महर्षि पराशर | Maharshi Parashara
प्राचीन भारतीय संस्कृत वाङ्गमय में पराशर स्मृति, पराशर संहिता, पराशर सूत्र, पराशर पुराण (18 पुराणों में से एक) ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है । स्मृतियों में मनुस्मृति के बाद याज्ञवल्क्य स्मृति व पराशर स्मृति की ही अधिक मान्यता है ।
पराशर संहिता से ज्ञात होता है कि वे एक बहुत बड़े ज्योतिषी थे । पराशर संहिता समाज में सामाजिक व्यवस्था, धर्म, कर्म, अर्थ, मोक्ष को जानने-समझने व प्राप्ति आदि का ग्रन्थ है | “पराशर स्मृति” जिसमें विधान वर्णित है । पराशर की स्मृति, संहिता, सूत्र व पुराण को पढ़ने व अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि वे एक बहुत बड़े वैज्ञानिक भी थे ।
भारतीय संस्कृत वाङ्गमय से ज्ञात होता है कि महर्षि वसिष्ठ के पुत्र थे – शक्ति | जिनसे पराशर का जन्म हुआ था ।
पराशर को अपनी विद्या से यह ज्ञात हो गया था कि कहाँ, किसके साथ, किसी स्थिति में संयोग कर एक महान भावी संतान को उत्पन्न किया जा सकता है।
चेदि नरेश उपरिचरवसु एवं भाद्रिका अप्सरा के संयोग से उत्पन्न मत्स्यगन्धा यानि मत्स्योदरी अर्थात गन्धकाली, जिसे बाद में “सत्यवती” कहा गया । अपने पालक पिता निषाद (केवट-मल्लाह) के यहाँ रहकर नाव से यात्रियों को नदी पार कराती थी ।
पराशर वहाँ गये तो पिता निषाद ने मत्स्यगन्धा (सत्यवती) को उन्हें नाव से नदी पार कर देने के लिए कहा । जब नदी की बीच धारा में नाव पहुँची, तब पराशर ने अपनी आसक्ति को प्रकट किया । इस पर सत्यवती ने कहा कि – “मेरे शरीर से मछली की जो गन्ध आती रहती है उसे आप दूर कर दें ।“
पराशर ने अपनी विद्या से वैसा ही कर दिया।
तब सत्यवती ने दो बातें और कहीं – “एक कि नदी के किनारे से मेरे पिता व अन्य देख रहे हैं, उसका उपाय करें और दूसरी की आपके साथ संयोग करने पर मुझे बच्चा होना निश्चित है, अत: ऐसा कर दें कि शिशु के उत्पन्न होने पर भी मुझे देखकर, मुझे शिशु उत्पन्न हुआ है कोई पता न कर सके।“
तब महर्षि पराशर ने अपनी शक्ति व योगबल से नाव के चारों ओर अन्धकार कर दिया और सम्भोग किया, क्योंकि मुहर्त (योग्य समय) निकला जा रहा था । इससे वेद व्यास का जन्म हुआ, जिसे ब्रह्म आश्रम में उन्होंने पालन किया और सत्यवती को पुनः चिर-कुवारी बना दिया, कुमारीत्व को पुनः पूर्वानुसार कर दिया।
इस सबसे यह स्पष्ट है कि पराशर एक महान् ज्योतिषी, समाजशास्त्री व वैज्ञानिक थे, अन्यथा उपरोक्त सारी बातें एक सामान्य ऋषि नहीं कर सकते थे ।
इनमें पराशर को यूरोपियन विद्वान् इतिहासकार प्राचीन समय का पहला ज्योतिषी मानते हुए कहते हैं कि पराशर ईसा मसीह से १२८१ वर्ष पूर्व हुए है | लेकिन प्रामाणिक तथ्यों व सबूतों से यह सिद्ध है कि वेदव्यास का आविर्भाव महाभारत होने के १३५ वर्ष पूर्व हो चुका था ।