सांपदा की कहानी । सांपदा माता की कहानी । Sampada Ki Kahani

सांपदा की कहानी । सांपदा माता की कहानी । Sampada Ki Kahani

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सांपदा को डोरो खोल


बैसाख बदी म अच्छो बार देखकर सांपदा को डारो खोल । ई दिन बरत कर और कहानी सुन। कहानी सुन जद एक पाटा पर जल को लोटो, रोली, चावल, सीरो, पूरी रक्ख । लोटा पर सखियों कर, टिक्का काढ़ पिछ कहानी सुन लेव । एक कटोरी म थोड़ो सा सीरो और रुपिया रख कर बाणो काढ़ पिछ डोरो खोल देव । यो डोरो और १६ जौ का डोरो लेव। जद का रखेड़ा दाणा स सूरज भगवान न पाट पा रक्खे। जल क लोटा स अरग दे। पिछ जीम लेव। डोरा न गाछ म गाड़ देव । कहाणी सुन डोरो लेव ।

सांपदा को उजमन | सांपदा का उद्यापन


सांपदा को उजमन कुछ साल क बाद कर देव। उजमन डोरो ल बदि कर। और तो सब काम हर साल डोरी खोलन क समय कर। बैया ही कर लेव सिरफ बायना म १६ जगह चार चार पूरी थोड़ो-थोड़ो सीरो, ओढ़नी कब्जो और रुपिया रख कर, हाथ फेर लेव। हाथ फेर कर बाणो सासुजी न पगा लाग कर दे देव। १६ ब्राह्मणियां जिमाव। हाथ फेरेड़ा सीरा पूरी ब्राह्मणियां न जीमते समय जद घाल देव। जिमान क बाद टीका काढ़ कर दक्षिणा दे देव। यो सारो काम ओढ़नो ओढ़ कर, नथ पहन कर और मैहन्दी लगा कर करनी चाहिये ।

सांपदा माता की कहानी


एक नल राजा और दमयन्ती रानी थी । एक दिन महल क नीच एक बुढिया माई सांपदा की डोरो बांट थी, कहानी केव थी, सो भोत भीड़ हो रही थी। रानी भीड देखकर दासी न बोली कि देखकर आ नीच क्यां की भीड़ हो रही है। दासी देखकर बोली कि एक बुढिया माई सोलह दाना नया जौ का हाथ म लेकर सांपदा की कहानी सुनाव ह और काचा सूत को, सोलह तार को, सोलह गांठ को, हल्दी म रगेड़ो डोरो बांट है, जिको कंठी म बांधो जाव ह, जिक स भोत सम्पदा होव । या सुनकर रानी भी डोरो मंगाकर, कहानी सुनकर हार क बांध लियो ।

राजा बारन स आयो, गला म डोरो देखकर पूछयो कि यो के बांध राख्यो है। रानी बोली यो सांपदा माता को डोरो हइ स भोत सम्पदा होव । राजा बोल्यो रानी अघाक तो भोत धन सम्पदा ह इतना हीरा मोतियां का गहना म यो डोरो अच्छो कोनी लोग, सो इन खोलकर गेर दे। रानी बोली म तो डोरी कोनी फेकूं । राजा मान्यो कोनी और डोरी तोड़कर फेंक दियो। उ दिन राजा न सपना म सांपदा माता दिखी और बोली कि म तन छोड़कर जाऊ हूं, अब तेर घरां आपदा आसी, तेर धन का कोयला हो जासी, हाली बालदी आप क घरां चल्या जासी, ऊग का दातन की जगां काठ को दातन आसी, सोना की झारी माटी की हो जासी, जीमण का थाल बन्द हो जासी । दूसर दिन राजा उठ क देख, तो सारा धन का कोयला होगा, सब कुछ बैयां ही होगी। राजा, रानी न बोल्यो कि थे थारी सखियां क चल्या जाबो । रानी चली गई ।

सब कोई भोत बातचीत करी, पर जीमण की कोई कोनी पूछो । रानी वापस आकर राजा न सारी बात बताई। तब राजा बोल्यो रानी आपां भीखो काटन दूसर गांव चालागां। ऊर एक ब्राह्मण की लड़की न छोड़ देवागां, जिको दीयो वास देसी, पानी भर देसी, झाडू कर देसी । राजा रानी महल स चालन लाग्या, तो महल को कांगरो टेडो होगो । आग न तलाब पर पहुंच्या । राजा दो तीतर ल्याकर रानी न दियो और बोल्यो कि म नहा क आऊं हूं, थे इना न भुनकर राखिये । राजा रानी खान बैठया तो भूनेडा़ तीतर भी उडगा ।

राजा रानी आगन आपका भायला खाती कन गया । सब कोई बोल्या खाती तेरो भायलो आयो है। खाती पूछयो कुण स भेष सूं आयो है। जना सब बोल्या कि मैला भेषां म ह। खाती बोल्यो कि पूराना घर म ऊतार देवो। राजा रानी पुराना घर म गया, बठ सोना का बरछी बछेला पड़या था, जिका न जमीन खागी। राजा, रानी न बोल्यो कि ऊर स चालो नहीं तो आपा न चोरी सिर लाग जासी । फेर आगन राजा रानी आपका राजा भायला के गया। सब कोई राजा न बोल्या कि राजा तेरो भायलो आयो है| राजा पूछयो कुन स भेषां स । सब बोल्या कि मैला भेषां स आयो है। जद राजा बोल्यो मेरा पुराना महल म ऊतार देवो । पुराना महल की खूंटी पर सवा करोड़ को हार टंगोडो थो, जिको राजा रानी क जातां ही दीवाल निगलगी। जद राजा, रानी न बोल्यो कि रानी अठ स भी आपां चाला नहीं तो हार चोरी सिर लाग जासी ।

ऊठ स भी वे चल्या गया। सब कोई राजा न बोलन लाग्या कि तेरो भायलो हार चुरा लियो राजा बोल्यो चोर तो कोनी थी, पर गरीबी क कारण लेगो होसी। राजा रानी बठ स आपकी बहन क गया । सब कोई बोलन लाग्या कि तेरो भाई आयो है । बहन पूछी कि कुन स भेषां स आयो है। सब बोल्या कि मैला भेषां स आयो हैं । जद बहन बोली कि सरोवर की पाल पर ऊतार देवो। राजा रानी सरोवर की पाल पर उतरगा। बहन, भाई क न धन को घड़ो भरकर ल्याई । भाई जैयां ही देखन लाग्यो, धन का कोयला होगा। भाई बोल्यो कि यो घढो ऊर ही गाड़ दे। ऊठ सब लोग माली का बगीचा म गया, तो बगीचा म पंर रखतां ही बगीचो हर्यों होगो । माली पूछयो कि तू कुन हैं, जिको मेंरा बगीचा म पर रखतां ही बारह बरस को सुखेड़ो हर्यो होगो । राजा बोल्यो कि म्हे तो भिखारी हा, तू राख लेसी के| माली ऊंना न राख लिया। रानी बोली कि म चार काम कोनी करुंगी ,दियो कोनी जोवूं बिछौना कोनी लगाऊ, झूठा बर्तन कोनी मांजू और झाडू कोनी देऊं ।

माली बोल्यो कि थारे सू कुछ भी कोनी कराँ, तू खाली फुल की माला गुथ दिया कर और बजार में जाकर माला और साग बेच आया कर। और राजा कुवां म से भारा निकाल दिया करगो। रानी साग बेचन बजार गई, लुगायां न बोली को साग लयो । जना लुगायां बोली क म्हे अभी कहानी सुना हां तू थोड़ी देर ठहर जा । रानी पूछो कि थे क्यां को कहानी सुनी हो। लुगायां बोली सांपदा माता की । जठा रानी बोलों कि म भी सांपदा माता की कहानी सुनती पर राजा सांपदा माता की डोरी तोड़कर फेंक दियो, जिकासुं बारह बरस होगा साँपदा माता म्हार पर नाराज होगी, पण अब भी म्हार ओजूं आ जाव, तो म डोरी ले लेऊ ।

ऊ ही दिन राजा न सपनो आयो कि सांपदा माता बोल म्ह थारे आऊगी |राजा पूछयो कि मन क्यान बेरो पड़सी । सांपदा माता बोली कि सवेर जद थे कुवो भारी जावोगा, जद पहली बार जौ की छड़ी, दूसरी बार हल्दी की गांठ और तीसरी बार काचो कुकडियो निकलेगो, जद थे जान जावो सांपदा माता यगी और रानी न डोरी दिया कर घरां चलया जावो। दूसर दिन सब ब्यान ही होगो । रानी डोरी ले लियो । सांपदा माता ऊना न भोत धन दिया। राजा माली न बोलयो कि म्हारा १२ बरस पूरा होगा है, अब म्हे घरां जावांगा। राजा माली न भोत सो धन देकर आपकी बहन क गया। बठ सब बोलया तेरो भाई आयो है। बहन पूछी कुन स भेषां से आयो है सब बोल्या भोत धन दौलत लेकर आयो है। बहन बोली कि मेंरा नया महल म ऊतार देवो । पन राजा बोलयो म तो सरोवर की पाल पर ही उतरुगा । बठ जाकर गड़ेड़ा घड़ा न निकाल्यो, देख तो हीरा मोती जगमगाव है बहन न धन को घड़ो और भी भोत सो धन देकर ऊठस चाल्या । आगे फेर आप के राजा भायला क गया । लोग बोलया राजा, तेरो भायलों आयो है।

राजा पूछयो कुन स भेषां स आयो हैं| सब बोलया भोत धन दौलत लेकर गाजा बाजा स आयो हैं । राजा बोलयो मेरा नया महल म ऊतार देवो। पण राजा रानी उतरया कोनी बोल्या कि म्हे तो पुराना म ही उतरांगा । बठ जाकर देख तो दीवाल निगलगी थी जिको हार पाछो खंटी पर टंगरयो हैं । राजा आपका भायला न बोल्यो म्हारो दिन खराब थो. तो यो हार दीवाल निगलगी थी, अब दिन फिरगो तो या पांछो दे दी १ थारो हार लेवो, म्हारी कलंक उतर गयो ।

पिछ बठ स राजा रानी आपका खाती भायला क गया |लोग बोलन लाग्या खाती तेरो भायलो आयो है। खाती पूछयो कुन स भेषां स आयो हैं। सब बोलया भोत धन दौलत लेकर. ठाट बाट स आयो है । खाती बोलयो कि मेरा नया घर म ऊतार देवो । पन राजा उतर्यो कोनी बोलयो म्हान तो पूराना म ही ऊतार देवो । बठ गया देख तो बरछो बछोला जमीन खागी थी, जिका पाछा दे दी। राजा खाती न बरछा बछेला पाछा सम्हला दिया बोलया कि म्हारा दिन अच्छो आवण सूं थारी सारी चीजां पाछी मिलगी| ऊठस राजा रानी तलाब पर आया, देख तो दोनु तीतर भूजेंडा पडया हैं। ऊठस आप क महल म आयो, देख तो कांगरो भी सीधो होगो और सोना की झारी, ऊगा को दातन, हाली बालदी पाछा आगा। भगवान का पनवाड़ा पाछा आन लागा । ब्राह्मण की बेटो न छोड़गा था,जिकी न आपकी धर्म की बेटी बना ली । बिको विवाह कर क भोत धन दौलत दिया पिछ रानो बहुत धुम धाम स सांपदा माता को उद्यापन कयों ।

सोलह ब्राह्मणियां जीमाई। सोरा पूरी की रसोई कराई। हाथ जोडकर सांपदा माता न बोली कि हे सांपदा माता तू मन ऊंची बड़ी करी, म धन ऊंची बड़ी करु हूं । हे सांपदा माता, राजा रानी न जिसो दुःख दियो, बिस्यो कोनी न मत दिये. जिसो धन दौजत देई उसी सब न दोओ। कहतां न, सुणतां न, आपनां सब परिवार न देईये। इ क बाद विनायकजी की कहानी केव ।

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