तनोट माता मंदिर, जैसलमेर | Tanot Mata

Tanot_Mata_Mandir1

तनोट माता मंदिर, जैसलमेर

Tanot Mata

माता तनोट राय, युद्ध देवी, तनोत माता , रुमाल देवी , तनोत राय मातेश्वरी , हिंगलाज माता, आवण माता

जांको राखे साइयां , मार सके न कोय।
बाल न बांका कर सके , जो जग बैरी होय।।

Tanot Mata Mandir1

किसी ने सच ही कहा है कि जिसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ऐसी ही एक दास्ता सरहद पार से जुड़ी है । हम बात कर रहे है, राजस्थान के जैसलमेर से १२० किमी. दूर भारत पाकिस्तान की सीमा से सटा हुआ माता तनोट राय के मंदिर की, जो सम्पूर्ण देश में विख्यात हैं। देश भर से श्रद्धालु यहां माता के चरणों में नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं। इन्हे युद्ध देवी के नाम से भी जाना जाता हैं।

यह अविश्वसनीय घटना लगभग ५६ वर्ष पुरानी है, जब १९६५ के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की ओर से इस क्षेत्र में जबरदस्त बमबारी हुई थी | जिनमें लगभग ३००० से भी ज्यादा के बम गिराए गए थे, लेकिन माता के चमत्कार के फलस्वरूप इनमें से एक भी बम नहीं फटे और न ही माता के मंदिर को किसी प्रकार का कोई नुकसान पहुंचा सके और परिणामस्वरुप पाकिस्तानी सेना को मुंह की खानी पड़ी।

इतना ही नहीं एक बार फिर ४ दिसम्बर १९७१ की रात को पंजाब रेजीमेंट और सीमा सुरक्षा बल की एक कंपनी ने मां की कृपा से लोंगेवाला में पूरी टेंक रेजीमेंट को धूल चटा दी थी और तभी से यह मंदिर भारतीयों के साथ साथ पाकिस्तानी सैनिकों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा है। इनमे से कुछ बम आज भी मंदिर परिसर के संग्रहालय में आम लोगो के देखने के लिए रखे गए हैं।

Tanot Mata Mandir

माता के इस चमत्कार का जिक्र भारतीय फिल्म बार्डर में भी दर्शाया गया है जो आज भी लोगो के जहन में जिंदा है ।

माता के इस प्रताप का सबसे बड़ा गवाह हैं पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खा, जिन्होंने खुद इस चमत्कार के आगे नतमस्तक करते हुए भारत सरकार से माता के दर्शन करने की अनुमति का अनुरोध किया था । करीब ढ़ाई साल कि जद्दोजहद के बाद अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर शाहनवाज ने न केवल माता के दर्शन किए अपितु उन्हें एक चांदी का छत्र भी चढ़ाया जिसे आज भी मंदिर परिसर में देखा जा सकता है।

तनोट माता मंदिर की देख-रेख


१९६५ की जंग के बादसे ही इस मंदिर की देखरेख से लेकर पूजा अर्चना तक का सारा जिम्मा भारतीय सीमा सुरक्षा बल ( बी. एस. एफ.) के जवानों ने अपने कंधो पर ले रखा है और वह उन्होंने अपनी चौकी भी बना ली है।

लोंगेवाला की जीत के बाद मंदिर परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया गया जहां अब हर वर्ष १६ दिसम्बर को उत्सव मनाया जाता हैं।

तनोत माता को रुमाल देवी के नाम से भी जाना जाता हैं, यह श्रद्धालु मंदिर में रुमाल बांधकर अपनी मन्नत पूरी करते हैं और देवी माता की कृपा से मन्नत पूरी होने पर भक्तजन द्वारा रुमाल खोल दिया जाता है ।यह मा का चमत्कार ही है कि लोग दूर दूर से माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं । यहां नवरात्र के पर्व में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है ।

तनोट माता मंदिर का इतिहास


तनोत को भाटी राजपूत राव तनुजी ने बसाया था, जो उनकी राजधानी भी थी और यहां पर माता का मंदिर भी बनवाया था | जो वर्तमान में तनोत राय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है।

तनोट माता की कथा


इस मंदिर का इतिहास लगभग १२०० वर्ष पुराना है कहा जाता है कि प्राचीन समय में एक मामाडिया नाम के चारण थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी । संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने सात बार हिंगलाज माता के दर्शन के लिए पैदल यात्रा की | एक रात हिंगलाज माता ने चारण को स्वप्न में दर्शन दिए और पूछा तुम्हे क्या चाहिए पुत्र या पुत्री, तो चारण ने कहा कि मां आप ही मेरे यहां जन्म ले…… माता ने अपनी भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हुए मामडिया के यहां जन्म लिया ।। उनकी कृपा से उसे ७ पुत्री व एक पुत्र की प्राप्ति हुई । जिनमें से एक तनोत माता थी और इसीलिए तनोट माता को हिंगलाज माता और आवण माता के रूप में भी जाना जाता है जो वर्तमान में पाकिस्तान के बलुचिस्तान में स्थित है।

अगर आप राजस्थान जाए तो एक बात तनोत माता के दर्शन अवश्य करे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *