आंवला नवमी की कथा | आंवला नवमी पूजा विधि | amla navami vrat katha | amla navami puja vidhi

amla navami puja vidhi

कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की नवमी को आँवला नवमी कहते हैं । जैसे नाम से पता चलता है कि इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है ।

आंवला नवमी पूजा विधि | amla navami puja vidhi


प्रातः स्नान करके शुद्ध आत्मा से आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन करना चाहिए । पूजन के बाद उसकी जड़ में दूध देना चाहिए । इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बाँधना चाहिए । कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए । इसके बाद पेड़ के नीचे को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देना चाहिए ।

आंवला नवमी की कथा | amla navami vrat katha


काशी नगरी में एक निःसंतान धर्मात्मा तथा दानी वैश्य रहता था । एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली – यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो उन्हें पुत्र प्राप्त हो सकता है । यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया । परन्तु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही ।

एक दिन एक कन्या को उसने कुएँ में गिराकर भैंरो देवता के नाम पर बलि दे दी । इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ । लाभ की जगह उसके बदन में कोढ़ हो गया । लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी । वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी ।

वैश्य कहने लगा – गौवध, ब्राह्मणवध तथा बालवध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है । इसलिए तू गंगातट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है । वैश्य पत्नी गंगा के किनारे रहने लगी ।

कुछ दिन बाद गंगा माता वृद्धा का वेष धारण कर उसके पास आई और बोली – तू मथुरा जाकर कार्तिक नवमी का व्रत तथा आँवले के वृक्ष की परिक्रमा कर तथा उसका पूजन कर । यह व्रत करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जाएगा । वृद्धा की बात मानकर वैश्य पत्नी पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आँवला नवमी का व्रत करने लगी । ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र प्राप्ति भी हुई ।

आंवला नवमी की कहानी | amla navami ki kahani


एक सेठ आवला नवमी के दिन आँवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता था । सोने का दान किया करता था । उसके बेटों को यह सब अच्छा नहीं लगता था । घर की कलह से तंग आकर वह घर छोड़कर दूसरे गाँव में चला गया । उसने वहाँ जीवनयापन के लिए एक दुकान कर ली । उसने दुकान के आगे एक आँवले का पेड़ लगाया । उसकी दुकान खूब चलने लगी । वह यहाँ भी आँवला नवमी का व्रत करने लगा तथा उसने ब्राह्मणों को भोजन तथादान का कार्यक्रम भी चालू रखा ।

बेटों का कार्य ठप्प हो गया । उनकी समझ में यह बात आ गई कि हम तो पिताश्री के भाग्य से रोटी खाते थे और अपनी गलती स्वीकार कर ली । बेटे अपने पिता के पास गए और आज्ञानुसार आँवला पेड़ की पूजा करने लगे । उनके यहाँ पहले जैसे खुशहाली हो गई ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *