इब्राहिम की कहानी । Ibrahim Ki Kahani

इब्राहिम की कहानी । Ibrahim Ki Kahani

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जब बालक इब्राहीम ने अपने बाप आज़र से कहा – “क्या मूर्ति को भगवान करके ग्रहण करते हो ? मैं देखता हूँ, तुम्हारा सारा वंश बहका हुआ है ।“

उसके विश्वास के लिये इस प्रकार प्रलोभनार्थं शैतान ने भूमि और आकाश का राज्य दिखाया । अन्धेरी रात में तारा देखकर इब्राहीम बोला – “यह मेरा ईश्वर है” फिर जब वह अस्त हो गया तो बोला – “मुझे अस्त होना प्रिय नहीं” । चन्द्रमा को कहा यह मेरा ईश्वर है । फिर महान सूर्य को अन्ततः सबकी अस्थिरता को देख बोला – “मैंने अपने मुँह को उसकी ओर किया, जिसने भूमि और आकाश को रचा है” (६:६:५)

उसने अपने वंश से कहा – “क्या पूजते हो ?” फिर मन्दिर में घुसकर उनकी मूर्तियों से पूछा – “तुम क्यों नहीं खाते । क्या हुआ है तुम्हें जो नहीं बोलते ।“ तदनन्तर दाहिने हाथ से उन्हें तोड़ने लगा । तब लोग घबड़ाये हुए दौड़कर आये । इब्राहीम ने उसने पूछा – “अपने हाथ के बनाये हुए को क्यों पूजते हो ? इन्हें चुनकर आग की ढेर में डाल दो ।“

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इब्राहीम के उस आचरण को देखकर उस के जातिवाले दाँवघात लगाने लगे, किन्तु हमने उन्हें ही नीचा दिखाया (३७:३:११,१७-२१, २३,२४)

इब्राहीम के मेहमानों ने भीतर आ सलाम किया । तब वह घर से घी में तला बछड़ा लाया । पूछा – “क्या तुम खाते नहीं ? इब्राहीम को डरा देख उन्होंने कहा – “डर मत, हम तुझे एक ज्ञानी पुत्र होने का शुभ समाचार देते हैं ।“ इसे सुन उसकी स्त्री ने सिर धुनकर कहा – (५१:२:१-६) “मैं बुढ़िया और मेरा पति बूढ़ा !!” (११:७:४)।

ईश्वर-दूत बोले – “शाक्तिमान्, ज्ञानी, महाप्रभु ने ऐसा ही कहा है (५१:२:७) ।”. “हमने उस इब्राहीम को ‘इसहाक’ और इस्माईल, दो सन्तान दिये” (२६:३:५)

स्वप्न में प्रभु के नाम पर पुत्र को बलिदान चढ़ाने की उसे इच्छा हुई । पुत्र ने भी बाप की इच्छा स्वीकार कर कहा – “मुझे ईश्वरीय इच्छा से धैये मिलेगा । जब इब्राहीम ने उसे लिटाया तो परमेश्वर ने कहा – “तूने अपने स्वप्न को सच कर दिखाया । अब इसके बदले एक बड़े पशु की बलि दे ।” (३७:३:२७.३३)

जब इब्राहीम ने पूछा – “प्रभु, तू कैसा मृतकों को पुनरजीवित करेगा ? प्रभु कहा – “चार पक्षी पकड़कर उनका एक-एक तुकड़ा, प्रत्येक पर्वत पर फेक दे, फिर उन्हे बुला, वह तेरे पास दौड़ते आ जायेगे ।” (२:३५:३)

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