विनायक जी की व्रत कथा – ११ (मारवाड़ी मे) | Vinayakjee kee kahani – 11 (In Marwari)

विनायक जी की व्रत कथा (मारवाड़ी मे)

Vinayak Ji maharaj Ki Kahani (In Marwari)

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एक दिवर जिठाण्या हो। जिठाणी पैसा वाली हो । दिवराणी गरीब हो। दिवराणी जिठाणी क रोज काम करण जाती। जिठाणी का घर मे जों कुछ बचतो वा बीन देवती। कणाई धणी खा लेतो तो टावर भूखा कणाई टाबर खा लेता तो घणी लुगाई भूखा मरता । एक दिन जिठाणी के की बच्चो कोनी तो बा की भी दियो कोनी । धणी बोल्यो मन पुरस बा बोली आज म्हन भाभीजी की दियो कोनी । भूका मरतो धणी गुस्सा मं आकर पाटासु मारयो बींन दुख आायो बा बोली एक तो गरीबी उपर सु धणी मारे बा रिसार ओठयाणा म जार रोती-रोती सोयगौ गणेशजी को मंदिर बीके घर क बाजू म हो । बा रोज आती जाती हाथ जोडती गणेशजी न दया आयी । गणेशजी रुप बदलकर आया और कहथो धणी मारेडी, ओठयाणा सूती हंगू कठ ? बा गुस्सा में आर कहयो हंग राकडया म्हार घर मं उण खूण । गणेशजी फेर बोल्या पूछू केसु । जणा बा बोली पोछ म्हारा माथा सु । गणेशजी डांगडी फेरर चलेग्या उठ कर बा देखी तो घर सगलो जगमग जगमग करवा लाग्यो घी का डब्बा, गेहूं का थैला, शकर का थैला, धन को भंडार होयग्यों ।

मुंडो देखी कांच मं तो माथा मं बोर पात टीको, सब होयग्या सोना की टिकी भी ही । बा जिठाणी के काम न गई कोनी । टाबर दूजे दिन बिने बुलावण आया काफी जिल्दी चालो म्हाक काम न देर हो रही है । बा बोली म्हन तो पोल का गणेशजी टूटग्या । थाको काम थे ही करो। टाबर जार मा न बोल्या । काकी तो बोली है कि बा काम न कोनी आव | जिठाणी आयो बा घर में जगमग देखी, दिबराणी को रुप देखी और बिन पूछग लागी कि यो सब कठ सु होयगो | दिबराणी बीती ज्यान बता दी। जिठाणी घर गई और आपका धणी न बोली महान मारो घणी बोल्यो क्यूं झूठयायी मार खाव ? बा बोली नई थे म्हन मारों धणी लाई धीर धीर २-३ थपडां मारयो । बा ओठयाण्या म जार सोयगी । बिंक भी गणेशजी आया । ओर जिठाणी न पूच्छया धणी मारयोडी, ओठयाण सूती हंगू कठ ? बा बोली महाराज म्हारो घणोई साफ सुथरो आंगणो है । कोरा काडेडी, मांडणा मांडेडया, साफ घर है। गणेशजी थांको मन चाव जठई हंगो । घसी कठ करु गणेशजी पुछया | महराज गई काल ही माथो न्हार गुथायो है म्हारा माथा क करी। दिनुगा उठर देखतो घर सगलो बासन लागयो । मुंडो बासन लाग्यो । हाथ जोड़र बोली महाराज ओं कांई करया ? गणेशजी बोल्या बा तो गरीबन ही जिको बींपर तुष्ठ मानहुया । पण थान काई कमी हीं ? तू तो जाण बूझ कर करी । बा बोली महाराज अब समेटो । गणेशजी बोल्या आपा धन की पांती करेतो निठावु आधा धन की पाती करी। बींक भंडार भारयो । ज्यान सबका भरीजों ।

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