विजया दशमी पर निबंध | Vijayadashami Ayudha Pooja

विजया दशमी पर निबंध

विजया दशमी 2023 | विजयादशमी का क्या महत्व है | विजया दशमी पर निबंध

विजया दशमी का त्यौहार भारतवर्ष के प्रमुख त्यौहारों में से एक है । इस त्यौहार का हिन्दुओं के लिए विशेष महत्व है ।

विजयादशमी कब मनाया जाता है


विजया दशमी या दशहरा का पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है । इस पर्व को भगवती के “विजया” नाम पर विजया दशमी कहते हैं । इस दिन भगवान श्री रामचन्द्रजी ने लंका पर विजय प्राप्त की थी । इसलिए भी इस पर्व को विजया दशमी कहा जाता है ।

विजयादशमी क्यों मनाई जाती है


ऐसा मानना है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है । यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है । बंगाल में यह उत्सव दुर्गा पर्व के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । देश के कोने-कोने में इस पर्व के दिन पहले से ही रामलीलाएँ शुरू हो जाती हैं । सूर्यास्त होते ही रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं ।

दुर्गा पूजन, अपराजित पूजन, विजय-प्रमाण, नवरात्र पारण, दुर्गा-विसर्जन इस पर्व के महान कर्म हैं । क्षत्रियों का शमी पूजन बहुत बड़ा पर्व माना जाता है। इस दिन ब्राह्मण, क्षत्रिय शस्त्र-पूजन तथा वैश्य बहीपूजन करते हैं । इसलिए यह सरस्वती पूजन, राष्ट्रीय पर्व माना जाता है।

विजया दशमी पर निबंध

विजयादशमी की कथा


एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से दशहरे के त्यौहार के फल के बारे में पूछा । शिवजी ने उत्तर दिया – आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है । जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है । इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ है ।

भगवान श्री रामचन्द्र जी ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था ।

इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का गांडीव नामक धनुष धारण किया था ।

शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब और किस कारण धारण किया था

पार्वती जी बोली – शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब और किस कारण धारण किया था तथा रामचन्द्रजी से कब और कैसी प्रिय वाणी कही थी ? सो कृपा करके मुझे समझाइये ।

शिवजी ने जबाव दिया – दुर्योधन ने पाण्डवों को पराजित करके बारह वर्ष का वनवास तथा तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास जुए की शर्त रखी थी । तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाएगा, तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा । इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को शमी वृक्ष पर छुपाया था तथा स्वयं बृहत्रला के वेश में राजा विराट् के पास नौकरी की थी ।

जब गौ रक्षा के लिए विराट् के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया तब अर्जुन की शमी वृक्ष पर से अपना धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रस्थान की |

विजया दशमी के दिन रामचन्द्रजी ने लंका पर चढ़ाई करते समय शमी वृक्ष ने रामचन्द्रजी की विजय का उद्घोष किया था । विजय काल में शमी पूजन इसीलिए होता है ।

युधिष्ठिर के पूछने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि विजय दशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और प्राप्त हाथो-घोड़ो को सजाना चाहिए |

उसी दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके दूसरे राजा की सीमा में प्रवेश करना चाहिए तथा वहा वास्तु पूजन करके अष्ट-दिग्पालों तथा पार्थ देवताओं की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए । शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती मे बाढ़ मारना चाहिए तथा पुरोहित वेद, मंत्रो का उच्चारण करे |

ब्राह्मणों की पूजा करके हाथी, घोड़ा, अस्त्र,शास्त्र का निरीक्षण करना चाहिए । जो राजा इस विधि से विजय प्राप्त करता है । वह सदा अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है ।

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