निर्वाण क्या है | निर्वाण किसे कहते है | What is Nirvan

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निर्वाण क्या है | निर्वाण किसे कहते है | What is Nirvan

बुद्ध के अनुसार हम बार-बार जन्म लेते हैं, और अपने पिछले जन्म के कर्मों का फल भोगने के लिए दुबारा भी जन्म लेते है | अगर अच्छे कर्मों की मदद से इस चक्र को तोड़कर पुनर्जन्म ना हो तो उसको निर्वाण की प्राप्ति कहा जाता हैं | ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध कई दिनों तक उस वृक्ष के नीचे बैठे रहे, वह जानते थे कि जो ज्ञान उन्हे मिला है उसे दूसरों के साथ बाटना होगा, लेकिन उनको डर था कि लोग उनकी बात पर विश्वास नहीं करेंगे | यह मान्यता हैं कि बुद्ध की यह दुविधा खुद ब्रह्मा ने आकर दूर की थी और कहा था की वह चिंता ना करें और जाकर अपना ज्ञान सबसे पहले अपने पांच साथियों को दें और फिर दुनिया में बांटे, क्योंकि लोग उसी ज्ञान को ढूंढ रहे हैं | सबसे पहले बुद्ध ने उन पांच साथियों को ढूंढा जिन्होंने उनके साथ तपस्या की थी, उनको शिक्षा देने के साथ ही एक बौद्ध धर्म की दीक्षा शुरू हुई |

बुद्ध ने अपने शिष्यो को अपने पहले उपदेश मे समझाया था कि दुनिया क्षणिक है और हर समय बदल रही है | इस दुनिया में दुख भरा हुआ है धैर्य के साथ चलकर हम दुखो से बच सकते हैं |

यह दुनिया कब, कहां, कैसे शुरू हुई इस पर बुद्ध ने ध्यान नहीं दिया | एक बार बुद्ध के शिष्य ने उनसे नाराज होकर कहा था कि – “मैं आपकी बात क्यों मानूं, आपने मुझे इस दुनिया के बाद की दुनिया के बारे में तो कुछ नहीं बताया इस पर बुद्ध हंसे और बोले – “मैंने कब कहा था? कि इस दुनिया के बाद की दुनिया के बारे में मैं तुम्हें बताऊंगा, मैं केवल उसको ठीक कर सकता हूं जो तुम्हें भविष्य के लिए व्याकुल करता है और ऐसे सवाल पूछने के लिए मजबूर कर रहा है |”

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बुद्ध का मानना था कि पिछले जन्म और अगले जन्म के बारे में जानने की जरूरत नहीं है, हर समस्या का समाधान इसी पल में है जो अभी है |”

बुद्ध ने कहा की – “जीना मतलब कभी ना कभी दुख का सामना करना, जब तक हम जिंदा है हम कभी ना कभी, बीमार, दुखी और प्रसन्न होंगे ही |

दूसरा कष्ट की वजह है हमारी इक्छा | हम नाश हो जाने वाली चीजों से मोह करते हैं और जब उन सब चीजों का नाश हो जाता है, तो हम दुखी हो जाते हैं |”

तीसरा कष्ट की वजह है मोह | जब हम दुनिया को अज्ञानता की जगह विद्या से देखते हैं, तब हमें मोह अंधा नहीं कर पाता | दुख का अंत करने के लिए हम सबको अपने अंदर के बुद्ध को जगाना है कि धर्म के पथ पर चल के दुखों का अंत किया जा सकता है |

बताने के बाद बुद्ध ने एक स्पष्टीकरण दिया, जिसे मानकर दुखो से होने वाले कष्टों को खत्म किया जा सकता है | इसमे संयमित दृष्टि, संयमित संकल्प, संयमित वचन, संयमित कर्म, संयमित आजीविका, संयमित व्यायाम, संयमित स्मृति, संयमित समान है | इसके अलावा बुद्ध के मंत्र है अहिंसा, चोरी न करना, यौन उत्पीड़न न करना, सत्य वचन, मदिरापान न करना |

इस मंत्र को बुद्ध मे एक नाव की तरफ बताया जिसपर चढ़कर मंजिल को पाया जा सकता है | वह यह कभी नही चाहते थे की उनके शिष्य और अनुयायी उनकी शिक्षा को अपने ऊपर भार बना ले |

निर्वाण का मतलब | निर्वाण का अर्थ


हर बुद्धिस्ट का लक्ष्य होता है निर्वाण | निर्वाण का मतलब होता है मोह का अंत | निर्वाण का मुख्य कार्य है जीवन-मृत्यु के चक्कर से ऊपर उठना | इसलिए निवान को सम्पूर्ण सुख माना जाता है | बुद्ध मे स्वयं कहा है – “निर्वाण को केवल महसूस किया जा सकता है, इसे समझाया नही जा सकता है |”

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निर्वाण या मोक्ष


बुद्धिस्ट मे निर्वाण हिन्दू मे मोक्ष से मिलता जुलता है |

बुद्धिस्ट मानते है की कुछ को तुरंत की निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है | हालांकि ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जिन्हें तुरंत ही निर्वाण मिल जाए | ज्यादातर लोगों को अनगिनत जन्मो को पार करके ही निर्वाण मिलता है | निर्वाण पाने के लिए धर्म पर चलना, ध्यान करना, मंत्र उच्चारण और दया एवं संवेदना के साथ जीवन बिताना पड़ता है | निर्वाण के लिए और भी कई तरीको को जरूरी माना गया है, इसमें सबसे जरूरी है जीवन के सत्य को जानना लेकिन दिलचस्प बात यह है कि आज तक निर्वाण तक पहुंचने का कोई भी एक अचूक तरीका नहीं है | कुछ ऐसे है जिसे तुरंत ही निर्वाण प्राप्त हो गया था |

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