छिन्नमस्ता साधना मंत्र | छिन्नमस्ता देवी मंत्र | छिन्नमस्ता मंत्र | छिन्नमस्ता कवच | Chhinnamasta Mantra

छिन्नमस्ता साधना मंत्र | छिन्नमस्ता देवी मंत्र | छिन्नमस्ता मंत्र | छिन्नमस्ता कवच | Chhinnamasta Mantra

अब छिन्नमस्ता साधन मंत्र, ध्यान, यंत्र, जप, होम, स्तव और कवच आदि का वर्णन निम्न प्रकार से है ।

Chhinnamasta%20Mantra

छिन्नमस्ता मन्त्र


श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा ।

इस मंत्र से छिन्नमस्ता की पूजा एवं जप आदि करना चाहिये ।

छिन्नमस्ता ध्यान


छिन्नमस्ता के ध्यान का विधान मूल श्लोक में निम्नलिखित है, कृपया साधकगण ध्यान करते समय मूल श्लोक का ही प्रयोग करें ।

प्रत्यालीढपदां सदैव दधतीं छिन्नं शिरःकर्त्तृकां
दिग्वस्त्रां स्वकबन्धशोणितसुधाधारां पिबन्तीं मुदा ।
नागाबद्धशिरोमणि त्रिनयनां हृद्युत्पलालंकृतां
रत्यांसक्तमनोभवोपरि दृढ़ा ध्यायेज्जपासन्निभाम् ।
दक्षे चातिसिताविमुक्ताचिकुरा कर्तृस्तथा खर्परं
हस्ताभ्यां दधती रजोगुणभवो नाम्नापि सा वर्णिनी ।
देव्याश्छिन्नकबन्धतः पतदसृग्धारां पिबन्तीं मुदा
नागाबद्धशिरोणणिर्मनुविदा ध्येया सदा सा सुरैः ।
वामे कृष्णतनूस्तथैव दधती खड्गं तथा खर्परं
प्रत्यालीढपदाकबन्धविगलद्रक्तं पिबन्तीं मुदा ।
सैषा या प्रलये समस्तभुवनं भोक्तुं क्षमा तामसी
शक्ति: सापि परात् परा भगवती नाम्ना परा डाकिनी ।।

टीका – छिन्नमस्ता देवी प्रत्यालीढपदा हैं, अर्थात् वे युद्ध के लिये सन्नद्ध चरण किये (एक आगे एक पीछे) वीरवेष से खड़ी हैं । यह छिन्नशिर और खड्ग धारण किये हैं । देवी नग्न और अपने छिन्नगले से निकली हुई शोणितधारा पान करती हैं और वे मस्तक में सर्पाबद्धमणि, तीन नेत्रों को धारण किये हैं और वक्षःस्थल कमलों की माला से अलंकृत है । यह रति में आसक्त काम पर दंडायमान हैं । इनमें देह की कान्ति जपापुष्प के समान रक्तवर्ण है । देवी के दाहिने भाग में श्वेत वर्णवाली, खुले केशों, कैंची और खर्परधारिणी एक देवी हैं, उनका नाम ‘वर्णिनी’ है । यह वर्णिनी देवी के छिन्न मस्तक, गले से गिरती हुई रक्तधारा पान करती हैं । इनके मस्तक में नागबद्ध मणि है । वाम भाग में खड्ग-खर्परधारिणी कृष्णवर्णा दूसरी देवी हैं, यह देवी के छिन्नगले से निकली हुई रुधिरधारा पान करती हैं । इनका दाहिना पाद आगे और वाम पाद पीछे के भाग में स्थित है । यह प्रलयकाल के समय संपूर्ण जगत् को भक्षण करने में समर्थ हैं, इनका नाम ‘डाकिनी’ है, ये भगवती छिन्नमस्ता की परात्परा शक्ति हैं ।

छिन्नमस्ता पूजन यंत्र


छिन्नमस्ता पूजन यंत्र भैरवी पूजन यंत्र की तरह है, अतः साधक लोगों को उसी का पूजन करना चाहिये ।

उक्त मन्त्र का जप होम

लक्ष (एक लाख) जपने से छिन्नमस्ता मन्त्र का पुरुश्चरण होता है और उसका दशांश होम करना चाहिये । होम की सामग्री भैरवी के होम की भाँति है ।

छिन्नमस्ता स्तोत्र (स्तव)


नाभौ शुद्धसरोजरक्तविलसद्वन्धूकपुष्पारुणं
भास्वद्भास्करमण्डलं तदुदरे तद्योनिचक्रं महत् ।
तन्मध्ये विपरीतमैथुनरतप्रद्युम्नतत्कामिनी
पृष्ठस्थां तरुणार्ककोटिविलसत्तेज:स्वरूपां शिवाम् ।।

टीका – नाभि में शुद्ध खिला हुआ कमल है, जिसके मध्य से बन्धूक-पुष्प के समान लालवर्ण प्रदीप्त सूर्यमण्डल है, उस सूर्यमण्डल के मध्य में बड़ा योनिचक्र है, उसके मध्य में विपरीत मैथुनक्रीड़ा में आसक्त कामदेव और रति विराजमान हैं, इन कामदेव और रति की पीठ में प्रचण्ड चण्डिका (छिन्नमस्ता) स्थित हैं, यह करोड़ तरुण सूर्य की भाँति तेजशालिनी और मंगलमयी हैं ।

वामे छिन्नशिरोधरां तदितरे पाणौ महत्कर्तृकां
प्रत्यालीढपदां दिगन्तवसनामुन्मुक्तकेशब्रजाम् ।
छिन्नात्मीयशिर: समुल्लसद्गृग्धारां पिबन्तीं परां
बालादित्यसमप्रकाशविलसन्नेत्रत्रयोद्भासिनीम्

टीका – इनके बायें हाथ में छिन्न मुण्ड है और दाहिने हाथ में भीषण कृपाण शोभित है । देवीजी एक पाँव आगे एक पीछे किये वीरवेष में स्थित हैं, दिशारूपी वस्त्रों को धारण किये हुए हैं और केश उनके खुले हुए हैं, ये अपने ही शिर को काटकर उससे बहने वाली रुधिरधारा को पान कर रही हैं, इनके तीन नेत्र बालसूर्य (आदित्य) के समान प्रकाशमान हैं।

वामादन्यत्र नालं बहु बहुलगलद्रक्तधाराभिरुच्चैः
पायन्तीमस्थिभूषां करकमललसत्कर्तृकामुग्ररूपाम् ।
रक्तामारक्तकेशीमपगतवसनां वर्णिनीमात्मशक्तिं
प्रत्यालीढोरुपादामरुणितनयनां योगिनीं योगनिद्राम् ।।

टीका – देवी जी के दक्षिण और वाम भाग में निज शक्तिरूपा दो योगिनी विराजमान हैं । इनके दक्षिण भाग में स्थित योगिनी के हाथ में बड़ी कैचीं है और योगिनी की उग्र मूर्ति है, रक्तवर्ण और केश (बाल) भी रक्त वर्ण हैं । नग्नवेष और प्रत्यालीढ पद से स्थित हैं, इनके नेत्र भी लाल-लाल हैं, इसको छिन्नमस्ता देवी अपनी देह से निकालती हुई रुधिरधारा पान करा रही हैं ।

दिग्वस्त्रां मुक्तकेशीं प्रलयघनघटाघोररूपां प्रचण्डां
दंष्ट्रादुष्पेक्ष्यवक्रोदरविवरलसल्लोलजिह्वाग्रभागाम्
विद्युल्लोलाक्षियुग्मां हृदयतटलसद्भोगिभीमां सुमूर्ति
सद्यश्छिन्नात्मकण्ठप्रगलितरुधिरैर्डाकिनीं वर्द्धयन्तीम् ।।

टीका – जो योगिनी वाम भाग में स्थित हैं, वह नग्न और खुले केश हैं, उनकी मूर्ति प्रलयकाल के मेघ की भाँति भयंकर (भयानक) है, प्रचंडस्वरूपा है । इनका मुखमण्डल दाँतों से दुर्निरीक्ष्य हो रहा है, ऐसे मुखमण्डल के मध्य में चलायमान जीभ शोभित हो रही है और इनके तीनों नेत्र बिजली की भाँति चंचल हैं । छिन्नमस्ता देवी ऐसी डाकिनी को अपने कंठ के रुधिर से वर्द्धित कर रही हैं ।

ब्रम्होशानाच्युताद्यैः शिरसि विनिहितामन्दपादारविंदा-
मात्मज्ञैर्योगिमुख्यैः सुनिपुणमनिशं चिन्तिताचिंत्यरूपाम् ।
संसारे सारभूतां त्रिभुवनजननीं छिन्नमस्तां प्रशस्ता-
मिष्टां तामिष्टदात्रीं कलिकलुषहरां चेतसा चिन्तयामि ।।

टीका – ब्रह्मा, शिव और विष्णु आदि आत्मज्ञ योगीन्द्रगण इन छिन्नमस्ता देवी के पादारविन्द (चरण) को मस्तक में धारण करते हैं, तथा प्रतिदिन सदा इनके अचिन्त्यरूप का चिन्तवन करते रहते हैं, यह संसार में सारभूत वस्तु हैं । तीनों लोकों को उत्पन्न करनेवाली तथा मनोरथों को सिद्धि प्रदान करनेवाली हैं, इस कारण कलि के पापों को हरनेवाली इन देवीजी का मैं मन में ध्यान (स्मरण) करता हूँ ।

उत्पत्तिस्थितिसंहृतीर्घटयितुं धत्ते त्रिरूपां तनुं
त्रैगुण्याजज्गतो मदीयविकृतिब्रह्माच्युतः शूलभृत् ।
तामाद्यां प्रकृतिं स्मरामि मनसा सर्वार्थ-संसिद्धये
यस्याः स्मेरपदारविन्दयुगले लाभं भजन्तेऽमराः ।।

टीका – यह देवी संसार की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के निर्मित ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र – इन तीन मूर्तियों को धारण करती हैं । देवता इनके प्रस्फुटित खिले कमल की भाँति दोनों चरणों का सदा भजन करते हैं, संपूर्ण अर्थों की सिद्धि के निमित्त इन आद्या प्रकृति छिन्नमस्ता देवी का मैं मन में चिन्तवन करता हूँ ।

अपि पिशित-परस्त्री योगपूजापरोऽहं
बहुविधजडभावारम्भसम्भावितोऽहम्
पशुजनविरतोऽहं भैरवीसंस्थितोऽहं
गुरुचरणपरोऽहं भैरवोऽहं शिवोऽहम् ।।

टीका – मैं सदैव मद्य, मांस, पर-स्त्री में आसक्त तथा योगपरायण हूँ । मैं जगदम्बा के चरणकमल में संलिप्त हो बाह्य जगत् में रहकर जड़भावापन्न हूँ । मैं पशुभावापन्न साधक के अंग से भिन्न हूँ । सदा भैरवीगणों के मध्य में स्थित रहता हूँ, तथा गुरु के चरणकमलों का ध्यान करता हूँ । मैं भैरवस्वरूप तथा मैं ही शिवस्वरूप हूँ ।

इदं स्तोत्रं महापुण्यं ब्रह्मणा भाषितं पुरा ।
सर्वसिद्धिप्रदं साक्षान्महापातकनाशनम् ।।

टीका – इस महापुण्यदायक स्तोत्र को ब्रह्माजी ने कहा है । यह स्तोत्र सम्पूर्ण सिद्धियों का देनेवाला तथा बड़े-बड़े पातकों और उपपातकों का नाश करने वाला है ।

यः पठेत् प्रातरुत्थाय देव्याः सन्निहितोऽपि वा ।
तस्य सिद्धिर्भवेद्देवि! वाञ्छितार्थप्रदायिनी ।।

टीका – हे देवि ! जो मनुष्य प्रातःकाल के समय शय्या से उठकर अथवा छिन्नमस्ता देवी के पूजाकाल में इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके सभी मनोरथों की सिद्धि शीघ्र ही प्राप्त होती है ।

धनं धान्यं सुतां जायां हयं हस्तिनमेव च ।
वसुन्धरां महाविद्यामष्टसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ।।

टीका – इस स्तोत्र का पाठ करने वाला मनुष्य धन, धान्य, पुत्र, कलत्र, अश्व, हाथी और पृथ्वी को प्राप्त करता है तथा अष्टसिद्धि और नव निधियों को निश्चय ही पाता है ।

वैयाघ्राजिनरञ्जितस्वजघने रम्ये प्रलम्बोदरे ।
खर्चेऽनिर्वचनीयपर्वसुभगे मुण्डावलीमण्डिते ।
कर्त्री कुन्दरुचिं विचित्ररचनां ज्ञानं दधाने पदे ।
मातर्भक्तजनानुकम्पितमहामायेऽस्तु तुभ्यं नमः ।।

टीका – हे मातः! तुमने व्याघ्रचर्म द्वारा अपनी जंघाओं को रंजित किया है । तुम अत्यन्त मनोहर आकृतिवाली हो । तुम्हारा उदर (पेट) अधिक लम्बायमान है । तुम छोटी आकृतिवाली हो । तुम्हारी देह अनिर्वचनीय त्रिवली से शोभित है । तुम मुक्तावली से विभूषित हो । तुम हाथों में कुन्दवत् श्वेतवर्ण की विचित्र कर्त्री (कतरनी शस्त्र) धारण की हुई हो । तुम भक्तों के ऊपर सदा दया करती हो । हे महामाये ! तुमको मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ ।

अब छिन्नमस्ता के कवच को मूल श्लोक (संस्कृत) में निम्न दिया जा रहा है तथा अर्थ हिन्दी भाषा में दिया है । साधकगण पाठ करते समय मूल श्लोक का ही प्रयोग करें ।

छिन्नमस्ता कवच


हुं बीजात्मिका देवी मुण्डकर्तृधरापरा ।
हृदयं पातु सा देवी वर्णिनी डाकिनीयुता ।

टीका – वर्णिनी डाकिनी से युक्त मुण्डकर्तृ को धारण करने वाली, हुं बीजयुक्त महादेव जी मेरे हृदय की रक्षा करें ।

श्रीं ह्रीं हुं ऐं चैव देवी पूर्वस्यां पातु सर्वदा ।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु छिन्नमस्ता महाबला ।।

टीका – श्रीं ह्रीं हुं ऐ बीजात्मिका देवी मेरी पूर्व दिशा में और महाबला छिन्नमस्ता सदा मेरे सर्वांग की रक्षा करें ।

वज्रवैरोचनीये हुं फट् बीजसमन्विता ।
उत्तरस्यां तथाग्नौ च वारुणे नैऋतेऽवतु ।।

टीका – ‘वज्रवैरोचनीये हुं फट्’ इस बीजयुक्त देवी उत्तर,अग्निकोण, वारुण और नैर्ऋत्य दिशा में मेरी रक्षा करें ।

इन्द्राक्षी भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी ।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै ।।

टीका – इन्द्राक्षी, भैरवी, असितांगी और संहारिणी देवी मेरी अन्यान्य सब दिशाओं में सर्वदा रक्षा करें ।

इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेच्छिन्नमस्तकाम् ।
न तस्य फलसिद्धिः स्यात्कल्पकोटिशतैरपि ।।

टीका – इस कवच को जाने बिना जो पुरुष छिन्नमस्ता मंत्र को जपता है, करोड़ कल्प में भी उसको मंत्र जप का फल प्राप्त नहीं होता है ।

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