कुरान का इतिहास, प्रयोजन और वर्णन-शैली | History of Quran
“कदाचित् तुमको ज्ञान हो, इसलिये उस (मुहम्मद) पर हमने अरबी क़ुरान उतारा । “(१२:१: २)
“मंगल संदेशप्रद, भयदायक, वह ग्रंथ-अरबी कुरान-परम कृपालु दयामय की ओर से उतरा है । इसमें उस (प्रभु) का लक्षण वर्णित है, जिसमें कि जातियाँ उसे जानें ।“ (४१:१:२-४)
“हे मुहम्मद ! इस प्रकार हमने अरबी कुरान तेरे हृदयस्थ किया, तू उससे ग्रामों की जननी (मक्का ), और उसके आस-पास को इकट्ठा होने के दिन (प्रलय) से डरावे ।“ (४२:१:७)
“हे मुहम्मद ! इस प्रकार हमने उस अरबी हुक्म (क़ुरान) को उतारा । जो कुछ तेरे पास (उस) ज्ञान में से आया, यदि उसे छोड़ तूने उन (लोगों) की इच्छा का अनुसरण किया; तो महाप्रभु की ओर से तेरे लिये सहायक और रक्षक (कोई) नहीं।“ (१३:१५:६)
उपरोक्त वाक्य कुरान से ली गई, इन वाक्यों में “क़ुरान” यह नाम उसकी भाषा और विषय बतलाया गया है । कुरान क्या है ? ईश्वरप्रदत्त एक अरबी ग्रन्थ । उसके प्रदान का प्रयोजन क्या है ? यही कि सन्मार्ग-भ्रष्ट जनों को भय दिखा, और श्रद्धालुओ को उनके पुण्य कार्यों के मंगलमय परिणाम का संदेश दे और सत्पथ पर लाया जाय ।
महानुभाव मुहम्मद के समय का अरब कहाँ तक सन्मार्गी हो गया था । उस समय का व्यवहार कहाँ तक दुराचारपूर्ण हो गया था ? अज्ञान कहाँ तक अपनी ऊँचाइयों को पहुँच चुका था ? इत्यादि बातों का परिचय पिछली विषय (अरब और मुहम्मद की कहानी ) में मिल चुका है ।
एक तो यह था कि उनको पापों का दुष्परिणाम समझा कर, उन्हें अच्छे कामों की ओर प्रेरित किया जाय । कितनी ही बार अनेक प्रलोभन सत्पुरुषों को भी सन्मार्ग भ्रष्ट करने में सफल होते हैं । इसीलिये ऊपर संकेत किया गया है, कि लोगों की इच्छा का अनुसरण करने वाला कभी ईश्वर की रक्षा और सहायता का भाजन नहीं हो सकता । सहायकों और संरक्षकों के बिना, अकेला अपने भीषण विरोधियों का सामना, वह उस निराशा पूर्ण अन्धनिशा में करता है; जब उसे क्षणमात्र के लिये भी नहीं दीख पड़ती । सुधारक मुहम्मद का जीवन भी ऐसी ही घटनाओं से पूर्ण है ।
कुरान का अरबी में उतरना ही क्यो आया है ? मक्का और उसके आसपास के लिये, तभी क़ुरान की उपयोगिता है, जब कि वह वहाँ की भाषा में हो । कुरान मे दूसरी जगह कहा भी गया है – “यदि हम अरबी से भिन्न भाषा में कुरान बनाते, तो अवश्य (लोग) कहने लगते, उसके तात्पर्य क्यों नहीं स्पष्ट किये गये । क्या ! अरब का आदमी और अरब की भाषा से भिन्न भाषा यह विश्वासियों के लिये मार्गदर्शक और स्वास्थ्यप्रद है ।” (४१ : ५: १२)
युद्ध प्रिय अरब के लोगों में उस समय कविता के लिये बड़ा प्रेम था । वहाँ कितने ही ऐसे कवि हुए हैं, जिनकी कविताएँ युद्धाग्नि भड़काने में घी का काम देती थीं सुन्दर भाषा और स्वास्थ्य-लाभ के लिये, मक्का नगर के प्रतिष्ठित घरानों के दो-दो, तीन-तीन वर्ष के बच्चे अस्थिर-बास बद्दू अरबों के डेरों में पलते थे । स्वयं माननीय मुहम्मद का बचपन भी इसी प्रकार व्यतीत हुआ था । इससे भी उनकी भाषा अत्यन्त स्पष्ट और सुन्दर थी । कुरान “अथ” से “इति” (प्रारम्भ से अंत) तक अनुप्रासबद्ध लिखा गया है । जैसे –
कुल् हुबल्लाहु अहद् । अल्लाहुस्समद् ।
लम् यलिद् व लम् यूलद् । व लम् यकुन् कुफुवन् अहृद् ।
[कह, वह परमेश्वर एक, सर्वाधार (है)। (वह) न उत्पन्न करता न उत्पन्न हुआ है । और न कोई उसके समान (है) ।] (११२ )
लौह-ए-महफूज में कुरान | Loh E Mehfooz | Lohe Mehfooz
“सचमुच पूज्य कुरान अस्पष्ट पुस्तक मे है । जब तक शुद्ध न हो, उसे मत छुओ । वह लोक-परलोक के स्वामी के पास से उतरा है ।“ ( ५६:३:३-५)
पुस्तक से यहाँ अभिप्राय उस स्वर्गीय खेल-पट्टिका से है, जिसे इस्लामी परिभाषा में “लौह-ए-महफूज” कहते हैं । सृष्टिकर्ता ने शुरूआत से उसमें त्रिकालवृत्त लिख रखा है; जैसा कि स्थानान्तर में कहा है –
“हमने अरबी क़ुरान रचा, कि तुमको ज्ञान हो । निस्सन्देह वह उत्तम, ज्ञानभण्डार हमारे पास पुस्तकों की माता (लौह-ए-महफूज) में लिखा है ।“ (५३:१:३,४)
कुरान में वर्णित ज्ञान को जगत् के हित के लिये अपने प्रेरित मुहम्मद के हृदय में प्रकाशित किया, यही इस सब का भावार्थ है । अपने धर्म की शिक्षा देने वाले ग्रन्थ पर असाधारण श्रद्धा होना मनुष्य का स्वभाव है । यही कारण है, कि कुरान के माहात्म के विषय में अनेक कथाएँ भी जन समुदाए मे प्रचलित हैं |