विनायकजी की कहानियाँ – ७ (मारवाड़ी मे) | Vinayakjee kee kahaniya – 7 (In Marwari)

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विनायकजी की कहानियाँ ७ (मारवाड़ी मे) | Vinayakjee kee kahaniya – 7 (In Marwari)

एक बिरामण को डावडो हो ब एक गांव मांगतो तो
सेर भाटों दो गांव मांगतो तो सेर आटों ४ गांव मांगतो ही सेर आटो मिलती वीसं बत्तो बीन
मिलतो कोनी । एक दिन ५-१० लूगाया कहाणी कथा के रही ही । वो बोल्यो आपां भी गणेशजी
की कहाणी सुण लेव। आपांक तकदीर मं तो कित्तो ही मांगो सेर आटो ही  लिख्योंडो।

वो गणेशजी की कहानी सुन ली। ही लगाया जावतीं बेला
थोडो-थोडो अनाज न्हाक्यो तो भी ५ सेर अनाज होयग्यो वो बोल्यो आपां विनायकजी की कहानी
सुन्या तो ५ सेर अनाज होयग्यो अगर विनायक जी के शरण जाबां तो कांई कोनो मिली । मां
न आकर बोल्यो मां म्हन दो रोटी बनादे म्हे विनायकजी क शरण जावू । मां बोलो थन विनायक
जी कठ मिली । बो बोल्यो हाथा जावूं पंट पलाण जावूं पगा जाबूं जठ विनायकजी मिली बेंकी
शरण जावू । माँ बोली टावर ह जिद म आयग्यो ह २-३ कोंस जार पाछो आ जाई । बो तेवढयोडो
हो भौर रोटी लेयर जंगल में निकलग्यो । विनायकजी मन में सोचे ओ टावर ह औ डर जाई। एक
साधू को रुप घरर आया । ओर पूछया बेटा तू सीद जा रयो ह
? वो
जवाब दियो म्हे विनायक जी क शरण जा रयो हु | अरे म्हे इता बूढ़ा होयग्या तो भी म्हान
विनायकजी मिल्या कोनी थन कठ मीली । वो बोल्यो हाथा जावूं पगा जावूं पेट क पिलाण जावू
जठ विनायकजी मिली बक शरण जावू । साधू बोल्यो म्हे ही विनायकजी हूं यो बोल्यों
विनायकजी इशां थोडा हीं व दू

दू ड़ाल्या सूड सू डाल्या ओछी पीडया कामण गारां। साधू बोल्यो आख्यां मौच ले
? आख्यां
मींच  ताई विनायकजी सागे स्वरुप धर लियो ।
बामण को ढावडो विनायकजी न देखतां ही व्यांक पगाम पडग्यो जणा विनायकजी कहया मांग की
भी मांग वो

बोल्यों कोंई मांगू म्हन तो मांगण आव कोनो । आव
ज्यान हो मांग। थोडी २ बात मांगू म्हेल झरोखा मांगू हिंगडू डोल्यो राज को चढन घोडो
मांगू जौण बनात की । खीर खांड का भोजन मांगू पुरसण वाली ऐसी मांगू जाने फूल गुलाब
को  | नदी किनार घर मांगू संवारो परभात को
। गणेशजी बोल्या एक बार ओर बोल । एक बार ओर वो ज्यान बोल्यों बीकी सगली साध परी होयग्यो
। बोन दियो । ज्यांन सगलान देईजो ।
         

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