स्तंभन मंत्र क्या होता है | स्तंभन मंत्र | स्तंभन मंत्र सिद्धि | अग्नि स्तंभन मंत्र | Agni Stambhana Vidya | Agni Stambhana Mantra
अग्नि स्तम्भन मंत्र | Agni Stambhana Mantra
ओम् नम: अग्निरूपाय मे देहि स्तम्भय कुरु कुरु स्वाहा ।
प्रयोग विधि – मेढ़क की चर्बी को एक सौ आठ बार मन्त्र पढ़ शरीर पर मलने से शरीर पर अग्नि का प्रभाव नहीं होता है ।
अग्नि स्तम्भन मंत्र | Agni Stambhana Vidya
ओम् ह्रीं महिषमर्दिनी लह लह लह कठ कठ स्तम्भन स्तम्भन अग्नि स्वाहा ।
खैर की लकड़ी को हाथ में ले इस मन्त्र को १०८ बार पढ़ अग्नि में प्रवेश करने पर जलने का भय नहीं रहता है ।
अग्नि स्तम्भन मंत्र
ओम् नमो अग्निरूपाय मम शरीरे स्तम्भन कुरु कुरु स्वाहा ।
इस मन्त्र को प्रथम दस हजार बार जाप कर सिद्धि कर लेवें, उसके पश्चात् निम्नांकित प्रकार से प्रयोग में लावें ।
(१) देशी घी के साथ चीनी का सेवन करके सोंठ को एक सौ आठ बार मन्त्र से अभिमंत्रित कर चबाने के बाद आग के अंगारे चबाने से भी मुख नहीं जलता है ।
(२) सोंठ, काली मिर्च तथा पीपल को एक सौ आठ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित कर चबावे और उसके पश्चात् प्रज्वलित अग्नि के टुकड़े चबाने से मुख नहीं जलता ।
(३) कपूर के साथ मेढ़क की चर्बी मिलाकर शरीर पर मलने के बाद अग्नि स्पर्श करने से शरीर नहीं जलता ।
(४) केला तथा ग्वारपाठे के रस को उक्त मन्त्र से अभिमंत्रित कर देह पर लगाने से शरीर अग्नि से नहीं जलता ।
(५) ग्वारपाठे के रस में मदार (आंक) का दूध मिश्रित कर मन्त्र पढ़ शरीर पर मलने से अग्नि स्पर्श से तन नहीं जलता ।
अद्भुत अग्नि स्तम्भन मंत्र
ओम् अहो कुम्भकर्ण महा राक्षस कैकसी गर्भ सम्भूत पर सैन्य भंजन महारुद्रो भगवान् रुद्र आज्ञा अग्नि स्तम्भय ठः ठः ।
यह उपरोक्त मन्त्र प्रथम दो लाख बार जप कर सिद्धि कर लेनी चाहिये, फिर आवश्यकता होने पर केवल एक सौ आठ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित करने से शरीर को अग्नि ताप का भय नहीं रहता ।