सिख धर्म का इतिहास । सिख धर्म क्या है । Sikh Dharm | Sikh Dharm Ke Bare Mein Bataiye
सिख धर्म ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ के उपदेशों पर आधारित एक विशिष्ट धर्म है । यह हिन्दू धर्म तथा इस्लाम से तात्त्विक रूप में भिन्न है । यह नया देवी सन्देश है । यह आरम्भ से ही सामान्य जनता का धर्म है ।
इसके संस्थापक के उत्तराधिकारी गुरु अंगददेव के काल में भी इसे मौलिक धर्म माना जाता था । विभिन्न अवसरों पर सिखों द्वारा की जाने वाली रस्में भी इसे स्पष्टतः पृथक् धर्म प्रमाणित करती हैं । यह पूर्णतः शिष्यता पर आधारित एक नई विशिष्ट विचार प्रणाली है । गुरु सर्वदा विद्यमान रहता है, और शिष्य उससे प्रेरणा प्राप्त करता है ।
सिख धर्म हमें यह सिखाता है कि हमारे अन्दर में जो कुछ भी है, उसका एकमात्र स्रोत केवल ईश्वर है, तथा उसके बिना हमारे अन्दर कोई शक्ति नहीं है । गुरु के उपदेशों का अनुसरण करने वाला सिख अपने आप में महान् शक्ति बन जाता है, क्योंकि गुरु उसके चरित्र को पवित्र बना देता है, अतः कई बार अपने गतिशील व्यक्तित्व के द्वारा वह अलौकिक पुरुष बन जाता है ।
यह धर्म रहस्यमय न होकर व्यावहारिक धर्म है, और विशिष्ट आदर्शो के अनुसार इसका पालन करना होता है । इसका शैतान अथवा देवी-देवताओं में विश्वास नहीं है । यह सिखों से नाम (ईश्वर की सेवा) तथा सेवा (मानवता की सेवा) की अपेक्षा करता है, यह सेवा केवल एकान्त में ही नहीं, अपितु सार्वजनिक रूप में भी हो सकती है । सिख धर्म का उद्देश्य अच्छे कर्मों के द्वारा मानवता की सेवा करना तथा ईश्वर की प्राप्ति की ओर अग्रसर होना है । यह मानवता का धर्म है, इसका कर्मकाण्डों में विश्वास नहीं है । यह एकेश्वरवाद, पुरुष तथा स्त्री की समानता और ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करने का प्रचार करता है ।
ईश्वर की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान हैं । यह सिद्धान्त ईश्वर के सर्वत्र परिव्याप्त स्वरूप में मूल विश्वास का परिणाम है । सिख धर्म विरक्ति में विश्वास नहीं करता । जैसे ऊपर बताया गया है, यह शिष्यता का धर्म है, सिख का यह कर्त्तव्य है कि अपने दैनिक जीवन में धार्मिकता का व्यवहार करे, तथा अपने परिवार एवं समुदाय की सेवा करे । सिख का यह कर्त्तव्य है कि पवित्र जीवन व्यतीत करे, सिख धर्म का यह विश्वास है कि ‘धार्मिक नियम मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं।’ सिख धर्म उचित धार्मिक जीवन के लिए आवश्यक अनुशासन के रूप में अपने अनुयायियों से उचित एवं रचनात्मक कार्य की अपेक्षा करता है ।
सिख का यह कर्तव्य है कि अपने श्रम के फल का औरों के साथ मिलकर भोग करे । “नानक केवल वही उचित मार्ग को जानता है, जो परिश्रम से कमाता है तथा अपनी कमाई में से औरों को भी बांटता है।” वह भूखा रहने तथा पीड़ा सहने को कोई महत्त्व नहीं देता । सिख धर्म में केवल सिद्धान्त ही नहीं है, प्रत्युत यह एक जीवन की पद्धति, प्राप्ति की अवस्था तथा घनिष्ठ अनुभव है । जिस व्यक्ति को ईश्वर का ज्ञान होता है वह सर्वदा नम्र रहकर भजन करता है, उसे अपनी तुच्छता तथा ईश्वर की अपरिभाष्य एवं अकथ्य व्यापकता तथा महिमा का ज्ञान होता है ।
सिख धर्म मनुष्य में निरन्तर बौद्धिक कुतुहल तथा आलोचनात्मक मनःशक्ति, न केवल आत्म को, अपितु अपने परिवर्ती गोचर विषय को जानने तथा समझने की निरन्तर एवं सजीव इच्छा की अपेक्षा करता है । जो बौद्धिक व्यवहार मनुष्य को वैज्ञानिक अनुसन्धान की ओर ले जाता है, वही सिख धर्म की जीवन पद्धति का वास्तविक आधार है । सिख धर्म की परिभाषा के अनुसार भक्ति एक जीवन पद्धति है, तथा सत्य-जीवन ही भक्ति की पद्धति है । यह निःस्वार्थ सेवा है तथा सत्य की रक्षा के लिए बलिदान है । अतः सच्चा सिख तथा नैतिक एवं आध्यात्मिक रूप से महान होता है ।
सिख धर्म मूर्ति-पूजा, पाखण्ड, सती की रस्म, मदिरा तथा अन्य मादक पेयों के प्रयोग, बाल-वध, मिथ्या निन्दा, हिन्दुओं की नदियों तथा सरोवरों की तीर्थ यात्रा का निषेध करता है । यह आभार, निष्ठा, सच्चाई, ईमानदारी तथा नैतिक एवं पारिवारिक सद्गुणों की प्रेरणा देता है । दसवें गुरु गोविन्दसिंह जी ने सच्चे तथा पवित्र सिख, अर्थात् खालसा की निम्न परिभाषा दी है :
जगत जोत जपे निसबासर,
एक बिना मन नैक न आने ।
पूरन प्रेम प्रतीत सजै,
व्रत गौर मढ़ी मठ मूल न मानै ।
तीरथ दान दया तप संयम,
एक बिना नहि एक पछानै ।
पूरन जोत जगँ घट में,
तब खालसा ताहि नखालिस जानै ।
सति सदैव सरूप सतव्रत,
आदि अनादि अगाध अजै है ।
दान दया दम संजम नेम,
जतब्रत सील सुब्रत अनै है।
आदि अनील अनाद अनाहद,
आपि अदवैख अभेख अभै है ।
रूप सरूप सर अरेख जरारदन,
दीन दयालु कृपालु भए हैं।
आदि अदख अभेख महा प्रभ,
सत सरूप सुजोत प्रकासी
पूर रह्यो सभ ही घट कै पट,
तत समाधि सुभाग प्रनासी ।
आदि जुगादि जुगादि तुही प्रभ,
फैल रहयो सभ अंतरि बासी ।
दीन दयाल कृपालु कृपा कर
आदि अजोनि अजै अविनासी ।
उन्होंने आगे यह कहा है — “सिख धर्म निश्चय ही संसार-भर में माना जाएगा, सभी व्यक्तियों को निस्संकोच इसे स्वीकार करना पड़ेगा, यद्यपि दीर्घकाल तक प्रबल विरोध के बाद ही वे ऐसा करेंगे।”
सिख धर्म ने गत पांच शताब्दियों में अनेक अग्नि-परीक्षाओं को सफलता से पार किया है, और इस प्रकार अपने महत्व को प्रमाणित किया है । इतिहास साक्षी है कि इसने उच्च कोटि के विद्वान्, वैज्ञानिक साधक, सैनिक, शहीद, खिलाड़ी, लेखक, कलाकार, किसान, प्रशासक दस्तकार तथा नैयायिक उत्पन्न किए हैं ।