मूसा की कहानी | मूसा की कहानी बाइबल से | Musa Ki Kahani

मूसा की कहानी | मूसा की कहानी बाइबल से | Musa Ki Kahani

मिश्र का “फ़रऊन” या “फर्वा” (मिश्र के सम्राटों की पदवी) पैलस्ताईन(फिलस्तीन) विजय कर, वहाँ के बहुत से निवासियों को बन्दी बना अपने देश में ले गया । पीछे राजाज्ञा हुई कि बन्दी बनाये इन इस्त्राईल की संतानो के कोई भी लडके न बचने पाए किंतु लड़कियाँ न मारी जाये । मूसा के उत्पन्न होने पर उसकी माँ ने बच्चे को मारे जाने के डर से नहर में डाल दिया । वह संदूक फरऊन की स्त्री के हाथ लगा । उसने इस बालक को बड़े प्रेम से संयोगवश उसकी माँ को ही दाई रख पाला ।

युवा होने पर एक यहूदी को पिटते देख, उसने उस मिश्री को मिश्री पुरुष मार डाला; और वह भागकर मदेन में चले गये । वहाँ उसने विवाह कर, अपने ससुर के घर में १० वर्ष तक विवाह के बदले की गई प्रतिज्ञा के अनुसार सेवा की । अवधि पूरी होने पर वह परिवार को ले चला तो एक पर्वत पर उसने आग देखी । वह अकेला पहाड़ पर गया । वहाँ दिव्यवाणी हुई – “मैं जगदीश्वर हूँ, अपने डंडे को भूमि पर डाल ।“ जब उसने उसे भूमि पर डाल दिया, तो वह फनफनाता सॉप हो गया मूसा डरी । प्रभु ने कहा – “आगे आ मूसा ! डर नहीं । अपने हाथ को बगल में दे ।“ वह चमकीला निकल आया । भगवान से इस प्रकार दो प्रमाणभूत चमत्कार पाकर, प्रभु के आदेशानुसार वह फरऊन के पास गया। (२८:१-४)

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उसने फ़रऊन के जादूगरों को अपने चमत्कार से जीता । रात को उसने इस्त्राईल-संतति को ले अपने देश की ओर प्रस्थान किया । अपने दासों को इस प्रकार हाथ से निकलते देख, फरऊन सेना-सहित पीछे दौड़ा । मूसा ने अपने डंडे के चमत्कार से समुद्र मे मार्ग बना लिया जिससे उसके जाति वाले पार हो गये । जब फ़रऊन ने भी उसी तरह उतरना चाहा, तो मूसा के डंडे के उठाने से सब वहीं डूब गये । रास्ते में इस्त्राईल-सन्तति को ईश्वर की ओर से दिव्य भोजन “मन्न सल्वा“ आता था । जब वह भगवान से बात करने और उसके आदेश लेने के लिये गया था और अपने भाई हारून के जिम्मे इस्राईल-संतति को कर गया था; तो इधर लोगों ने “सामरी” के बहकाने से, बछड़ा बनाकर पूजना आरम्भ किया ।

मूसा के क्रोधित होने पर पीछे ‘हारून’ ने कहा – हे मेरी माँ के जने ! न मेरी दाढ़ी पकड़ न सिर । मै डरा कि, तू कहेगा बनी इस्लाईल संतति में फूट डाल दी । सामरी ने जिब्राईल की धूलि से बछड़े बोलने की शक्ति तक उत्पन्न कर दी थी (२०:३:५)

“जब मूसा भगवान के पास बात करने गया था, तो उसे दर्शन मांगा । भगवान ने कहा – “तू न देख सकेगा । अच्छा पहाड़ की ओर देख ।“ उस तेज को देख वह मूर्छित हो गिर पड़ा । ईश्वर ने अपने आदेश को पट्टियों पर लिखकर उसे दिया। (७:१६-१८)

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दाऊद – “हमने पर्वतों को दाऊद के अधीन कर दिया जो स्तुति करते हैं, एवं पक्षियों को भी । हमने तुम्हारे लिये उसे कवच बनाने की कारीगरी सिखा दी, जिससे युद्ध में तुम्हारा बचाव हो।” (२१:६:४,५)

“हमारे प्रभु के सेवक दाऊद को स्मरण कर, जिसके हाथ में बल था और जो अनुरक्त था । हमने पर्वतो को उसके अधिकार में दे दिया, जो प्रातः और सायं स्तुति करते ओर सारे पक्षी एकत्र हो उसके अनुरक्त होते थे । उसे हमने राज्यबल, चातुर्य और बात के निर्णय की शक्ति प्रदान की । तुझे उन वादियों की सूचना मिली है, जो दीवार कूदकर मंदिर में आये । जब वह दाऊद के पास आये, तो वह उनसे घबराया । उन्होने कहा – “भयभीत मत हो। हम दोनों वादी-प्रतिवादी हैं ।“ एक ने दुसरे पर अत्याचार किया है, सो हमारा न्याय कर, उपेक्षा न कर, हमे सीधा मार्ग बता । यह मेरा भाई है, उसके पास 99 दुम्बा भेडे हैं, और मेरे पास एक, यह कहता है कि उसे भी दे दे । इसके लिये बलात्कार करता है ।

दाऊद बोला – “अपनी भेड़ों में मिलाने के लिये, तेरी भेड़ को माँगकर इसने तुझ पर बलात्कार किया । दाऊद ताड़ गया कि हम परमात्मा ने उसकी परीक्षा ली है, फिर उसने अपने प्रभु से क्षमा माँगी, दण्डवत की और वह अनुरक्त हुआ । फिर हमने उसे क्षमाप्रदान की, उसके लिये हमारे पास उत्तम पद और उच्च स्थान है । हे दाऊद ! हमने तुझे पृथ्वी पर अपना अधिकारी बनाया । (३८:२: २-१२)

दाऊद की ९९ स्त्रियाँ थी । उसने अपने पड़ोसी की एक स्त्री पर मुग्ध हो उसे भी जबदस्ती लेना चाहा । उसने इसके लिये उस स्त्री के पति को युद्ध में भेज दिया जहाँ वह मारा गया । फिर उससे उसने विवाह कर लिया । दाऊद ने नियम किया था – एक दिन दरबार करना, एक दिन भगवद्भजन करना, एवं एक दिन अंतःपुर में रहना । यह पिछला ही दिन था, जिस दिन, द्वार से गमनागमन निरुद्ध होने से, दो देवदूत दीवार फॉदकर, उसके उपरोक्त अनुचित कृत्य को अन्यायपूर्ण बतलाने के लिये आये थे । वही वृत्तांत ऊपर कहा गया है ।

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