नाग पंचमी की कहानी | नाग पंचमी की कथा | नागपंचमी क्यों मनाई जाती | Nag Panchami 2022

नाग पंचमी की कहानी | नाग पंचमी की कथा | नागपंचमी क्यों मनाई जाती | Nag Panchami 2022

श्रावण बदी पंचमी न ‘नागपंचमी’ हो व । ई दिन ठण्डी रसोई खा व । एक पाटा पर जेवड़ी स सात गांठ को सांप बना कर रक्ख । सांप की जल, कच्चो दूध, मोई (बाजरा का आटा म घी और चीनी मिला कर) भीजायेड़ा मोठ-बाजरा, रोली, चावल, ठंडी रोटी, दक्षिणा चढ़ाव । पिछ नागपंचमी को कहानी सुन । मोठ-बजरा और रुपिया पर बाणो निकाल कर सासुजी न पगा लगा कर दे व । आपकी बहन-बेटियाँ क भी बाणा निकाल न भेज । ई दिन आपकी बहन-बेटियाँ न पीर म जरुर बुलानो चाहिये ।

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नाग पंचमी की कहानी


एक साहूकार थो । उ क सात बेटा और सात बहू थी । सातू बहुवां खन्दे पेड़ माटी ल्या न गई । माटी म स एक सांप निकल्यो । जद सारी दोर-जिठानियाँ सांप न मार न लगी तो छोटी बहू मार न कोनी दियो । बां सांप न आपको धरम को भाई बना लियो और बोली कि मे र पीर म बाप, बाम्बी म सांप । जना सारी दोर जिठानियाँ बोली कि काल इको छाणां ल्या न को ओसरो ह सो उठ इन ही भेजांगा, बठ सांप निकल गा और इन डस लेसी ।

दूसर दिन बा छाणां ल्या न गई तो बठ सांप बैठयो थो, उन देख कर फुफकार मारी। जद वा बोली भाईजी राम राम। तो सांप बोल्यो कि तू मन भाई बोलदी नहीं तो म डस लेतो । जद बा बोली कि थे तो मेरा धरम का भाई हो, थे मन कैयां डस लेता और बौली कि जीवो नाग नागोलिया, जीवो बासुकी नाग, जिव मेरो लाड़ लड़ाइयो, नेवर घाली पांव । जद सांप उन नेवर देई । बा नेवर पैर घरां आई जद दोर-जिठानियाँ बोली नि इन तो सांप देवता बठ भी डस्यो कोनी ।

थोड़ी देर बाद सांप उन लेन आगो और बोल्यो कि मेरी बहन न भेजो। जद दोर-जिठानियां बोली कि आप न तो पीर ह तो भी आपनां भाई ले न कोनी आया, इ क पीर कोनी तो भी इके धरम नो भाई लेन आगां । पिछ उन बटेड़ी, सिर-मैहन्दी कर क भेज दी। दोनू जना आ ग गया, रस्ता म उना न खून की नदी बहती मिली जद बा बोली कि म कैयां पार जाऊँगी। जद भाई बोल्यो कि मेरी पूँछ पकड़ ले । जैयां ही व जान लग्या बैयाँ ही खून की नदी दूध की होगी ।

पीर म आतांही सब कोई ऊका लाड-चाव कर लग्या । भोत दिन रहता होगा तब एक दिन सांप की मां बोली कि म तो बार न जाऊँ हूँ तू ते र भांया न दूध ठंडो कर क प्या दिये। बा भांया न तातो-तातो दूध प्या दियो सो कोई का तो फन जलगा कोई की पूंछ जलगी। एक दिन बा आपकी पड़ोसन स लड़ाई कर थी जद कोई बात पर बोली कि मे र खाडिया- बाडिया भांया की सौगन्ध । भाई सुन लिया और आपकी माँ न बोल्या कि भोत सारा दिन होगा अब बहन न सास र भेज दे। जणां बिन सब कोई भोत सारो धन दे कर भेज न लग्या तो ताई-चाची बोली कि बाई तेरो लाड तो भोत ही कर्यो पण त न छ कोठां की ताली तो देदी, सातवां की ताली कोनी देई । जद बा सांप न कयो कि म न सातवां कोठ की ताली क्यू कोनी देई । तो बो बोल्यो कि सातवां कोठ की ताली लेवगी तो पछतावगी, पर बा जिद कर क ताली लेली। कोठो खोल कर देख तो एक बुड्डो अजगर बैठयो थो और बिन देखता ही फुफकार मारी। जद बा बोली बाबोजी राम-राम । तब अजगर बोल्यो कि तू मन बाबोजी कह दियो नहीं तो म तन डस लेतो । बा बोली कि थे तो मेरा धर्म का पिता हो मन कैयां डस लेतो और बोली कि जीवो नाग नगोलिया, जीवो वासुकि नाग, जिव मेरो लाड लडाईयो, नो करोड़ को हार।

जद नाग देवता इ बिन हार काढ़ कर दे दिया। बा भोत धन-दौलत ले कर सास र आगी। बिकी सारी दोर-जिठानियां कयो कि आप न तो पीर ह तो भी बाप-भाई आपा न धन कोनी दियो, इ क पीर कोनी तो भी या भोत सारो धन ले करी आई ह। दूस र दिन बिका टाबर अनाज का बोरा खिन्डा व था तो उना की ताई-चाचियां बोल मार्यो कि तेरा नाना-मा तो अजरांगिया-बजरांगिया ह, ऊ ल कू ल सुनता होसी सो चांदी की अनाज की बोरियां मंगा देसी, थे म्हारी अनाज मत खिंडावो। या बात छोरा-छोरी आपकी मां न जा क बोल्या तो सांप उनाकी बात सुनली और आपकी मां स मांग कर सोना-चाँदी क अनाज की बोरी मंगा कर बाई क रखा दी। दूस र दिन टाबर उमाकी झाडू खिन्डा व था, तो ताई-चाचियाँ ओरुँ बोल मारी, तो सांप ऊना न सोना-चाँदी की झाडू करवा क मंगा दी। जद दोर- जिठानियां बोली कि इनान तो बोल मत मारो, बोलां म भी धन स घर भर लाग्यो । आपा राजा न जाकर लगा देवां । जना व राजा न जाकर कयो कि मेरी दोरानील क नो करोड़ का हार ह, वो बि क के सोव, बो तो थारी रानी क सोवगो। जद राजा साऊकार क बेट की बहू न बुलवाओ और बोल्यो कि बो हार मेरी रानी न दे दे ।

बा हार काढ़ कर रानी न दे दि यो और मन ही मन म बोली ‘मे र गला मर व तो हार, रानी के गला म नाग हो जाईयो ।’ बा हार दे कर जा न लागी । बठी न रानी गला म हार पहनता ही हार सांप हो कर काट न लग्यो तो रानी चिल्लाई कि साऊकार क बे ट की बहू न बुलाओ जिको मे र गला म स सांप निकाल, बा के जादू टूना करगी। राजा उ न बुलायो और बोल्यो कि तू मेरी रानी क के कर दियो, गला म सांप ही सांप होगा सो जल्दी पाछा निकाल । बा बोली कि म तो कुछ भी कोनी कर्यो, मेर तो पीर कोनी थी सो सांप देवता न मेरा भाई-भतीजा बनाया था, ब ही म न यो हार दियो थो। जद राजा बि न हार पाछो दे दिया, एक हार आप क क न स ओर दिया। दोर-जिठानियां फेर बात कर न लागी कि अब के करां या तो राजा-रानी स भी कोनी डरी । पि छ ब ऊंक धनी न लगा दियो कि तेरी लुगाई तो जा व जठ सही धन लिया व, तू ऊं न ल ड़ कोनी । बो आपकी लुगाई न जाकर भो त लड़ न लग्यो, बोली ह सो ही बात बता, इतनो धन क उ स ल्याई ।

जद बा बोली कि म्हें सातू दोर-जिठानियां खन्देड़ा माटी ल्या न गई थी । ब ठ सांप देवता निकल्यो जना सब कोई मार न लग्या, म मार न कोई देई । मेर पीर कोनी थो सो म सांप न मेरो भाई बना लियो, ब ही मन सब धन दियो ह । पि छ ऊँको धनी सा र गांव म हेलो फिरा दियो-नाग पंचमी न सब कोई ठंडी रोटी खायो, कहानी सुणियो, बाणा निकालियो और नाग देवता की पूजा करियो ।

हे नाग देवता ! जिसे बि न पीर दिखायो बिसो सब न दिखाईयो । कहता, सुणाता, हुंकारा भरता न, आपना सारा परिवार न दिखाईयो ।

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