कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी को सूर्यषष्ठी का व्रत करने का विधान है । इसे करने वाली स्त्रियाँ धन-धान्य, पति-पुत्र तथा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहती हैं ।
सूर्य षष्ठी व्रत विधि | surya shashti vrat vidhi
यह व्रत बड़े नियम तथा निष्ठा से किया जाता है । इसमें तीन दिन के कठोर उपवास का विधान है । इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को पंचमी को एक बार नमक रहित भोजन करना पड़ता है । षष्ठी को निर्जल रहकर व्रत करना पड़ता है । षष्ठी को अस्त होते हुए सूर्य की विधिपूर्वक पूजा करके अर्घ्य देती हैं । सप्तमी के दिन प्रातःकाल नदी या तालाब पर जाकर स्नान करती हैं । सूर्योदय होते ही अर्घ्य देकर जल ग्रहण करके व्रत को खोलती हैं ।
सूर्य षष्ठी व्रत कथा | surya shashti vrat katha
प्राचीन काल मे बिदुसार तीर्थ मे एक महिपाल नामक वणिक रहता था । वह धर्म-कर्म तथा देवता विरोधी था । एक बार उसने सूर्य भगवान की प्रतिमा के सामने मल-मूत्र का त्याग किया । परिणामस्वरूप उसकी आँखों की ज्योति जाती रही ।
इसके बाद वह अपने जीवन से ऊबकर गंगाजी में डूब कर मर जाने को चल दिया । रास्तें में उसकी भेंट महर्षि नारदजी से हो गई । नारदजी उससे पूछने लगे – महाशय ! जल्दी-जल्दी किधर जा रहे हो ?
महीपाल रोते-रोते बोला – मेरा जीवन दूभर हो गया है । मैं अपनी जान देने हेतु गंगा में कूदने जा रहा हूँ । मुनि बोले – मूर्ख प्राणी ! तेरी यह दशा भगवान सूर्य देव के कारण हुई है । इसलिए कार्तिक मास की सूर्यषष्ठी का व्रत रख । तेरे सब कष्ट दूर हो जायेंगे । वणिक ने ऐसा ही किया तथा सुख-समृद्धि दिव्य ज्योति प्राप्त कर स्वर्ग का अधिकारी बन गया ।