युसूफ की कहानी । Yusuf Ki Kahani

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युसूफ की कहानी । Yusuf Ki Kahani

बालक यूसुफ़ ने बाप याकूब से कहा – “ मैंने ११ तारे, चन्द्रमा और सूर्य को अपने लिये प्रणाम करते देखा ।“ पिता बोले – बेटा ! अपने स्वप्न को अपने भाइयें से मत कहना, अन्यथा वह धोखा देंगे । इस प्रकार तेरा प्रभु तुझ पर कृपा करेगा और तुझे रहस्य की बाते सिखावेगा, एवं तुझ पर तथा याकूब-सन्तिति पर अपनी प्रसन्नता पूर्ण करेगा; जैसा कि उसने तेरे बाप-दादों इस्माईल, और इसहाक़ पर किया (१२:१:४-६) ।

एक समय उसके भाइयों ने मन्त्रणा की कि यूसुफ़ और उसका भाई बनि अमीन हमारे बाप को हमसे अधिक प्रिय हैं । इसलिये आओ उन्हें एक दिन मारकर फेंक दिया जाय । तब एक ने कहा – “उसको मारो मत, अन्धे कुएँ में डाल दो, जिस में कोई मुसाफिर उठा ले जाये ।“

उन्होंने बाप को फुसलाकर किसी प्रकार यूसुफ को शिकार खेलने के लिए अपने साथ वन मे जाने पर राजी कर लिया, वन में ले जाकर उसे कुएँ में ढकेल दिया और उसकी कमीज को लोहू में रंग कर बाप के सामने रख कर कहा – “उसे भेड़िया खा गया।“ उधर किसी यात्री-समुदाय के एक आदमी ने पानी खोजने के समय यूसुफ को कुएँ से निकाला; और उसे एक मिश्री सौदागर के हाथ बेच डाला ।” (१२:२:२-१४)

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मिश्री सौदागर ने इस सुन्दर बालक को एक स्त्री (मिश्र के राजमंत्री की स्री) के हाथ बेंच दिया । उसने भली प्रकार रखा । जब वह युवा हुआ तो इसकी सुन्दरता पर उसका मन चलायमान हो गया; किन्तु यूसुफ ने बात स्वीकार न की । अरजीज (मिश्र के राजमंत्री ) की स्त्री अपने दास पर मोहित है, यह बात नगर में फैल गई । इस पर अरज़ीज की स्त्री ने नगर की स्त्रियों को बुला कर यूसुफ के सामने उन्हें खर्बुजा और छुरी दी । उनका चित्त यूसुफ़ की ओर इतना आकर्षित हुआ कि उन्होंने अपना हाथ काट डाला और कहा-हाशल्लाहु !, यह मनुष्य नहीं देवता है। यूसुफ़ से निराश होकर उस स्त्री ने उसे कैद की धमकी दी । यूसुफ बोला- जिधर मुझे बुलाती हो, उससे जेल मुझे प्रियतर है । नादान यूसुफ़ जेल में डाल दिया गया ।

उसके साथ वहाँ दो और बन्दी थे । एक रात दोनों ने स्वप्न में देखा और यूसुफ़ से कहा । यूसुफ़ ने उसे-जिसने सिर पर रखी रोटी को जानवरों से खाई जाती देखा था – कहा, कि तु सुली पर चढ़ाया जायगा, और तेरा सिर जानवर नोचेंगे । दूसरे से – जिसने शराब निचोड़ते देखा था – कहा, तू राजा को शराब पिलावेगा और उसका प्रिय दास होगा, किन्तु पदारूढ़ होकर मुझे स्मरण रखना । यूसुफ का स्वप्न-विपाक ठीक निकला, किन्तु राजा का सेवक होकर वह जीवित बन्दी उसे भूल गया । यूसुफ कितने ही वर्ष जेल में रहा । (१२:२-५)

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एक समय बादशाह ने स्वप्न देखा कि, सात मोटी गायों को सात दुबली गाए खाती है, सात बाले हरी और सात सूखी हैं । राजा ने स्वप्न विचारने के लिये सगुनियों को बुलवाया । उसी समय उसके उस भूतपूर्व बंदी नोंकर ने यूसुफ की प्रशंसा की । यूसुफ ने आकर बताया कि सात वर्ष तुम्हारे राज्य में खुब फसल होगी और सात बरस तक पानी न बरसेगा । इसलिए अनाज काटकर उसे बालियों में ही पड़ा रहने दो । राजा प्रशन्न हो उसे निरपराधता पा, कैद से छुड़ा, अपना काम सौंपा । अकाल के समय यूसुफ ही के हाथ में अनाज आदि का अधिकार था । एक समय उसके भाई भी अकाल के मारे उसके यहाँ अनाज लेने आये । बोरी तैयार होने पर उसने उनसे कहा – जब तक तुम्हारा छोटा भाई ‘वनि-अमीन’ न आयेगा, तुम माल न ले जा सकोगे । फिर, किसी प्रकार बाप को राजी, करके वह बनि-अमीन को वहाँ लाये । उसकी तो इच्छा वनि-अमीन को अपने पास रखने की थी । मिश्र के राजा के न्याय के कारण वह और प्रकार से अपने पास रख न सकता था । इसलिये उसने युक्ति सोच ‘वनि-अमीन’ की बोरी में लोटा रख उसे चोर बनाकर पकड़ लिया । उसके भाइयों ने बहुत छुड़ाने का प्रयत्न किया । अन्त में यूसुफ ने उसकी करनी को कह उसे लज्जित कर अपने आपको प्रकट कर दिया । अपने वियोग मे रोते-रोते अन्धे हो गये बाप के पास उसने यह कह अपना कुर्ता भेजा कि इसके मुँह पर रखते ही उसकी आँखें अच्छी हो जायेंगी और यह भी कहा – घर सहित तुम सब यहाँ ही चले आओ । उसके आने के बाद बूढ़े माता-पिता को सिंहासन पर बैठा सबने प्रणाम किया। (१२:६-११)

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