श्री कृष्ण भीष्म पितामह | पितामह भीष्म की मृत्यु | Bhishma Pitamah | Bhishma Pitamah Death

श्री कृष्ण भीष्म पितामह | पितामह भीष्म की मृत्यु | Bhishma Pitamah | Bhishma Pitamah Death

कुरुवृद्ध पितामह भीष्म भी भगवान् के एक ऐसे ही यन्त्र थे । अर्जुन के बाणों से मर्माहत होकर शरशय्या पर पड़े हुए वे इच्छानुसार शरीर छोड़ने के लिये उत्तरायण के सूर्य की बाट देख रहे थे । युद्ध समाप्त होने के बाद जब युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो गया, तब एक दिन भगवान् श्रीकृष्ण समस्त पाण्डवों को साथ में लेकर भीष्म के मुख से सबको धर्म का उपदेश सुनाने के लिये कुरुक्षेत्र के मैदान में गये ।

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श्रीकृष्ण को आया देखकर भीष्म हर्ष से गद्गद हो गये और बड़े प्रेम से उनकी स्तुति करने लगे । श्रीकृष्ण ने भी भीष्म की बड़ी प्रशंसा की और यह कहते हुए कि “तुम्हारे शरीर छोड़कर इस लोक से जाने के साथ ही सारा ज्ञान भी यहाँ से विदा हो जायगा” पाण्डवों को ज्ञानोपदेश देने की प्रार्थना की ।

भीष्म ने कहा – “प्रभो ! मेरा मन तो बाणों की पीड़ा से खिन्न हो रहा है, अंग-अंग में वेदना हो रही है तथा प्रतिभाशक्ति लुप्त हो गयी है । मेरे मर्मस्थानों में आग-सी लग रही है, मेरी वाणी रुकी सी जाती है । ऐसी दशा में मैं उपदेश कैसे दे सकूँगा । मुझे तो दिशाओं का ज्ञान भी नहीं रह गया है । मैं तो केवल आपकी शक्ति से जी रहा हूँ । इसलिये नाथ ! आप मुझे क्षमा करें और पाण्डवों को स्वयं उपदेश देने की कृपा करें; क्योंकि सारे शास्त्रों के उद्गम स्थान तो आप ही हैं। आपके सामने बोलता हुआ तो बृहस्पति भी हिचकेगा, औरों की तो बात ही क्या है । जैसे गुरु की उपस्थिति में शिष्य उपदेश नहीं दे सकता, उसी प्रकार आपके रहते मुझ-जैसा मनुष्य कैसे उपदेश दे सकता है |

इस पर श्रीकृष्ण ने भीष्म को वरदान दिया कि “अब तुम्हें न ग्लानि होगी, न मूर्छा होगी, न दाह होगा, न पीड़ा होगी और न भूख-प्यास ही सतायेगी । तुम्हें मेरी कृपा से सब ज्ञान अपने-आप भासने लगेंगे और तुम्हारी बुद्धि निरन्तर सत्त्वगुण में स्थित रहेगी।“ उस समय व्यास आदि अनेकों महर्षि भी वहाँ उपस्थित थे । उन सबने वेदमन्त्रों एवं स्तोत्रों के द्वारा श्रीकृष्ण की पूजा की, आकाश से पुष्पवृष्टि हुई ।

दूसरे दिन से भीष्म ने अपना उपदेश आरम्भ किया । श्रीकृष्ण की कृपा से उनका दाह, मोह, थकावट, ग्लानि और पीड़ा सब एक साथ नष्ट हो गये । उनकी वाणी और मन में बल आ गया । फिर तो उन्होंने वर्णाश्रमधर्म, राजधर्म, आपद्धर्म, मोक्षधर्म, श्राद्धधर्म, दानधर्म, स्त्रीधर्म आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर लगातार कई दिनों तक उपदेश दिया । अन्त में सूर्य जब उत्तरायण में आ गये तब महात्मा भीष्म ने भगवान् श्रीकृष्ण के सामने योगधारणा से शरीर त्याग दिया और दिव्य लोक में चले गये । उस समय देवताओं ने दुन्दुभियाँ बजायीं और आकाश से पुष्पवृष्टि हुई । पाण्डवों ने विधिवत् उनके और्ध्वदैहिक संस्कार किये ।

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