शैतान का अर्थ | शैतान का इतिहास | Shaitan

Shaitan

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शैतान का अर्थ | शैतान का इतिहास | Shaitan

फिरिश्तों के अतिरिक्त क़ुरान में एक प्रकार के और भी अदृष्ट प्राणी कहे गये हैं, जो सब जगह आने जाने में फिरिश्तों के समान ही हैं, किन्तु वह शुभकर्म से हटाने और अशुभ कराने के लिये मनुष्यों को प्रेरणा करते हैं । इन्हें ‘शैतान’ कहते हैं । हमने उनके लिए पापात्मा शब्द लिखा है ।

शैतानों में सबका सरदार ‘इब्लीस’ है, जिसका कि नाम अन्य विषयो मे आया है । शैतान के विषय में कहा है – –

“’यह केवल शैतान है, जो तुम्हें अपने दोस्तों से डराता है।”

शैतान किस प्रकार मनुष्य को अशुभ कर्म की ओर प्रेरणा करता है, उसको इस वाक्य में कहा गया है –

“शैतान उनके कर्मों को सँवार देता है, तथा कहता है-अब कोई मनुष्य तुम्हें जीत नहीं सकता, मैं तुम्हारा रक्षक हूँ; किन्तु जब दोनों पक्ष आमने-सामने आते हैं, तो वह मुह मोड़ लेता है; और कहता हैं—मैं तुमसे अलग हूँ, मैं निस्सन्देह देखता हूँ, जिसे तुम नहीं देखते; और परमेश्वर पाप का कठोर नाशक है। (८:६:४)

इसीलिये कहा है –

“कह, मेरे स्वामी ! शैतान के प्रलोभनों में मैं तेरी शरण आया हूँ ।” ( २३ : ६:५)

काम करा चुकने पर शैतान क्या चाहता है यह इस वाक्य में है —

“काम समाप्त हो जाने पर शैतान ने कहा-निस्संदेह तुमसे ईश्वर ने ठीक प्रतिज्ञा की थी, और मैंने तुमसे प्रतिज्ञा की, फिर तोड़ दी; मेरा तुम पर अधिकार नहीं, इसके सिवाय कि मैंने पुकारा और तुमने मेरी बात स्वीकार की। सो मुझे दोष मत दो, अपने आपको दोष दो। मैं न तुम्हारा सहायक हूँ, और न तुम मेरे सहायक ।” (१४:४:१)

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इब्लीस का स्वर्ग से निकाला जाना


शैतान भूमि ही तक नहीं आकाश तक का धावा मारते है, कहा है –

“निस्सन्देह हमने आकाश में बुर्ज बनाये, और देखनेवालो के लिये उसे सँवारा और सब दुष्ट शैतानों से उसकी रक्षा की उसके अतिरिक्त कि जिसने सुनने के लिये चोरी की, फिर प्रत्यक्ष तारा ने उसका पीछा किया ।” ( १५ : २ : १-३)

यद्यपि शैतान को आकाश की ओर जाना मना है, चोरी से कभी-कभी कोई छिपकर आकाश की बात जानने के लिए चला जाता है, यही आकाश के टूटते तारे या उल्का है । शैतान के अनुयायी मनुष्यों का लक्षण इस प्रकार कहा है –

“मनुष्यों में जो बिना जाने, परमेश्वर के विषय में विवाद करते हैं, वह सब बागी शैतान का अनुगमन करते हैं।” ( २२:१:२ )

शैतानों के सरदार ‘इब्लीस’ का स्वर्ग से निकाला जाना क़ुरान में इस प्रकार वर्णित है-

“जब हमने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हारी सूरत गढ़ी, फिर फिरिश्तों से कहा- आदम को दण्डवत् करो, तो उन्होने दण्डवत् की । किन्तु ‘इब्लीस’ प्रणाम करने वालों में न था ।”

दुष्ट शैतान


“परमेश्वर ने कहा- जब मैंने तुझे आज्ञा दी, तो किसने तुझे मना किया ?

इब्लीस बोला—मैं उससे अच्छा हूँ, मेरी उत्पत्ति अग्नि से, और उसकी मिट्टी से ।

परमेश्वर ने कहा- निकल जा इस स्वर्ग से, क्योंकि ठीक नहीं कि तू इसमें रहकर गर्व करे, सो निकल तू इब्लीस बोला-देखना, तब तक मुझे, जिस दिन यह मनुष्य उठाये जायेंगे ।

परमेश्वर ने कहा- निस्सन्देह तू प्रतीक्षा करने वाला है ।

इब्लीस बोला- यतः तूने मुझे भरमाया, अतः अवश्य उनके भटकाने के लिये तेरे सीधे मार्ग पर खड़ा रहूँगा। फिर मैं जरूर उनके सामने, पीछे, दाहिने, बायें से आऊँगा; और उन मनुष्यों में से बहुतों को तू कृतज्ञ न पायेगा।” (७:२:११-१७)

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शैतान का इतना भय है कि कहा गया है-

“जब तुम क़ुरान को पढ़ो, तो दुष्ट शैतान से रक्षा पाने के लिये ईश्वर की शरण माँगो ।” (१६:१३:६)

फिरिश्तों और शैतान के वर्णन पढ़ने पर भी जिज्ञासा हो सकती है, जिस प्रकार परमेश्वर के अनेक लक्षण वर्णित किये गये हैं, वैसे जीव का लक्षण बतलाया गया है । किन्तु यही प्रश्न उस समय भी लोग महात्मा मुहम्मद से करते थे, जिसका उत्तर क़ुरान में निम्न शब्दों को छोड़कर और कुछ नहीं दिया गया-

‘कुलरूर्हु मिनम्रि रब्बी’ (कह, कि जीव मेरे परमेश्वर की आज्ञा से है।)

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