कुरान का उतरना | वही उतरना | Quran Ka Utarna

कुरान का उतरना | वही उतरना | Quran Ka Utarna

मुसलमानी विचार के अनुसार भी, सम्पूर्ण कुरान, महानुभाव मुहम्मद को एक ही बार हृदयस्थ नहीं हुआ । क़ुरान में भी आया है –

“जब तक कि उस (क़ुरान) का उतरना पूरा न हो जाय, उसकी प्राप्ति में शीघ्रता न कर ।“(२०:६:१०)

AVvXsEiifrC909m2UGyR8m4lqJtapCQJhXGeISgQSwt7GEy8XK4F3uyN9M93zMalFW igbhPaVuboVlkSeDHR7ZCNY3mYWOmesXtl0nw6PpAmOmD9 CplJB4KVlWA4jjWuaQJMHqZ6YOmxPin6R36YWlYReRsvk04kmCfVxHftdObFMinoNhnRfurQ ED6J=s320

सर्वप्रथम “हिरा” की गुफा में “इक्रा बि-इस्मि रब्बिक” (अपने ईश्वर के नाम से पढ़) यह वाक्य महात्मा मुहम्मद हृदय से प्रकाशित हुआ । यह समय प्रायः विक्रम संवत् ६६७ का होगा । उस समय वह चालीस वर्ष के हो चुके थे । प्रायः प्रति वर्ष एकान्त मे चिन्तन के लिए उपरोक्त स्थान पर उनका जाना होता था । इसी ईश्वरीय ज्ञान के हृदयस्थ होने को वही का उतरना कहते हैं। वही के उतरने के विषय में भी भिन्न-भिन्न विचार हैं । इसके विषय में सर्वमान्य होने से क़ुरान के ही कुछ अंश यहाँ दिए जाते हैं ।

“अवश्य यह कुरान मेहराब ने उतारा है, और उसके साथ, एक देवदूत उतरा ।“ (२६:११:२, ३ )

जिब्रईल स्वर्गदूत


यह दूत और कोई नहीं, स्वयं जिब्रईल थे, जो हजरत के पास “वही” लाते थे । देवदूतों या फिरिश्तों के बारे में अनेक कथाएँ इस्लामी साहित्य में पाई जाती हैं। किन्तु कुरान में ऐसा वर्णन कहीं नहीं आया है । कुरान के उतरने ही के कारण, रमजान का महीना, बहुत पवित्र माना गया है। कहा है –

AVvXsEi370eSHvoPokEmwRY1YvQDIK1CsD JWct5 nnJlyMAwm7C57f4tfX3oh x2Bk5p AV yeDrsbsZM1 F Jm7AArdytDd4vdOvr2Kxnmf6mA7hQMX6nV8 YbmG rGdWS6ODyGRHKM5fdFNONoe qU8iEily89WgLXoIqHkXeXYfiypy9PhEzfuB6E8oW=s320

रमजान का महीना


“रमजान में उतरना, पवित्र रमजान का महीना जिसमें मार्गप्रदर्शक, मानव-शिक्षक, सत्य-असत्य विभाजक, स्पष्ट कुरान उतारा गया । अतः तुममें से जो कोई रमजान महीने को पावे, उपवास रखे और यदि रोगी या यात्रा में हो, तो दूसरे दिनों में ।“ (२:२३:३)

रमजान अरबी का नवाँ महीना है। शब्दार्थ – जिसमें गर्मी की अधिकता हो अथवा गर्मी की अधिकता से युक्त है । जिस रात्रि में वही प्रथम – पहली बार उतरी, वह रमजान के अन्तिम दस दिनों में अन्यतम ‘लैलतुल्कद्र’ अथवा महारात्रि के नाम से विख्यात है (६७:१:१) । वह रात्रि और मास, दोनों ही जिनमें पवित्र कुरान उतरा, इस्लाम धर्म में बहुत पवित्र माने जाते हैं । लैलतुल कद्र के नाम से क़ुरान में एक अध्याय (सूरत) भी है ।

मक्की और मदनी


सम्पूर्ण कू्रान एक साथ नहीं उतरा । हजरत की अवस्था के ४०वें वर्ष से लेकर ६३वे वर्ष (मृत्यु के समय) तक-अर्थात् २३ वर्षों में थोड़ा-थोड़ा करके उतरा है । अतः आरम्भ ही में कुरान का पुस्तक संग्रहित होना सम्भव नहीं । वाक्य और अध्याय भी अपने उतरने के समय के क्रम से वर्तमान पुस्तक कुरान में स्थापित नहीं किये गये हैं । कुरान के कितने ही वाक्य मक्का में और कितने ही मदीना में उतरे हैं । जिससे कुरान के ११४ अध्याय “मक्की” और “मदनी” दो भेदों में विभक्त हैं ।

पहिले अध्यायों की अपेक्षा पिछले अध्याय प्राय: छोटे हैं । प्रथम अध्याय “ फातिहा ” के बाद दूसरा अध्याय “ अल्बक्रा ” या “ बक्रा ” (बक्र, बक्रत) है, जो मदीना में उतरा । उसके बाद का आल इम्रान भी मदनी है । यह निश्चित है कि, महात्मा के जीवन में कुरान वर्तमान पुस्तक-क्रम में सम्पादित नहीं हुआ था । कुरान में आया “किताब” शब्द भी उसके वर्तमान पुस्तक की ओर संकेत नहीं करता; बल्कि, उसके उस रूप की ओर संकेत करता है जो कि स्वर्गीय-पुस्तक “ लौह-महफूज ” में सुरक्षित है। महात्मा के जीवन-काल से ही उसके एक-एक वाक्य को बड़ी सावधानी से रेशम, चर्म और अस्थियों पर लिखकर रखा जाता था । कितने ही भक्तजन उन्हें कण्ठस्थ भी कर लिया करते थे । इस प्रकार कुरान के सम्पूर्ण अंश भली प्रकार सुरक्षित रखे गये थे ।

शीआ और सुन्नी


पीछे जब पाठों और वाक्यों में भेद होने लगा तो, चतुर्थ खुलीफा “ उस्मान ” को एक पुस्तक के रूप में सबको संग्रह करने की आवश्यकता पड़ी । इसी संग्रह की प्रामाणिकता के विषय में बहुत मतभेद है । उस समय “ ख़लीफा ” या उत्तराधिकारी होने के लिए महात्मा के अनुयायियों में विवाद उठ खड़ा हुआ । जो बहुत और बढ़ते गृह-युद्ध की अग्नि को प्रज्वलित करने लगा । महात्मा की प्रिय पुत्री “ फातिमा ” तथा जामाता वीरवर “ अली “ उनके पुत्र “ हसन “ और “ हुसेन ” जिसकी आहुति हुए । यह विवाद देह सम्बन्धियों और धर्म-सम्बन्धियों में उत्तराधिकारी (खलीफा) होने के विषय में था । देह-सम्बन्धियों के उत्तराधिकार को मानने वाले ही “ शीआ ” लोग हैं । और दूसरे (बहुसंख्यक) “ सुन्नी “ के नाम से पुकारे जाते हैं । महात्मा के कोई जीवित पुत्र न था । पुत्रियों में श्रीमती फातिमा के यही दो पुत्र “ हसन ” और “ हुसेन “ थे । वे कुछ मुसलमानों की स्वार्थसिद्धि में बाधा पड़ते थे, जिन्हे बाद मे बारी-बारी से तलवार के घाट उतार दिया गया ।

वर्तमान पुस्तक के रूप में कुरान का संग्रह “ खलीफा उस्मान ” ने कराया था । यही “ सुन्नियों ” के मुखिया थे। “ शीआ “ लोगों का कहना है कि, इस पुस्तक में कुरान के कितने ही वाक्य और कितने ही अध्याय भी छोड़ दिये गये हैं । उदाहरणार्थ वह “ सिज्दा “ अध्याय के कितने ही वाक्य उपस्थित करते हैं । प्राचीन .भाष्यकारों ने भी उनमें से कितने ही को जहाँ-तहाँ उतारा है । पटना की “खुदाबक्स लाइब्रेरी “ में हस्तलिखित कुरान की एक प्राचीन प्रति है, जिसके, अन्त में भी ऐसे अनेक वाक्यों का संग्रह है । वर्तमान “ कुरान “ ३० सिपारों या खण्डों में विभक्त है, कितनों ही का कहना है कि, पहले इनकी संख्या चालीस थी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *