चलेग्या । आग खुब रोणू पीटणू मचग्यो । आवाज सूणर भाई भोजाई उठया । ओर बोल्या अरे थे रोवो मती म्हारो बेरी मरग्यो । दूध पाणी सूं सीढया धुवावो । नाच उतरायो मां बापा का पगा पडयो बाप न बोल्यो पिताजी मं गया पछ थ की धरम पुण करता कांई बाप बोल्यो बेटा तू – हो जण म्हे थोडी ज्यादा तोलतो तु गया पछ म कम तोलण लाग्यो म्हे की धरम पुन्न कोनी करयो । मां न पूछयो मां तू की धरम पुन्न करी काई ? मां बोली बेटा तू हो जणा म्हे गाय कुत्ता न रोटी देती ही बा भी बंद कर दी । बेन न पूछयो तु भी धरम पुन्न करयो काई बेन बोली भाई तू हो जणा तो म्हे कोई कोई सूत यान ही कात देती पण तू गया पछ मोल कातन लागगी । जित्ता म लुगाई बोली कि म्हे महिना की महिना चौथ को बरत करी ही सासू बोली चार टेम रोटयां देती तु चौथ को बरत क्यान करो । बा बोली एक टेम की म्हे पाडा न दे दी देते थे पाडा न पुछो – पाडो हस्यो पेट का फूल खिस्या । दूजा टेम की म्हे पणियारी न दे देती पणियारी आयी बिन पूछ्यां बा हां देवती बोली तीजी टेम खोडो खोदर गाड देती आग खाडो खोपर देख्या तो सोना का चक्कर मिलयों चौथी टेम की म्हे चन्द्रमा न अरग देर खा लेती । बारा बरस सू सावुकार की दुकान सू पूजावो लाती जिको थे कर्जी चुकावो ।

हे चौथ माता बीन सवाग दियो जिशो सगलां दीजो काणी केन वाला पुकारो देवग वाला सुनब वाला सबन दीजो ।

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