फूल बीज की कहानी (मारवाड़ी मे)
Phool Beej Ki Kahani (In Marwari)
भादवा (भाद्रपद) कथा
एक राजो हो, एक रानी हो, एक बेटो हो, एक बहु हो । घर में खुब गरीबी के कारण बेटो कमावणे गयो । बहु फूल बीज करती और सासु खावण ने देती । एक टेम रो खानो गडढ़ो में बुडती । बारह बजे देवती ओ कूत्तों ने देती । दोपारा रो जीमण गाय ने देवती । चौथी बार रो जीमण बहु पूजा पाठ करके शाम रा जीमती । याण करता-करता बारा बरस होग्या । बारा बरस पछे बेटो वापस आपरे घर आवन लाग्यो । जणो शाम रो पूजा करके बहु बाटी तो आकडे रे माथे भुल गी । बेटो आयो तो खुब पानी बरसे, बिजली चमके । अंधेरी रात बिजली रे उजाला सुं आंकड़े रे झाड़ माथे छल्लो दिख्यो उने प्यास लागी तो नाड़े रो पानी आप भी पीयो और घोडो ने भी पायो । पन पानी तो उतो को उतो थो । आकड़ो रो झाड़ माथे बीटी देखी तो बोल्या आ बीटी तो म्हारी है । ओ तो म्हारे नाव री बीटी है । अठे कुण पूजा करन ने आवे । आगे चाल्या तो सांप जलते दिख्यो सोच्या कि ये ने बजावु बचावन लाग्या । तो सांप बोल्या कि मैं थने खावुला ।
अभी तो म्हाने मत खा । बारा बरस हो गया । मां सु, लुगांई सु, टाबर सु, मिलन दे । आज से तीसरे दिन तू म्हाने डस लियो । यू बोलकर घरे गय़ो घर जाकर चुपचाप सो गयो तो घर वाला पूछया कि क्यों सोयो हैं। बारा बरस से आयो हैं । मां पूछे लुगांई पूछे किसु से कोनी बात करे। पछ थोडी देर में लुगाई ने कयो कि आज से तीसरो दिन म्हारो काल हैं । मैं जलता हुवा सांप ने निकाल्यो तो सांप म्हने बोल्यो में थनै डसुला सुनके पूरा फूलो रा सेज बिछाय के धनी ने सुवान दी । इत्तर छिडक दिया । चारो तरफ दूध रो कटोरो और मिश्री डालकर चारों पगा में रख दी। पायस्यारे रे माथे दूध रो कटोरो रखियो । फूल रख दी और धनी न सुवान दी । बाजु में सिराने में कटारी रख कर लुगाई भी सो गई । तीसरे दिन सांप फन फन करतो आयो और पायन्या चढ़न लाग्यो । दूध रो कटोरो पीतो गयो और ऊपर चढता गयो और बोलतो गयो कि रखन वालो रो सुवाग अमर हो । रखन वालो रो सुवाग अमर हो । धनी रे नजीक पुगते ही सांप ने लुगाई मार दी । सांप रा तीन टुकड़ा कर दी और सांप का टुकड़ा करके सिराने रख के लुगाई सो गई |
सबेरे धनी उठयो । अरे म्हारो तो काल आयो ही नहीं तीन दिन पुरा हो गया । जद लुगाई बोली में फूल बीज रो वास करती तो फूल बीज माता म्हाने टूटी हैं । थारा काल ने तो में मार कर सिराने नीचे रखी हूं । तकिया उठा के देखे तो नौसर हार बन गयो। नौसर हार पेर के सासु ने पगे लागन लागी। सासुजी आज तो थारे बेटा रो काल हुतो पर आज में फुल बीज रो वास करती थी जिको सु थारा बेटा रो काल बच गयो । सासु बोली मै तो थाने चार दफे जीमण देती ।तु वास क्यान करती । जनो बेटो बोल्यो बीटी तो म्हाने आकड़े रा झाड़ माथे मिली । बिजली री चमक सु म्हाने बीटी दिख्यी जद सासु नहीं बेटा मैं तो ये ने चार दफे जीमणने देती थी । बहु ने बुलाकर सासु पूछी । जद बहु बोली म्हाने चार दफे जीमण नें देती । दिन उग्यो रो थाली गडढे में बुडती बारह बजे री थाली कुत्ता ने देती । दोपारा देती तो गाय नें देवती । शाम रा पूजा पाठ करके खाती थी । सासु ने विश्वास नहीं होयो । जना गडढ़ा में देखी तो हीरा पन्ना जगमगावे ।पछे कुत्ता ने पूछी तो कुत्ता हस्यों तो मुण्डा से हीरा मोती पड़या। गाय ने जाके पूछया तो गाय बड़बड़ाने हस्यि तो हीरा मोती पड़या। शाम रा देवती तो पूजा पाठ करके जिम लेती ।
हे फुल बीज माता बहु ने टुटयो जैसी सब ने टूटजो । कहता सुनता हुकारा भरता ने।