मुनाफिक का मतलब । काफिर क्या होता है | Munafik Ka Matlab | kafir Kya Hota H
मुनाफिक का मतलब | Munafik Ka Matlab
मदीना आने पर, जिन मूर्ति पूजकों ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया, उन्हें अन्सार कहा जाता है; इनमें बहुत से वंचक मुसल्मान भी थे, जिन्हें मुनाफिक का नाम दिया गया है । इन्हीं के विषय में कहा गया है –
“हम निर्णय-दिन (क़यामत) और भगवान् पर विश्वास रखते हैं, ऐसा कहते हुए भी वह, विश्वासी (मुसल्मान) नहीं हैं । परमेश्वर और मुसल्मानों को ठगते हुए वह अपने ही को ठगते हैं ।“ (२:२:१,२)
“विश्वासियों (मुसल्मानों) के पास जब गये तो, कहा हम विश्वास रखते हैं; राक्षसों (नास्तिकों) के पास निकल जाते हैं तो कहते हैं-( मुसल्मानों से ) हँसी करते हैं, अन्यथा हम तो तुम्हारे साथ हैं।” (२:२:७)
“वह दोनों के बीच लटकते हैं, न वह इधर के हैं, न उधर के ।” (३:२१:२)
इसीलिये मरने पर –
“निस्सहाय होकर (वह) नरक की अग्नि के सबसे निचल तल में रहेंगे।” (३:२१:४)
काफिर क्या होता है | Kafir Kya Hota H
इस्लाम मे अरबी भाषा मे काफिर को “स्वीकार न करने वाला” या “ ढकने वाला” कहा जाता है ।
जैसा पहले के लेख मे बताया जा चूका हैं की उस समय अरब में मुर्ति पूजा का बहुत अधिक प्रचार था । कुरान में सबसे अधिक जोर से इसी का खंडन किया गया है । महात्मा मुहम्मद ने जब यह सुना कि काबा मन्दिर के निर्माता हमारे पूर्वज महात्मा इब्राहिम थे, जो मूर्तिपूजक नहीं थे, तो उन्हें इस अपने काम में और बल-सा प्राप्त हुआ मालूम होने लगा । उनकी यह इच्छा अत्यन्त बलवती हो गई कि, कब काबा फिर मूर्ति-रहित होगा । उन्होंने सच्चे देवता की पूजा का प्रचार और झुठे देवता की पूजा का खण्डन अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य रखकर बराबर अपने काम को जारी रखा।
अरब की काशी मक्का में, कुरैशी पण्डों का बड़ा जोर था । यह लोग अपने अनुयायियों को कहते थे – वद्द’, सुबाअ’, ‘यगूस’, ‘नस्र’ अपने इष्टों को कभी न छोड़ना चाहिये। (७१:१:२३)
कुरान के उपदेश को वह लोग कहते थे –
“यह इस मुहम्मद की मन-गढ़न्त है ।” (११:३:११)
इसको कोई विदेशी सिखाता है । हम अच्छी तरह जानते हैं, उस सिखाने वाले की भाषा अरबी से भिन्न है, और यह अरबी। (१६:१४:३)
वह लोग महात्मा के रसूल होने के बारे में कहते थे –
“हम लोग विश्वास नहीं करते, जब तक वह भूमि से जल का सोता न निकाल दे । या खजूर, अंगूर आदि का ऐसा बगीचा न उत्पन्न कर दे, जिसमें कि नहर बहती हो । अथवा अपने कहे अनुसार आकाश को टुकड़े-टुकड़े करके हमारे ऊपर न गिरा दे या परमेश्वर या देवदूतों को प्रतिभू (जामिन) के तौर पर न लावे । या अच्छा महल हो जाय । अथवा आकाश पर चढ जाय । किन्तु उसके चढ़ने पर भी हम विश्वास नहीं करेंगे; जब तक हम लोगों के पढ़ने लायक कोई लेख न हो । “(१७:१०:७-१०)
कुरान में पुराने वसूलों के लिये अनेक चमत्कार लिखे हैं जैसे महात्मा मूसा ने पत्थर से बारह जल-स्रोत बहा दिये। अपने साथियों को स्वर्गीय भोजन, ‘मन्न’ और ‘सलवा’ दिया करते थे । इब्राहीम के पास तो खुदा बराबर ही आया करते थे। महात्मा ईसा आकाश पर चढ़ गये इत्यादि इन बातों ही को वह लोग भी कहते थे कि यदि तुम प्रभु-प्रेरित हो तो, क्यों उसी प्रकार के चमत्कार नहीं दिखाते ? और भी अनेक प्रकार से वह लोग हँसी उड़ाते थे। नीचे कुछ और उद्धरण उनके व्यवहारों का दिया जाता है –
“भोजन करता है, बाजार में घूमता है, यह कैसा रसूल (प्रभु-प्रेरित) है ? क्यों नहीं इसके पास देवदुत आता, जो इसके साथ (हमें) डराता ? क्यों नहीं इसके पास कोप (खजाना) और बाग हुआ, जिसका यह उपभोग करता ?”(२५:१:७,८)
क्या हम किसी पागल, दरिद्र, तुकवन्द (कवि) की बात में पड़कर अपने इष्टों को फेंक दें ?” (३७:२: ३)
इस प्रकार अस्वीकर करने वालो को काफिर कहा जाने लगा ।